इस हफ्ते खेल की दुनिया में महिलाओं ने जो कमाल किया है वो वाकई काबिले तारीफ है. जहाँ भारत की महिला हॉकी टीम ने चीन को हराकर एशिया कप जीता वही अपनी सुपर बॉक्सर मैरी कॉम ने एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप का स्वर्ण देश में वापस लाने का सपना पूरा किया. तीन बच्चों की मां ने दिखा दिया कि मन में अगर सही लगन हो तो कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं है.
एक समय था जब राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिलाएं गिनी चुनी ही थी. सबसे पहली भारतीय महिला जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर नाम किया वो थी पी टी उषा. भारत की उड़नपरी के नाम से मशहूर हुई पीटी उषा ने जब ओलिंपिक के फाइनल में जगह बनाई तो हमारे पुरुष प्रधान देश में कई लोगों के लिए ये खबर चौंकाने वाली थी. वो भले ही ओलिंपिक में मैडल न जीत पाई हो लेकिन वो 80 और 90 के दशक में कई भारतीय महिलाओं के लिए खेल में शामिल होने के लिए प्रेरणास्रोत बनी.
पीटी उषा से सानिया मिर्जा तक, कर्णम मल्लेश्वरी से मैरी कॉम तक भारत ने महिला खेल की दुनिया में एक लंबा सफर तय किया है. भारतीय महिलाएं मुक्केबाजी, कुश्ती, क्रिकेट जैसे खेलों में आजकल सुर्खियां बना रही हैं.
एक संघर्ष की कहानी
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम का नाम सुनकर सबसे पहले दिल और दिमाग में एक निर्भीक और साहसी महिला की तस्वीर उभर आती है. मैरी कॉम का जन्म पश्चिमी भारत के मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के काङथेइ गांव में हुआ. बचपन से ही मैरी कॉम को एथलेटिक्स में दिलचस्पी थी और सन् 2000 में डिंको सिंह ने उन्हें बॉक्सर बनने के लिए प्रेरित किया. एक किसान की बेटी के लिए बॉक्सिंग रिंग में अपना करियर बनाना कोई आसान काम नहीं था. मैरी कॉम ने जब बॉक्सिंग शुरू की थी, तो उन्हें अपने घर से कोई समर्थन नहीं मिला. घर वाले मैरी कॉम के बॉक्सिंग के खिलाफ थे, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने उनके घर वालों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया.
गांव में ना प्रैक्टिस करने की जगह और ना ही उतनी सुविधाएं मौजूद थी. बॉक्सर के लिए जो डाइट चाहिए होती है वो भी उन्हें मुश्किल से ही मिल पाती थी. मैरी ने 2000 में अपना बॉक्सिंग करियर शुरू किया था और तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद खुद को न केवल स्थापित किया बल्कि कई मौकों पर देश को भी गौरवान्वित किया. 2008 में इस महिला मुक्केबाज को 'मैग्नीफिशेंट मैरी कॉम' की उपाधि दी गई. बॉक्सिंग रिंग में भारत का नाम रोशन करने वाली मैरी कॉम की पूरी कहानी को फिल्मी परदे पर भी चित्रित किया गया और उस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने उनकी भूमिका निभाई.
रिंग में वापसी
मैरी कॉम ने करीब एक साल बाद मुक्केबाजी रिंग में वापसी की है. यह 2014 एशियाई खेलों के बाद उनका ये पहला अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक है. उन्होंने इस जीत के साथ टूर्नामेंट में अपना शानदार रिकार्ड बरकरार रखा है. वह सभी छह बार फाइनल में पहुंची और बस एक बार रजत पदक से संतोष करना पड़ा. उसने 2003, 2005, 2010 और 2012 में भी गोल्ड जीता था. मैरी अपनी कोरियाई प्रतिद्वंद्वी के किसी भी आक्रमण से विचलित नहीं हुई और पूरे सब्र के साथ खेलते हुए जीत दर्ज की.
परिवार और फिटनेस
मैरीकॉम को 'सुपरमॉम' के नाम से भी जाना जाता है. 35 वर्षीय मैरीकॉम के तीन बच्चे हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बॉक्सिंग करना नहीं छोड़ा. उनकी फिटनेस देखकर कोई नहीं कह सकता कि वो तीन बच्चों की मां हैं. 35 साल की उम्र में भी बॉक्सिंग रिंग के अंदर उनकी फिटनेस और तेजी देखने लायक होती है. विरोधी पर मैरी कॉम पंच की बरसात करती हैं और बहुत ही तेजी से खुद को उनके प्रहारों से बचाती भी हैं और यही वजह है उनके ज्यादातर मुकाबले एकतरफा होते हैं. पांच बार की वर्ल्ड चैंपियन, लंदन ओलिंपिक गेम्स में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट और एशियन गेम्स में पहला गोल्ड जीतने वाली मैरीकॉम अपनी फिटनेस के लिए कड़ी मेहनत करती हैं. खिताबी जीत के बाद मैरी ने बताया कि उनकी जीत की वजह उनकी फिटनेस है. उन्होंने कहा- मैं हमेशा से यह जानती थी कि अगर मैं फिट रहूंगी तो गोल्ड मेडल मेरे कब्जे में रहेगा. मैंने खुद को फिट रखा और रिजल्ट सबके सामने है.
राज्य सभा सदस्य के तौर पर
जब उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया तो वो उनके लिए भी चौंकाने वाली ही खबर थी. उस समय उन्होंने कहा था की ये उनके लिए बहुत सम्मान की बात है और उन्होंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की थी. लेकिन सबसे बड़ी बात ये रही की उनके करीब डेढ़ साल के कार्यकाल के दौरान उनपर कभी भी राज्यसभा में अनुपस्थिति को लेकर सवाल नहीं उठे. मनोनीत सदस्यों में सचिन तेंदुलकर, रेखा जैसे शख्सियत पर भी सालों से उनकी अटेंडेंस को लेकर कई सवाल उठते रहे है.
मैरी बताती है की कैसे वो इस साल बजट सेशन के दौरान सुबह 7 बजे प्रैक्टिस के लिए इंदिरा गाँधी स्टेडियम जाती थी. वापस घर आकर कपड़े बदलकर पार्लियामेंट के लिए निकल पड़ती थी, ताकि उनके ऊपर उनके अटेंडेंस को लेकर कोई सवाल खड़ा न हो.
तो फिर कैसे परिवार, पॉलिटिक्स और बॉक्सिंग रिंग को वो एक साथ मैनेज करती है. मैरी अपनी तुलना फिलीपींस के मैनी पैक्युओ, जो सीनेट मेंबर भी है और एक प्रोफेशनल बॉक्सर भी, से किए जाने पर खुलकर जबाब देती है और बताती है की उनका दायरा और भी बड़ा है क्यूंकि वो एक मां भी है और बच्चों के लिए भी काफी वक्त निकलती है. मजाक में कहती है की काश एक दिन 48 घंटे का होता.
राज्य सभा के सदस्य के तौर पर उनका फोकस सिर्फ खेल नहीं होता है. वो कई बार मणिपुर में आर्थिक नाकेबंदी को लेकर सवाल उठा चुकी है. वह चाहती हैं की मणिपुर में जल्द से जल्द शांति वापस आये और चीजें सामान्य हो जाए.
आगे भी है उम्मीद
एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने के बाद उनसे देश की उम्मीदें और भी बढ़ गई हैं. मैरी कॉम ने साफ तौर पर कहा है की वह दो साल और बॉक्सिंग करना चाहती है. ऐसे में हमें उनसे कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियाई गेम्स में मैडल जीतने की पूरी उम्मीद है.
मैरी कॉम - उपलब्धियां
2012 के ओलिंपिक में कांस्य पदक
एशियन महिला मुक्केबाज़ी प्रतियोगिता में 5 स्वर्ण और एक रजत पदक
एशियाई खेलों में 2 रजत और 1 स्वर्ण पदक
मैरी कॉम को साल 2003 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
2006 में पद्मा श्री, 2013 में पद्मा भूषण और 2009 में राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड
पहली भारतीय महिला एथलीट हैं, जिन पर फिल्म बनी - इसमें प्रियंका चोपड़ा ने मैरी कॉम की भूमिका निभाई