view all

संडे स्पेशल : वो महान हैं... फिर भी हार जाते हैं, क्योंकि वो इंसान हैं...

स्टार स्ट्राइकर क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनेल मेसी की टीमें फीफा वर्ल्ड कप से बाहर हो गई, यह बताता है कि वह किसी यंत्र का प्रयोग नहीं करते और इंसान है

Rajendra Dhodapkar

तकरीबन चालीस साल पहले भोपाल की ब्रिटिश लाइब्रेरी के खेल की किताबों वाले हिस्से में एक पतला सा उपन्यास देखने में आया. नाम था- बोनवैंचर एंड द फ़्लैशिंग ब्लेड. यह उपन्यास खेल के शेल्फ में इसलिए था, क्योंकि उसकी कथा एक विज्ञान फैंटेसी थी जो क्रिकेट पर आधारित थी.

इसे पढ़ने का खास आकर्षण उसके लेखक के नाम में था - गैरी सोबर्स. सोबर्स के बारे में जो कुछ लिखा जाता है, उसमें आम तौर पर इसका ज़िक्र नहीं मिलेगा, क्योंकि खुद सोबर्स इसे पसंद नहीं करते. शायद इसलिए कि इसे सोबर्स ने सचमुच लिखा नहीं है. उनकी लोकप्रियता के चरम के दौर में किसी ने इसे लिखा और सोबर्स के नाम से छपवा दिया , जैसा कि अमूमन खिलाड़ियों के अखबारी कॉलम होते हैं. लगता यह है कि शायद सोबर्स ने कभी इसे पूरा पढ़ा भी नहीं है.


इस उपन्यास की कथा जितनी याद है, वह ऐसी कुछ है कि एक क्रिकेट से अनजान कंप्यूटर वैज्ञानिक नौजवान क्रिकेट पर आधारित एक कंप्यूटर प्रोग्राम बनाता है. उसके सहारे कुछ नौसिखियों को लेकर ऐसी क्रिकेट टीम बनाता है, जो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की टीम के छक्के छुड़ा देती है. आज से पचास साल पहले जब कंप्यूटर के बारे में कम लोग जानते थे, तब कंप्यूटर के जरिये खेलों का विश्लेषण करने और उसके सहारे रणनीति बनाने का विचार अनोखा तो था ही.

दुनिया भर के फैंस को है मेसी के बाहर होने का दुख

इन दिनों फुटबॉल विश्व कप देखते हुए मुझे बार-बार यह उपन्यास याद आता रहा. इसलिए नहीं कि खेलों में टेक्नोलॉजी की दखलंदाजी काफी बढ़ गई है, बल्कि इसलिए कि यहां बार-बार याद आता है कि टेक्नोलॉजी के बावजूद हम इंसान हैं. इंसान होने का मतलब है कि उसके लिए कुछ भी तयशुदा नहीं है, वह कभी बहुत ऊंचाई पर जा सकता है, कभी एकदम गर्त में पड़ सकता है. खेलों में जो अनिश्चितता है, वही उनकी जान है. इसीलिए हम खेल देखते हैं, क्योंकि उनमें सब कुछ तयशुदा नहीं होता. सोचिए, अगर खेलों में सब कुछ तय होता तो हम खेल क्यों देखते.

जब फ्रांस से हार कर अर्जेंटीना के खिलाड़ी लौट रहे थे, तो ज़ाहिर है मेसी को देख कर सब भावुक हो रहे थे. मेसी मेरे सबसे प्रिय खिलाड़ी हैं. उनका इस तरह से हार कर जाना किसको बुरा नहीं लगेगा! ख़ासतौर पर इसलिए क्योंकि इस बात की संभावना नहीं है कि वे अगला विश्व कप खेलेंगे. लेकिन यह बताता है कि मेसी भी एक इंसान हैं, वे हर वक्त, हर टीम को नहीं जिता सकते. इसीलिए वे महान भी हैं, क्योंकि वे एक आम इंसान होकर अक्सर असाधारण खेल दिखा सकते हैं.

हार बताती है कि रोनाल्डो और मेसी भी इंसान है

किसी यंत्र के लिए हम महान होने का तमग़ा इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि हम यह जानते हैं कि वह किन परिस्थितियों में क्या काम करेगा. हम जानते हैं कि मेसी हो या रोनाल्डो, नेमार हो या एम्बापे, सब अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग किस्म से व्यवहार करते हैं. उन पर भी विश्व कप में खेलने का दबाव होता है, वे साथी खिलाड़ियों के व्यवहार से भी प्रभावित होते हैं. उनकी भावनाएं और सोच उनके प्रदर्शन को प्रभावित करती है. वे परफ़ेक्ट नहीं हैं, इसलिए महान हैं. परफ़ेक्ट होते तो शायद मशीनी होते, उनके साथ हमारी भावनाएं और उम्मीदें नहीं डूबती उतरातीं. ..और अगर ऐसा नहीं होता तो हम खेल क्यों देखते ?

अगर मेसी और रोनाल्डो हर मैच में एक जैसा ही खेलते तो हम क्यों उनके मैच देखते? वे जीत सकते हैं, वे हार सकते हैं, वे असाधारण खेल सकते हैं, वे बहुत औसत खेल सकते हैं, इसीलिए हर मैच दिलचस्प होता है. यहां तक कि जर्मनी की टीम जो सबसे ज्यादा व्यवस्थित तैयारी करती है, जो सबसे ज्यादा मज़बूत टीम हर कोण से दिखाई देती है, वह भी दबाव के आगे बिखर सकती है.

प्रसिद्ध गणितज्ञ रोजर पेनरॉज़ विज्ञान के दर्शन पर भी काफी कुछ विचार करते हैं. उनका मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कभी मनुष्य के दिमाग की जगह नहीं ले सकता. उनके पास कई जटिल वैज्ञानिक तर्क हैं. लेकिन उन्होंने एक सरल उदाहरण दिया, जो जोरदार है. उन्होंने लिखा कि हम किसी कंप्यूटर को शतरंज में जीतना सिखा सकते हैं, लेकिन कोई बड़ा खिलाड़ी अपने बेटे के साथ खेलते हुए जानबूझकर हार सकता है, यह कंप्यूटर नहीं कर सकता. इसलिए हार भी खिलाड़ी या टीम को बड़ा बनाती है, क्योंकि जब वह जीतती है तो हम यह मानते हैं कि उसने अपनी कमज़ोरी का सामना करते हुए जीत हासिल की है. जो जीतने के लिए प्रोग्राम्ड हो उस रोबोट का जीतना क्या मायने रखता है. इसलिए खेल देखना हमें आश्वस्त करता है कि शुक्र है, सारी तकनीकी तरक़्क़ी के बावजूद हम अब भी इंसान हैं क्योंकि हम जीत भी सकते हैं और हार भी सकते हैं.