view all

सुपर सीरीज के अगले कदम को तैयार हैं सायना

एक-एक कदम के साथ टॉप पर पहुंचना चाहती हैं सायना

Shirish Nadkarni

भारत की पूर्व नंबर एक बैडमिंटन की खिलाड़ी सायना नेहवाल और विश्व के महानतम टेनिस खिलाड़ियों में एक आंद्रे अगासी के करियर ग्राफ में कुछ समानता है. हालांकि ज्यादा नहीं. अगासी ने आठ ग्रैंड स्लैम खिताब जीते. 1996 में ओलिंपिक गोल्ड जीता. उन चंद खिलाड़ियों में वो हैं, जिन्होंने करियर ग्रैंड स्लैम जीता है. यानी ऑस्ट्रेलियन, फ्रेंच, विंबलडन और यूएस ओपन खिताब जीते हैं.

1995 में अगासी करियर के शीर्ष पर पहुंचे थे. तब उन्होंने साथी अमेरिकी पीट सैंप्रास को पीछे छोड़कर नंबर एक की रैंकिंग पाई थी. 1997 में अगासी का खेल से मन उठ गया था. तमाम व्यक्तिगत समस्याएं भी थीं. इसमें ड्रग्स का मामला भी था. एटीपी रैंकिंग में वो 141वें नंबर पर फिसल गए. अगासी ने वापसी की और 1999 में फिर नंबर वन बने. अगले चार साल वो सबसे कामयाब खिलाड़ियों मे थे.


सायना कैसे बनीं चैंपियन, पढ़ें रिपोर्ट

टॉप पर वापसी के लिए टेनिस के दिग्गज खिलाड़ी को कई महीने तक चैलेंजर सर्किट में खेलना पड़ा. यहां से उन्होने एटीपी अंक कमाए. बडे टूर्नामेंट में जगह पाई. मुख्य ड्रॉ में पहुंचे.

सायना नेहवाल का हालिया समय अगासी के आसपास है, जहां वो 1998-99 मे थे. हालांकि सही होगा कि हम पहले दोनों मामलों का फर्क समझ लें. हरियाणा मे जन्मी और हैदराबाद में रहने वाली 26 साल की सायना का मन कभी बैडमिंटन से उकताया नहीं था. वह कभी ड्रग्स की तरफ नहीं गईं.

सायना की रैंकिंग 2009 के बाद, 24 नवंबर 2016 तक कभी टॉप टेन से नीचे नहीं आई. नवंबर में वह 11वें नंबर पर फिसले. इसकी वजह थी कि 75 दिनों तक वह सर्किट से बाहर थीं. उनके घुटने की सर्जरी हुई थी.

रविवार को ही सायना ने ही मलेशिया मास्टर्स ग्रांप्री गोल्ड टूर्नामेंट जीता है. वह टॉप टेन में आ गई हैं. उन्होंने इसके लिए अगासी की तरह छोटे टूर्नामेंट को चुना. सुपर सीरीज या सुपर सीरीज प्रीमियर टूर्नामेंट के 25 हजार डॉलर से उलट यहां इनामी रकम नौ हजार डॉलर थी.

सायना को ग्रांप्री गोल्ड लेवल तक जाने की जरूरत नहीं थी. 11वें नंबर पर रहकर भी उन्हें सुपर सीरीज टूर्नामेंट में सीधा स्थान मिल जाता. सिर्फ साल के आखिर में होने वाली बीडबल्यूएफ ग्रैंड फाइनल्स से बाहर रहतीं, जहां टॉप आठ खिलाड़ी ही खेलते हैं. इसके लिए साल भर सुपर सीरीज टूर्नामेंट्स का प्रदर्शन देखा जाता है.

उनके कोच विमल कुमार की सोच को सलाम करना पड़ेगा. उन्होंने सायना  को मलेशिया मास्टर्स में खेलने को कहा. वह चाहते थे कि सायना धीरे-धीरे वापसी करें. इरादा था कि सायना बहुत ज्यादा कोशिश के बगैर खेलें और जीतकर भरोसा पाएं. सीधे सुपर सीरीज का मतलब था कैरोलिना मरी, ताइ जू यिंग, सुंग जी ह्यून, सुन यू, राचानोक इंतनोन जैसी खिलाड़ियों से खेलना.

ताज्जुब नहीं हुआ की टॉप सीड सायना ने सीधे गेम की जीत के साथ खिताब जीता. सेमीफाइनल में हॉन्गकॉन्ग की यिप पुइ यिन और थाइलैंड की पॉर्नपावी चोचुवोंग के खिलाफ सीधे गेम में जीती थी. हालांकि फाइनल में उन्हें जीत के लिए दोनों गेम में कड़ी मेहनत करनी पड़ी. उन्होंने 22-20, 22-20 से मैच जीता.

यिप और पॉर्नपावी के खिलाफ सायना ने कुछ रैलियों में बगैर किसी हिचकिचाहट के दाएं घुटने पर पूरा जोर डाला था. उन्हें इसका बुरा असर भी नहीं पड़ा. हालांकि यह साफ था कि मैच की शुरुआत में वह दाएं पैर पर ज्यादा दबाव डालने से बच रही थीं. उन्होंने माना कि दोनों मैचों में वॉर्म-अप के लिए उन्हें समय लगा. ऐसा वो टॉप खिलाड़ियों के खिलाफ नहीं कर सकती थीं.

उनके कोच विमल कुमार ने कहा, ‘उनके भरोसे के लिए यह जीत अहम है. हालांकि मलेशिया मास्टर्स में कंपटीशन का स्तर सुपर सीरीज टूर्नामेंट से नीचे था.’ विमल ने माना कि आमतौर पर ग्रांप्री गोल्ड टूर्नामेंट में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ी युवा होते हैं. उन्हें बड़े सितारों का कोई  फर्क नहीं पड़ता. वे पूरा जोर लगाते हैं. इससे ऊंची रैंक वाले खिलाड़ियों पर दबाव पड़ता है. वे रैंकिंग और ख्याति बचाने के लिए खेलते हैं.

विमल ने कहा, ‘आपने देखा कि पॉर्नपावी ने किस तरह च्यूंग एनगन यी को हराया. यी 19वीं रैंक खिलाड़ी हैं, जबकि पॉर्नपावी को दुनिया में 67वीं वरीयता हासिल है.’ विमल ने कहा, ‘हमने च्यूंग को प्रीमियर बैडमिंटन लीग में देखा है. हम देख चुके हैं कि वो कितनी अच्छी खिलाड़ी हैं. उन्होंने सायना को पिछले नवंबर में हॉन्गकॉन्ग ओपन में हराया था. पॉर्नपावी ने च्यूंग को हराया. इससे सायना पर फाइनल में अतिरिक्त दवाब था.’

विमल ने सायना के खेल की समीक्षा करते हुए कहा, ‘अगर आप सायना के पॉजिटिव और नेगेटिव पहलू देखेंगे, तो पाएंगे कि उनके पांव की रफ्तरा काफी बेहतर हुई है. हालांकि उनके फिटनेस को लेकर अब भी संदेह है. चोट से पहले के मुकाबले उसके बाद वो जल्दी थक जाती हैं.’

विमल ने कहा, ‘सर्जरी के बाद वजन बढ़ना स्वाभाविक था. वजन घटाने पर वह काम कर रही हैं. हमारी प्राथमिकता अभी उनकी ताकत और एंड्योरेंस को बढ़ाना है, ताकि टॉप खिलाड़ियों के खिलाफ लंबे मैच में वह बेहतर प्रदर्शन कर सकें. उनके पास इसके लिए काफी वक्त है. उनका अगला इंटरनेशनल टूर्नामेंट ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप है, जो मार्च के शुरुआत में होनी है.’

हम सब जानते हैं कि घुटने की सर्जरी के बाद सायना ने करियर को लेकर आशंका जताई थी. उन्हें लग रहा था कि कहीं करियर खत्म न हो जाए. लेकिन लंबे समय तक उनके कोच रहे गोपीचंद की तरह वह भी ऐसी चोट से वापसी कर रही हैं, जो उनके करियर को खत्म करने की आशंका लेकर आई थी.

गोपीचंद ने को 1994 नेशनल्स में घुटने की चोट लगी थी. उनके डबल्स पार्टनर उनसे टकरा गए थे. वह गोपी के ऊपर गिरे और पूरा वजन घुटने पर आया. घुटना बुरी तरह मुड़ गया था. इसके बावजूद गोपी ने खेलना जारी रखा, ताकि मुकाबले में उनकी टीम हार न जाए. हालांकि उन्हें चलने में बहुत दिक्कत हो रही थी. खेलना जारी रखने से चोट और बिगड़ गई.

मुश्किल सर्जरी के बाद गोपीचंद ने सैकड़ों घंटे अकेले जिम में बिताए. उन्होंने अपनी फिटनेस पर ध्यान दिया. जंप स्मैश के लिए जिन मांसपेशियों में मजबूती की जरूरत होती है, उन्हें सही किया. सात साल बाद उन्होंने 2001 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन जीता.

सायना के घुटने की चोट वैसी नहीं थी, जैसी गोपीचंद की थी. ऐसे में उन्हें अपने पूर्व कोच से प्रेरणा लेने की जरूरत थी. वह ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप में पोडियम पर दूसरे स्थान तक पहुंच चुकी हैं. 2015 में वह कैरोलिना मरीन से हारकर रनर अप रही थीं. सायना और उनके कोच ने जिस तरह एक सिस्टम के तहत वापसी तय की है, उससे भरोसा होता है कि सायना मजबूत कदम आगे बढ़ाएंगी. बर्मिंघम में वह मजबूती से खड़ी नजर आएंगी.