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हां, 2018 में वर्ल्ड कप, कॉमनवेल्थ, एशियन गेम्स, चैंपियंस ट्रॉफी थे... लेकिन भारतीय हॉकी के लिए 2019 ज्यादा बड़ा साल है

साल 2019 में हॉकी इंडिया टीम या कोच को लेकर जो फैसले लेगा, उससे ही तय होगा कि 2020 ओलिंपिक्स में भारत क्या उम्मीद करे

Shailesh Chaturvedi

कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स, चैंपियंस ट्रॉफी और साल के आखिर में वर्ल्ड कप... इससे बड़ा साल क्या हो सकता था? भारतीय हॉकी में 2018 बेहद अहम साल था. इसके मुकाबले अगर 2019 पर नजर डालें, तो कुछ खास नहीं दिखाई देगा. सबसे अहम होंगे ओलिंपिक्स क्वालिफायर्स. यह सही है कि ओलिंपिक्स के लिए क्वालिफाई करना किसी भी लिहाज से कम नहीं है. लेकिन अगर 2018 के व्यस्त साल से मुकाबला करें, तो 2019 काफी खाली-खाली दिखता है. इसके बावजूद, 2019 की अहमियत 2018 से ज्यादा ही है.


2018 के पोस्टमॉर्टम का असर दिखेगा 2019 में

दरअसल, मैदान पर जो होना था, वो 2018 ने देखा. मैदान के बाहर क्या होगा, वो 2019 देखेगा. भारतीय हॉकी का नुकसान मैदान के भीतर हार से ज्यादा मैदान के बाहर पोस्टमॉर्टम ने किया है. हर हार के बाद का पोस्टमॉर्टम या कोच के साथ फेडरेशन के किसी ‘ताकतवर शख्स’ की नाराजगी ही है, जिसने 2010 से अब तक छह विदेशी कोच सहित सात कोचेज आजमाए जा चुके हैं. इसमें सबसे ज्यादा समय तक रोलंट ओल्टमंस ने दो साल से कुछ ज्यादा समय कोच के तौर पर बिताए. होजे ब्रासा से लेकर हरेंद्र सिंह तक हर किसी ने सिर पर तलवार देखी है, जो प्रोफेशनल सर्किल में जरूरी भी है. लेकिन वो तलवार अगर गलत समय किसी का गला काट दे, तो उसे किसी भी लिहाज से प्रोफेशनल नहीं कहा जा सकता.

2018 को ही देखिए. एशियन गेम्स से ठीक पहले हरेंद्र सिंह को कमान मिली. नए कोच के लिए ऐसे समय आना कतई ठीक नहीं. एशियन गेम्स के ठीक बाद और वर्ल्ड कप से चंद महीने पहले टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ी को ड्रॉप करने का फैसला किया गया. यह भी प्रोफेशनल किसी हालत में नहीं था. वर्ल्ड कप में छठे स्थान पर फिनिश करने के बाद एक बार फिर कोच और टीम को लेकर सुगबुगाहट चल ही रही है. मीडिया में खबरें ‘लीक’ कराई जा रही हैं कि हरेंद्र सिंह की जगह खतरे में है.

ओलिंपिक्स से महज डेढ़ साल पहले क्या फैसला होगा

यही मैदान के बाहर का खेल है. मैदान के भीतर हारने के मुकाबले बाहर का खेल ज्यादा खतरनाक है. ओलिंपिक्स में महज डेढ़ साल हैं. आमतौर पर किसी भी कोच को चार साल का कार्यकाल दिया जाता है. भारत में शायद ही ऐसा सोचा जाए. माइकल नॉब्स को लाया गया, उस वक्त 2012 ओलिंपिक्स में करीब 14 महीने बाकी थे. टेरी वॉल्श को जब लाया गया, तब एशियन गेम्स में एक साल से भी कम का वक्त था. रोलंट ओल्टमंस को लाया गया, तब रियो ओलिंपिक्स एक साल दूर थे. इसमें थोड़ी राहत इसलिए थी, क्योंकि ओल्टमंस हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर के तौर पर पहले से जुड़े हुए थे.

कुछ समय पहले अभिनव बिंद्रा ने हॉकी इंडिया को सबसे प्रोफेशनल फेडरेशन बताया था. लेकिन कम से कम इन उदाहरणों से तो ऐसा नहीं लगता कि ये सारे फैसले किसी टीम को एक ‘सिक्योर’ होने का भाव देते हों. जहां कोच के पास इतना समय हो कि वो कुछ प्रयोग कर सके. प्रयोग करने में कुछ टूर्नामेंट खराब भी निकल जाएं, तो गला न कटे. ऐसा नहीं हुआ है. ऐसे में 2019 भी आशंकाओं के साथ ही शुरू हो रहा है. यहां भी कोच और टीम के सीनियर खिलाड़ियों पर गाज गिरने से साल शुरू होगा? इन आशंकाओं की वजह से ही 2019 का साल किसी भी लिहाज से 2018 से कम अहम नहीं है. बल्कि  ज्यादा ही होगा, क्योंकि इस साल के फैसले ही तय करेंगे कि 2020 के ओलिंपिक्स में क्या होने वाला है.

2018 में कहां मिली निराशा और कहां दिखाई दी उम्मीद

2018 में चार बड़े टूर्नामेंट हुए. कॉमनवेल्थ गेम्स में बेहद कमजोर प्रदर्शन रहा. टीम खाली हाथ लौटी. 2014 की गोल्ड मेडलिस्ट टीम 2018 के एशियन गेम्स के फाइनल में नहीं पहुंच सकी. एक खराब मैच का खामियाजा भुगता और ब्रॉन्ज मेडल पाया. चैंपियंस ट्रॉफी यकीनन अच्छा रहा. भारत ने सिल्वर जीता. इसमें भी पेनल्टी शूट आउट में भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हारी. चैंपियंस ट्रॉफी किसी भी हॉकी टूर्नामेंट से ज्यादा मुश्किल होता है. उसके बाद वर्ल्ड कप में छठा स्थान. हालांकि तमाम लोगों को भारत के सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीद थी. लेकिन पिछले प्रदर्शन देखे जाएं, तो छठा स्थान इतना भी निराशाजनक नहीं है. खासतौर पर यह देखते हुए कि टीम इंडिया ने मैदान पर कमजोर प्रदर्शन नहीं किया. साल का अंत भारत ने दुनिया की नंबर पांच टीम रहते हुए किया है. यह भी किसी लिहाज से कम नहीं है.

वर्ल्ड कप के बाद रिक चार्ल्सवर्थ सहित ज्यादातर हॉकी विशेषज्ञों ने माना कि भारतीय युवा टीम के लिए यह ऐसा प्रदर्शन है, जिससे इसे विजेता टीम में बदला जा सकता है. जरूरत है एडिमिनिस्ट्रेटिव स्तर पर सही फैसलों की. सही कोच, सही सपोर्ट स्टाफ, सही टीम... ये सब जरूरी है. ये सब बनाने के लिए 2019 का साल है. इसीलिए यह साल 2018 से भी ज्यादा अहम है.