15 सितंबर को शुरू हुए एशिया कप में छह टीमें अपना दम-खम दिखाने को तैयार थी. टूर्नामेंट में क्वालिफाई करके पहुंचने वाली अफगानिस्तान के पास भी मौका था कि वह खुद को साबित करे. टेस्ट दर्जा हासिल करने के बाद टीम पहली बार किसी टूर्नामेंट में हिस्सा ले रही थी. टीम ने टूर्नामेंट में जैसा प्रदर्शन दिखाया उसे देखकर कहीं भी नहीं लगा कि टीम क्वालिफिकेशन राउंड खेल कर टूर्नामेंट में पहुंची है. टीम ने पूल राउंड के दोनों मैच जीतकर सुपर फॉर पहुंची. यहां टीम सुरुआती मुकाबले हारी लेकिन बेहद करीबी अंतर से. अफगानिस्तान ने टूर्नामेंट की सबसे बेहतर टीम माने जाने वाली भारत के साथ मुकाबला टाई किया. उनके प्रदर्शन को देखकर उनके संघर्ष का अंदाजा लगाना मुश्किल है.
एक दशक से चल रहा है पहचान बनने का संघर्ष
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टेस्ट दर्जा पाने वाली कोई टीम शायद ही अफगानिस्तान के उस संघर्ष को समझ सकेगी जो उन्होंने पिछले एक दशक में झेला है. इस टीम के खिलाड़ियों की आंखों में क्रिकेट की दुनिया नाम कमाने का सपना नहीं था. अगर उन आंखों में कुछ था तो वो था दर्द. दर्द अपना वतन छोड़ रिफ्यूजी कैंप में रहने का. दर्द अपनों को खो देने का. ...और अगर अपने हैं, तो इस बात का डर कि कहीं उन्हें खोना न पड़े. यह संघर्ष टीम को मुश्किल से बाहर निकालने का, खराब फॉर्म को सुधारने का नहीं था यह संघर्ष था टीम को बनाने का. अफगानिस्तान का क्रिकेट सफर पाकिस्तान से सटे रिफ्यूजी कैंपों से शुरू हुआ, जहां शौक के तौर पर लोगों ने क्रिकेट खेलना शुरू किया. धीरे-धीरे यह खेल जूनुन बन गया. साल 1995 में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड का गठन हुआ. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान के खौफ में जी रहे अफगान के इन पठानों को क्रिकेट छोड़कर कोई और खेल खुले में खेलने की मनाही थी. ऐसे में लोगों के लिए क्रिकेट के लिए प्रेम और ज्यादा बढ़ गया.
हालांकि इस जुनून और जोश से टीम के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ. ट्रेनिंग के लिए टीम कभी पाकिस्तान जाती तो कभी भारत के छोटे मैदानों पर अभ्यास करती. लोगों और कैमरा की नजरों से दूर लगातार अभ्यास की मदद से टीम ने 2011 वर्ल्ड कप क्वालिफायर के बाद चार सालों के लिए वनडे का दर्जा हासिल कर लिया. टीम की ये उपलब्धियां जहां उन्हें इस दुनिया पर राज करने के सपने दिखा रही थीं, वहीं देश में पल-पल बढ़ती हिंसा की सच्चाई उन्हें पीछे खींचती रहती थी. उनका जोश दो कदम आगे बढ़ना चाहता था तो सच्चाई चार कदम पीछे खींच लेती थी. हालांकि टीम अपने खेल में सुधार करती रही और 2015 वर्ल्ड कप के लिए क्वालिफाई किया. 2015 वर्ल्ड कप में टीम केवल स्कॉटलैंड के खिलाफ जीत हासिल कर पाई, और बाकी सभी मुकाबले हार गई. हालांकि वर्ल्ड कप में उसे ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और श्रीलंका जैसे देशों के खिलाफ खेलने का मौका मिला और असल मायनों में यही इस टीम की नई शुरुआत थी. इसके बाद उन्होंने जिम्बाब्वे में वनडे सीरीज जीती. बिना टेस्ट दर्जे के एक टेस्ट दर्जे की टीम को हराने वाली यह पहली टीम थी.
टीम को मिला पोस्टर बॉय
अफगानिस्तान की टीम की इस कहानी को पोस्टर बॉय मिला जब राशिद खान ने टीम में जगह पक्की की. साल 2016 में अफगानिस्तान के लिए फर्स्ट क्लास में डेब्यू करने वाले राशिद ने बहुत जल्द ही क्रिकेटरों की सबसे बड़ी मंडी में भी अपनी जगह बना ली. साल 2017 में आईपीएल में वह चार करोड़ के प्राइस पर सनराइजर्स हैदराबाद की ओर से खेले. उनके इस चयन ने जैसे पूरी टीम के अंदर एक नई जान फूंक दी. राशिद इस मौके की अहमियत समझते थे और उनके प्रदर्शन ने इस बात की गवाही दी. राशिद के लगातार विदेश में खेलने के अनुभव का फायदा टीम को भी मिला. देश से मिल रहे इस प्यार ने राशिद को बड़े नामों के बीच खेलने का आत्मविश्वास दिया.
अफगानिस्तान को इतना लंबा सफर तय करने के बाद आखिरकार इस साल टेस्ट टीम का दर्जा दे दिया गया. भारत के खिलाफ वो टेस्ट बुरी तरह हार गए. लेकिन बाकी फॉर्मेट में अफगानिस्तान ने कभी भी अपनी विरोधी टीम को खुद को हल्के में लेने का मौका नहीं दिया.
टीम और खिलाड़ियों के हालात अब सुधर रहे हैं, हालांकि उनके वतन में चीजें बदलने में शायद समय लगे. हां, क्रिकेट अब जरूर वहां के लोगों की रगों में बसता है. यह खेल ऐसी डोर बन चुका है जिसे पकड़कर कई युवा आंखें डर के साये में रहने के बावजूद बड़े सपने देख रही हैं. एशिया कप में भले ही टीम का सफर खत्म हो गया, भारत के खिलाफ उनका मुकाबला टाई रहा लेकिन इस टीम ने जो हासिल किया वो इन सबसे बहुत बड़ा है. जब क्रिकेट को मजहब मानने वाले देश के लोग राशिद खान को भारत की नागरिकता देने की बात करते हैं तो यकीन मानिए जीत क्रिकेट की होती है!