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संडे स्पेशल: एक ऐसी टीम जिसकी जीत ने नहीं, वर्ल्ड कप में हार ने जीते दिल

1982 के वर्ल्ड कप में इटली से हार जाने के बावजूद ब्राजील की टीम ने लोगों के दिल छुए थे

Rajendra Dhodapkar

खेल जीतने के लिए खेला जाता है, लेकिन खेल में जीत ही सब कुछ नहीं है. सिर्फ आंकड़ों से खेल को नहीं जांचा जा सकता, जैसे किसी इंसान की कामयाबी को उसके कमाए पैसों से नहीं आंका जा सकता. जैसे जिंदगी में अक्सर नाकाम लोग भी बड़े नायक बनते हैं, वैसे ही खेल में भी होता है. आखिर शेक्सपीयर के सबसे बड़े नायक ‘ट्रैजिक’ हैं, जैसे मैक्बेथ, ऑथेलो, लीयर. शेक्सपीयर के सुखान्त नाटकों के नायकों के नाम किसे याद हैं. यहां हम एक ऐसी टीम की बात करेंगे जो विश्व कप में हार गई थी, लेकिन वह विश्व कप विजेता टीम की बजाय उस हारी हुई टीम के नाम से ही याद रहता है. यह टीम थी सन 1982 के विश्व कप की ब्राज़ील की टीम.

इस टीम को विश्व कप न जीत पाने वाली महानतम टीम तो सभी मानते हैं. लेकिन कई लोग इसे आज तक की महानतम टीम भी मानते हैं. 1970 का विश्व कप जीतने वाली ब्राजील की टीम से भी बेहतर. उस टीम की हार की जितनी चर्चा होती है, उतनी तो किसी टीम की जीत की नहीं होती. यह माना जा रहा था कि वह टीम विश्व कप की सबसे बड़ी दावेदार थी और वह उसी अंदाज में खेल भी रही थी. उसे अंतिम मुकाबले में पहुंचने के लिए दूसरे दौर के आखिरी मैच में सिर्फ इटली के साथ बराबरी करनी थी. खेल के लगभग अंतिम मिनटों तक मैच बराबरी पर था. ब्राजील को अगले दौर में पहुंचने के लिए पांच-छह मिनट सिर्फ बचाव का खेल खेलना था, लेकिन वह टीम अपना स्वाभाविक आक्रामक खेल खेलती रही. मैच खत्म होने के जरा पहले पाउलो रोसी ने इटली के लिए एक गोल कर दिया और ब्राजील की टीम विश्व कप से बाहर हो गई.


लगातार जीत के बाद इटली से मिली थी हार

इटली का प्रदर्शन इसके पहले बहुत अच्छा नहीं रहा था. इस मैच में भी ब्राजील पूरे वक्त इटली पर हावी रहा. इटली की टीम काफी मुश्किलों से जूझ रही थी. दो साल पहले एक मैच फिक्सिंग मामले में उसके पांच खिलाड़ियों पर पाबंदी लग गई थी, जिनमें पाउलो रोसी भी थे. पाउलो रोसी की पाबंदी की मियाद घटा दिए जाने की वजह से वे इस विश्व कप में खेल रहे थे. रोसी अपने दौर के सबसे महंगे खिलाड़ी थे. लेकिन इस मैच के पहले वे कोई तारे तोड़ कर नहीं ला पाए थे. पर जैसे कि होना था, इस मैच में इटली की तरफ से उन्होंने हैट ट्रिक कर दी और ब्राजील 3-2 से हार गया.

इसके पहले ब्राजील ने सोवियत संघ, स्कॉटलैंड और अपने लैटिन अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी माराडोना की अर्जेंटीना को हराया था. दूसरे दौर के इस मैच के पहले ब्राजील ही एक टीम थी, जिसने सारे मैच जीते थे और ऐसे अंदाज में जीते थे कि लोग मंत्रमुग्ध हो गए थे. जैसे कि उस टीम के एक महान खिलाड़ी जीको ने कहा कि वे ऐसी फुटबॉल खेल रहे थे, जैसी सब लोग देखना चाहते थे. गोल करने के लिए, आक्रामक फुटबॉल. उनके खेल में एक स्वाभाविक उल्लास की लय थी. उनका हर मूव जैसे संगीत की लहर थी और उनका किया हर गोल अब तक याद किया जाता है. उनके खेल में कुछ भी औसत, रूटीन या साधारण नहीं था.

देश लौटकर होगा चैंपियन जैसा स्वागत

इस टीम के कोच संताना थे और कप्तान थे सॉक्रेटीस. ज़ीको, एडेल और जूनियर जैसे खिलाड़ियों के नाम आज भी लोगों के मन में उस टीम की याद दिला देते हैं. हारने के बाद भी उस टीम की लोकप्रियता कम नहीं हुई. कोच संताना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके आने और वहां से जाने, दोनों वक्त तालियों की गड़गड़ाहट हुई. टीम जब वापस रियो डि जिनेरियो पहुंची तो हवाई अड्डे पर उसके स्वागत के लिए ऐसी भीड़ उमड़ी थी जैसी किसी विजेता टीम के स्वागत में उमड़ती है. इस टीम के प्रति लोगों का प्रेम हार जीत के परे था, बल्कि उसकी हार ने लोगों के मन में सहानुभूति जगा दी थी.

फुटबॉल प्रेमियों ने इस हार में सिर्फ़ एक टीम की हार नहीं महसूस की, बल्कि फुटबॉल के एक युग की समाप्ति को महसूस किया. एक जानकार ने लिखा कि अगर उस दिन ब्राज़ील की टीम जीत जाती तो शायद बाद के दिनों में फुटबॉल अलग क़िस्म का खेल होता, शायद बहुत बेहतर खेल होता. यह हार फुटबॉल की एक शैली की हार थी, प्रतिभा, कलात्मकता और सहज अभिव्यक्ति का खेल उस दिन यूरोपीय व्यवस्था के खेल से हार गया और वह शैली भी इतिहास की बात हो गई. वह मैच टीम हार गई, वह विश्व कप भी नहीं जीत पाई.  लेकिन उस टीम की उससे भी बड़ी जीत यह है कि जो लोग तमाम विजयों को याद नहीं रखते, उन्हें आज भी वह मैच और वह पराजय याद है. इससे बड़ी जीत क्या होगी ?