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रेसलिंग लीग का टलना नोटबंदी का असर या बहाना?

15 दिसंबर से होनी थी लीग की शुरुआत, अभी तक नहीं हो सका है ऑक्शन

Shailesh Chaturvedi

अब तक लोढ़ा कमेटी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए क्रिकेट बोर्ड पैसों की कमी का रोना रो रहा था. अब नोटबंदी को खेलों की लीग स्थगित करने की वजह बताया जा रहा है. प्रो रेसलिंग लीग 15 दिसंबर से होनी थी. लेकिन अचानक आयोजकों ने विमुद्रीकरण या नोटबंदी की वजह बताते हुए इसे स्थगित करने की घोषणा कर दी. सवाल यही है कि क्या वाकई नोटबंदी की वजह से ही लीग स्थगित की गई है?

क्या लीग में पेमेंट कैश में होता है!


सवाल यही है कि क्या इसे गंभीरता से लिया जाए, या मान लिया जाए कि गलतियां छुपाने के लिए इसे एक वजह बनाया ज रहा है. ठीक उसी तरह, जैसा बीसीसीआई के बारे में कहा जा रहा था कि कोर्ट पर दबाव डालने के लिए पैसों की कमी के चलते सीरीज रद्द करने की धमकी दी जा रही है. सबसे पहले, कौन सी फ्रेंचाइजी अपनी फीस से लेकर खिलाड़ियों की फीस तक रुपयों में अदा करती है? ऐसा तो नहीं हो सकता कि ब्रीफकेस में पैसे दिए जाएं. पिछले साल जब लीग हुई थी, तब भी समय से फीस देने पर विवाद था. लेकिन जब पैसे दिए गए, तो ऑनलाइन ट्रांसफर हुए, जो आम है.

कई फ्रेंचाइजी ने किया है हटने का फैसला

कुछ समय पहले घोषणा की गई थी कि लीग में आठ टीमें होंगी. 15 या 16 नवंबर को खिलाड़ियों की नीलामी होगी. जबकि हकीकत ये है कि पिछले साल जिन फ्रेंचाइजी ने टीमें खरीदी थीं, वो भी साथ नहीं हैं. दिल्ली की जीएमआर ग्रुप, बैंगलोर के जेएसडबल्यू और मुंबई के गरुण ग्रुप ने हटने का फैसला किया है. हालांकि मनाने की कोशिश हो रही है, लेकिन अभी फैसले बदलते नहीं दिख रहे. इन टीमों से जुड़े अधिकारी हटने के इस फैसले को नोटबंदी से नहीं, प्रोफेशनल तरीके से लीग न कराए जाने के साथ जोड़ रहे हैं.

पहले भी विवादों में रही है लीग

पिछले साल लीग पहली बार आयोजित हुई थी. तब दो पार्टनर प्रोस्पोर्टिफाई और स्पोर्टी सॉल्यूशंस इसे मिलकर करवाना चाहते थे. इन्होंने भारतीय कुश्ती संघ के साथ मिलकर लीग करवाने का फैसला किया था. बाद में, विवाद हुए, जिसकी वजह से स्पोर्टी सॉल्यूशंस इसका हिस्सा नहीं रहा. प्रोस्पोर्टिफाई ने अकेले लीग कराई. उसमें तमाम विवाद हुए. लखनऊ टीम के खिलाड़ियों को कई महीने बाद पैसे मिले. तकनीकी अधिकारियों के पैसे भी काफी बाद में मिले. विजेता को प्राइज मनी देने को लेकर भी विवाद रहा. दूसरी तरफ, यह भी कहा गया कि फ्रेंचाइजी ने अपनी पूरी फीस भी नहीं दी हैं.

फेडरेशन ने इस बीच कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने के लिए प्रोस्पोर्टिफाई को नोटिस भेज दिया. हालांकि विवाद सुलझा, उसके बाद लीग बड़े स्तर पर कराने का फैसला किया गया. लेकिन अब आयोजकों की पहली कोशिश सभी छह फ्रेंचाइजी को लाने की है. प्रोस्पोर्टिफाई का कहना है कि जल्दी ही नई तारीख घोषित की जाएगी. सवाल यही है कि अगर नोटबंदी की वजह से स्थगन का फैसला हुआ है, तो इतनी जल्दी हालात कैसे सुधर जाएंगे और इतनी जल्दी कैसे बाकी टीमों के लिए फ्रेंचाइजी चुन ली जाएंगी.

नई तारीख की घोषणा, फिर भी संदेह बरकरार

आयोजकों ने नई तारीख घोषित कर दी है. इसके मुताबिक 2 जनवरी से लीग होगी. वो भी सिर्फ दिल्ली में. हालांकि इस घोषणा ने संदेह और बढ़ा दिया है. क्या महज 20 दिन में नोटबंदी का असर खत्म हो जाएगा? फ्रेंचाइजी को लेकर संदेह बरकरार है. खिलाड़ियों में अमेरिकी बड़े नाम नहीं आ रहे हैं, उसे लेकर दिक्कतें भी बरकरार हैं. नोटबंदी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया. लेकिन अब क्या नई तारीखें भी संदेह खत्म कर पाएंगी?