पिछले हफ्ते एक खबर थी, जो क्रिकेट की चकाचौंध में गुम हो गई. भारतीय नजरिए से भी खबर अहम थी और विश्व खेलों के नजरिए से भी. 2024 के ओलिंपिक के आयोजन की दौड़ में महज दो शहर बचे. लॉस एंजिलिस और पेरिस. शुरुआत में पांच शहर थे. दो पहले ही बाहर हो गए थे. आखिर में हंगरी के शहर बुडापेस्ट ने भी नाम वापस लेने का फैसला किया.
पांच में से तीन दावेदार क्यों हट गए
आखिर ऐसा क्यों? क्या ओलिंपिक आयोजन अब सिर्फ अमीर देशों के लिए ही संभव रह गया है? लॉस एंजिलिस मतलब अमेरिका और पेरिस मतलब फ्रांस. इससे पहले रोम, हैमबर्ग, बुडापेस्ट और अमेरिकी शहर बोस्टन दावेदारों में थे. लेकिन ये माना गया कि ओलिंपिक्स का आयोजन राजनीतिक नजरे से नेगेटिव असर डालेगा. इसके लिए होने वाला खर्च शहर को बहुत भारी पड़ेगा. इस वजह से एक के बाद एक शहर हटते गए.
भारतीय नजरिए से आप समझ सकते हैं कि कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के आसपास क्या हुआ था. विशेषज्ञ मानते हैं कि भव्यता और खेल आयोजन के लिहाज से दिल्ली कॉमनवेल्थ खेल श्रेष्ठतम थे. लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर जो कुछ भी और जितना भी हुआ, उससे भारत के लिए अगले किसी बड़े खेल आयोजन की दावेदारी आसान नहीं रही. अब भारत दावा करेगा, तो सौ बार सोच-समझ कर. कॉमनवेल्थ खेलों का ही रुख था कि भारत ने एशियाई खेलों में अभी दावेदारी न करने का फैसला लिया.
अब तक नहीं संभल पाई है एथेंस की इकॉनमी
कॉमनवेल्थ खेल तो आयोजन के लिहाज से बहुत छोटे हैं. यहां बात ओलिंपिक की है. 2004 के एथेंस ओलिंपिक हम सभी को याद होंगे. भावनात्मक पहलुओं ने भी एथेंस को मेजबानी दिए जाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन उसके बाद क्या हुआ? शहर कर्जे में आकंठ डूब गया. अब तक वहां की इकॉनोमी उबर नहीं पाई है.
ओलिंपिक में सबसे बड़ा खर्च खेल आयोजन से हटकर ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी पर आ गया है. इसे हर देश अपनी ताकत आजमाने का जरिया मानता है. बीजिंग ओलिंपिक की ओपनिंग सेरेमनी को चीन ने अपनी ताकत दिखाने का ही जरिया बनाया था. बारिश को भी नियंत्रित करने का काम चीन ने कर दिया था. उसके बाद 2012 में लंदन ओलिंपिक हुए. यहां पर खर्चा चीन से कम किया गया. हालांकि यहां भी खर्च बहुत ज्यादा था. यहां ओपनिंग सेरेमनी स्लमडॉग मिलियनेयर जैसी फिल्म के डायरेक्टर डैनी बॉयल ने तैयार की थी. खर्च हुए थे चार करोड़ डॉलर.
ओपनिंग और क्लोजिंग सेरेमनी का खर्च पड़ता है भारी
लंदन से जब ओलिंपिक्स आयोजन रियो आए, तो खर्चा और कम किया गया. इसे करीब आधा कर दिया गया. लेकिन आप समझ सकते हैं कि आधा खर्च भी कितना बड़ा है. आलम ये है कि अगर नए स्टेडियम न बनाने हों, तो ओपनिंग और क्लोजिंग के खर्च ही गेम के कुल खर्चे का बड़ा हिस्सा होते हैं.
क्या बाख का सुझाव मानने लायक है?
इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी (आईओसी) के अध्यक्ष थॉमस बाख ने सुझाव दिया कि 2024 ओलिंपिक के लिए बचे दो शहरों में एक को 2024 और 2028 की मेजबानी दे दी जाए. शायद उसके पीछे एक वजह ज्यादा देशों की रुचि न होना भी होगा. भले ही इसे अभी ज्यादा समर्थन नहीं मिला है. लेकिन माना जा रहा है कि बाख सितंबर में होने वाली आईओसी मीटिंग में सुझाव फिर से रखेंगे.
70 के दशक में भी ओलिंपिक आयोजन के लिए शहर का मिलना मुश्किल हो रहा था. लेकिन तब खर्च से ज्यादा मुद्दा राजनीतिक था. अब मामला खर्चे पर आ गया है. ओलिंपिक का आयोजन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए भारी पड़ रही है. खासतौर पर कम अमीर देशों के लिए.
अभी अगर लॉस एंजिलिस ने दावा ठोका है, तो इसके पीछे एक वजह ये भी है कि उन्हें नए स्टेडियम बनाने की जरूरत नहीं है. उनके पास करीब 30 आयोजन स्थल हैं, जहां गेम हो सकते हैं. ऐसे में एक बड़ा खर्चा कम हो जाता है. यही हाल पेरिस का है. लेकिन अगर 2028 के आयोजन इनमें से किसी शहर को दिए जाते हैं, तो पता नहीं कि वे इसे मंजूर कर पाएंगे या नहीं. तब तक इन शहरों के आयोजन स्थलों को पुनर्निर्माण की जरूरत पड़ेगी.
ऐसे में जरूरी है कि खर्चे कम किए जाएं. वरना ओलिंपिक मूवमेंट पर गहरा असर पड़ेगा. भारत जैसे देश भी शायद ही रुचि दिखा पाएं. एक समय, जब उमा भारती खेल मंत्री थीं, तब उन्होंने एशियाड और ओलिंपिक के आयोजन की बात की थी. लेकिन तब भी सभी जानते थे कि ये सिर्फ बातें हैं. लेकिन क्या अब बातें करने की भी हिम्मत बहुत से देश जुटा पाएंगे?