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ओडिशा की खेल 'राज'नीति : क्या खेल और टूरिज्म से जीते जा सकते हैं इलेक्शन?

ओडिशा में खेलों और टूरिज्म के जरिए हो रही है सरकार की इमेज बेहतर करने की कोशिश, अगले साल होने हैं आम चुनाव

Shailesh Chaturvedi

भुवनेश्वर एयरपोर्ट पर उतरते ही नजर घुमाइए, होर्डिंग लगे दिखेंगे, जिससे समझ आएगा कि हॉकी वर्ल्ड कप करीब है. बाहर निकलिए, वहां बड़े-बड़े होर्डिंग लगे दिखाई देंगे. अगर एक होर्डिंग में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बड़ी तस्वीर है, तो यकीन मानिए, उसके साथ दूसरा होर्डिंग होगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर आएंगे. इससे समझ आएगा कि इलेक्शन करीब हैं. पूरे शहर में बड़े होर्डिंग आपका स्वागत करेंगे. दिलचस्प है कि इन होर्डिंग में बड़ी तादाद टूरिज्म यानी पर्यटन और खेल की होगी

क्या वाकई ये खेलों का प्रमोशन है? या खेलों के जरिए इलेक्शन में उतरने की तैयारी है? क्या वाकई खेल इतने अहम हैं कि इलेक्शन का मुद्दा बन सकें? अब तक तो ऐसा नहीं हुआ था. क्या ये एक नए किस्म की शुरुआत है? ओडिशा सरकार के करीबी एक शख्स इसे कुछ यूं बयां करते हैं, ‘पिछले कुछ समय से सरकार को समझ आया है कि दुनिया के नक्शे पर खेल और टूरिज्म से ऊपर आया जा सकता है. इससे इमेज मेक-ओवर किया जा सकता है. खेल आपको वोट दिलाए या न दिलाए, लेकिन इमेज सुधारने के लिए बड़ा माध्यम है.’


ओडिशा में लगातार हो रहे हैं खेल आयोजन

पिछले कुछ समय में ओडिशा या भुवनेश्वर ने कई बड़े खेल इवेंट का आयोजन किया है. हॉकी हमेशा से ओडिशा की ताकत रही है. ऐसे में चैंपियंस ट्रॉफी, हॉकी वर्ल्ड लीग या कुछ दिनों बाद होने वाले वर्ल्ड कप के आयोजन से किसी को शायद ही ताज्जुब हुआ हो. इस बीच 2017 की एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप हुई. खास बात है इन सभी इवेंट को प्रमोट किए जाने का तरीका. राष्ट्रीय अखबारों में इनके विज्ञापन पहले पेज पर छपे. सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बाकी महानगरों से छपने वाले अखबारों में भी प्रमुखता से विज्ञापन छपे हैं.

भारतीय खेलों में ऐसा पहली बार है, जब कोई राज्य किसी खेल का प्रमुख स्पॉन्सर बना है. कुछ समय पहले दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में रंगारंग कार्यक्रम के बीच ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इसकी घोषणा की थी. पांच साल तक ओडिशा सरकार की तरफ से भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम को सपोर्ट किया जाएगा. रकम भी मामूली नहीं, पिछले स्पॉन्सर के मुकाबले दोगुने से ज्यादा.

उस वक्त हॉकी के पूर्व दिग्गज धनराज पिल्लै ने कहा भी कि अगर हर राज्य एक खेल को सपोर्ट करने लगे, तो देश में खेल का चेहरा बदल जाएगा. यकीनन ऐसा होगा. लेकिन यहां सवाल तो उठता ही है कि आखिर किसी राज्य को ऐसा करने की क्या जरूरत पड़ी? क्या ये महज खेलों को लेकर उसका प्यार है या फिर इसके जरिए कुछ और करने की मंशा है.

ग्रास रूट लेवल पर भी खेलों को बढ़ावा

मामला सिर्फ बड़े खेल आयोजनों तक सीमित नहीं है. पिछले दिनों ओडिशा खेल सचिव विशाल देव ने बताया था कि हॉकी का हाई परफॉर्मेंस सेंटर भी भुवनेश्वर में बन रहा है. इसके साथ ही, एथलेटिक्स का सेंटर दिसंबर तक शुरू हो जाएगा. नेशनल अंडर-15 फुटबॉल टीम का होम ग्राउंड भी भुवनेश्वर को ही बनाया गया है.

यह साफ है कि बड़े इवेंट के साथ ग्रासरूट लेवल पर भी ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन अभी फोकस बड़े इवेंट के जरिए सरकार के कामों को सामने लाने का है. विज्ञापन देना उसी की तरफ कदम है. लंदन सहित दुनिया के कई शहरों की बसों पर भी हॉकी वर्ल्ड कप के विज्ञापन हैं. पिछले दिनों कौन बनेगा करोड़पति में मख्यमंत्री नवीन पटनायक हॉकी और खेलों को सपोर्ट करने के साथ पूरी दुनिया को ओडिशा आने और यहां के टूरिज्म से जुड़ने का निमंत्रण दे गए. नवंबर के पहले सप्ताह में स्पोर्ट्स लिट फेस्ट है, जिसमें दुनिया के तमाम बड़े एथलीट आएंगे. इस इवेंट को भी ओडिशा सरकार का समर्थन हासिल है.

अब तक पंजाब और हरियाणा रहे हैं खेलों में आगे

यह एक नए किस्म की राजनीति है. एक समय पंजाब ने कुछ इस तरह की कोशिश की थी कि हर गांव में खेलों को पहुंचाया जाए. लेकिन उसको उन्होंने अपनी उपलब्धियों की तरह नहीं देखा था. हरियाणा को खेलों का हब माना जाता है. यह राज्य किसी बड़े इवेंट में जीतने वाले एथलीट को सबसे ज्यादा इनामी रकम देता है. लेकिन यहां भी मामला इसी तक सीमित था. ओडिशा सरकार उसे आगे लेकर गई है. उसने खेलों को टूरिज्म से जोड़ा है, क्योंकि भुवनेश्वर के आसपास कोणार्क, पुरी जैसे तमाम टूरिस्ट प्लेस हैं. साथ ही, इसे राजनीति से जोड़ा है.

आम चुनावों के साथ ही ओडिशा में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में ये सारी कवायद 71 साल के नवीन पटनायक की सरकार को अलग छवि देने का काम कर रही है. वैसे भी ओडिशा में ‘नबीन बाबू’ की इमेज हमेशा ही अच्छी रही है. उनकी सरकार से नाराज होने वाले लोग भी यह बताते रहे हैं कि ‘नबीन बाबू’ अच्छे आदमी हैं. ‘अच्छे आदमी’ इस वक्त बीजेपी से मिल रही कड़ी चुनौती के बीच इलेक्शन में खेलों को कैसे हथियार बना पाएंगे, ये देखना दिलचस्प होगा. लेकिन उसमें अभी कुछ महीने बाकी हैं. तब तक जो हो रहा है, उससे कम से कम खेलों का तो बड़ा फायदा है.