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जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप: क्या कहती है भारत की जीत

पूरे टूर्नामेंट पर दबदबा जमाकर 15 साल बाद भारतीय टीम ने जीता जूनियर खिताब

Shailesh Chaturvedi

पूरे मैच में डिफेंस को नियंत्रण में रखने वाले हरमनप्रीत सिंह अपने कदमों पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे थे. गोल्ड मेडल गले में आए, इसकी बेताबी उनमें साफ दिख रही थी. बुके लेते परविंदर सिंह को दर्शकों से और उत्साह की उम्मीद थी. बुके लेने से पहले उन्होंने दर्शकों से और उत्साह दिखाने की गुजारिश की. मनदीप सिंह भांगड़ा कर रहे थे.

दूर खड़े कोच हरेंद्र सिंह की आंखों में आंसू थे. हरेंद्र भारतीय हॉकी में बार-बार मौके चूकने के गवाह रहे हैं. लेकिन अब नहीं. वो दौर खत्म हो गया है. 15 साल बाद भारतीय जूनियर हॉकी टीम वर्ल्ड चैंपियन बनने में कामयाब हुई है. वो भी पूरे टूर्नामेंट में अपना दबदबा बरकरार रख कर.


भारतीय हॉकी में ये नए दौर की शुरुआत है. ये वही भारतीय हॉकी है, जिसने बार-बार खराब दौर देखा है. जिसने 2006 दोहा एशियाड में बगैर पदक के लौटती टीम देखी है. जिसने चिली का वो लम्हा देखा है, जब इतिहास में पहली बार भारतीय टीम ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाई थी. चिली में ओलिंपिक क्वालिफायर्स थे. इस टीम ने 2012, लंदन ओलिंपिक में आखिरी स्थान देखा. आज वो टॉप पर है. दुनिया के टॉप पर.

जूनियर हॉकी में टॉप पर आने का मतलब यही होता है कि अगर आपकी टीम इसी तरह आगे बढ़ती है, तो दुनिया आपके कदमों में होगी. आखिर इन्हीं को तो आगे सीनियर टीम में खेलना है.

2001 में पिछली बार हम चैंपियन बने थे. 15 साल हो गए. उस टीम को याद कीजिए. कप्तान गगन अजित सिंह, जुगराज सिंह, दीपक ठाकुर, अर्जुन हलप्पा, देवेश चौहान जैसे सारे खिलाड़ी बाद में सीनियर हॉकी टीम में आकर अपना असर छोड़ने में कामयाब हुए थे. अब वही काम हरमनप्रीत सिंह, सिमरनजीत सिंह, हरजीत सिंह, परविंदर सिंह, अजित पांडेय, विकास दहिया, संता सिंह जैसे खिलाड़ी करेंगे.

2001 चैंपियन टीम के सदस्य जुगराज इस लम्हे को देश में हॉकी का भविष्य बदल देने वाला मानते हैं. उन्हें लगता है कि इस टीम में सीनियर स्तर पर कमाल करने की क्षमता है. जुगराज कहते हैं, ‘हमें एक कोर ग्रुप मिल गया है. ये ग्रुप हमें सीनियर स्तर पर बड़ी कामयाबियां दिलाएगा. बस, जिस तरह इस टीम के लिए प्लानिंग की गई है, वो आगे भी जारी रहे.’

भारतीय टीम ने जिस तरह मैच पर कंट्रोल किया, वो उनकी परिपक्वता दिखाता है. टीम ने शुरुआत में ऐसे हमले बोले कि बेल्जियम को कोई मौका नहीं दिया. शुरुआती दस मिनट देखें, तो बॉल पजेशन के नाम पर बेल्जियम के पास कुछ नहीं था. बेल्जियम टीम को काउंटर अटैक और पेनल्टी कॉर्नर कनवर्जन के लिए जाना जाता है. ये दोनों खूबियां कहीं नहीं दिखीं.

आठवें मिनट में ही एरियल शॉट को जिस तरह नियंत्रित करके गुरजंत सिंह ने गोल किया, वो किसी भी हॉकी खिलाड़ी के लिए गर्व का लम्हा था. उनका रिवर्स हिट विपक्षी गोलकीपर को पूरी तरह छकाने में कामयाब रहा. उसके बाद 22वें मिनट में संता सिंह ने विपक्षी डिफेंडर से गेंद छीनकर हमला किया. सिमरनजीत सिंह का हिट उतना ताकतवर नहीं था. लेकिन जितनी भी ताकत थी, वो गोलकीपर के पार गेंद पहुंचाने को काफी थी.

दो गोल के बाद भारत ने मैच की तेजी को कम किया. उसके पेस को अपने हिसाब से कंट्रोल किया. दूसरे हाफ में जिस तरह का डिफेंस भारत ने दिखाया है, वो आमतौर पर देखने को नहीं मिलता. भारतीय डिफेंस ने बेल्जियम को कोई मौका नहीं दिया. गोलकीपर विकास दहिया के लिए पेनल्टी कॉर्नर छोड़ दिया जाए, तो गेंद को छूने का मौका बमुश्किल ही मिला होगा. ये भारतीय डिफेंस की कहानी कहता है.