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'मैंने एक बार जो कहा... वो सौ बार बोलने जैसा है....'

भारतीय हॉकी टीम के गोलकीपर पीआर श्रीजेश से खास बातचीत

Shailesh Chaturvedi

पीआर श्रीजेश को भारतीय हॉकी की दीवार कहा जाता है. भारतीय टीम के कप्तान और गोलकीपर श्रीजेश ने पिछले कुछ सालों में न जाने कितनी बार अपने बेहतरीन खेल से टीम को जीत दिलाई है. श्रीजेश 28 साल के हैं. उन्हे इस साल पद्मश्री के लिए चुना गया है. उनका नाम एफआईएच गोलकीपर ऑफ द ईयर के लिए नामांकित है. हॉकी इंडिया लीग में यूपी विजर्ड्स टीम के कप्तान श्रीजेश से फर्स्टपोस्ट ने खास बातचीत की. केरल के इस स्टार खिलाड़ी ने अपने खास अंदाज में अपनी शख्सियत, खेल, जिंदगी से लेकर बहुत-सी बातें कीं. बातचीत के खास अंश-

श्रीजेश आपसे हम हर तरह की बात करेंगे. आप हैं, तो मस्ती की बात होगी ही. आपके खेल, आपकी जिंदगी से जुड़े तमाम सवाल हैं. लेकिन शुरुआत मस्ती के एक सवाल से करते हैं. लुंगी डांस की बात करते ही शाहरुख खान याद आते हैं. लेकिन हॉकी सर्किल में कहा जाता है कि लुंगी डांस शाहरुख ने नहीं, श्रीजेश ने शुरू किया था!


-जब मैं नेशनल टीम के कैंप में आया था, तो लुंगी पहनता था. केरल में, अपने गांव में भी मैं लुंगी ही पहनता था. साउथ इंडियन की जिंदगी का हिस्सा होता है ये. उस समय हम डांस करते थे. साउथ इंडियन म्यूजिक, उसमें भी खासतौर पर तमिल म्यूजिक में डांस के लिए लुंगी बहुत जरूरी है. तो हम सब भी डांस करते थे. शाहरुख ने जबसे किया, ये बड़ा फेमस हो गया. हम अपने कमरे में करते थे. इसलिए वो हमको ही पता था.

डांस की आपके लिए कितनी अहमियत है?

मेरे लिए यह बहुत जरूरी है. प्रेशर हटाने के लिए, तनाव हटाने के लिए डांस बहुत जरूरी है. मेरे लिए डांस करना रिदम में आने का एक जरिया है. कई बार मैं बाथरूम में जाकर भी डांस करता हूं. मुझे इससे बड़ी मदद मिलती है.

आपके बारे में आपके दोस्त और आप जिन्हें बड़ा भाई कहते हैं- एड्रियन डिसूजा का कहना है कि श्रीजेश बहुत जल्दी पिछली गलतियां भूल जाता है. इससे उसे कामयाबी मिलती है. आप ऐसा कैसे कर पाते हैं. इसका राज क्या है?

मैं आपको एक बात बताता हूं. शायद एड्रियन को भी पता नहीं होगा कि ये मैंने उनसे ही सीखा है. हॉलैंड में टेस्ट सीरीज हुई थी. उसके एक मैच के पहले हाफ में उन्होंने तीन गोल खाए. मैं बेंच से देख रहा था. लेकिन उसके बाद जब आए, तो उन्होंने सब भुला दिया था. 2009 में चैंपियंस चैलेंज में जीते. एड्रियन ने मुझे कहा कि अगर आज आप जीतते हैं, तो लोग आपकी तारीफ करते हैं, लेकिन अगर कल हार गए, तो सारा दोष गोलकीपर पर ही आएगा. हम फॉरवर्ड लाइन की तरह गोल पर खुशी नहीं मना सकते. एक सेव करने के बाद अगर डांस शुरू कर दिया और  अगले मौके पर चूक गए, तो सब बेकार हो जाएगा. हमें पूरे 60 मिनट दिमाग को शांत रखना होता है. फोकस रखना होता है कि इसके बाद क्या होगा. अच्छा हो या बुरा, भूल के आगे बढ़ना जरूरी है. इसी तरह आप गेम पर फोकस कर सकते हैं.

हमेशा कोई हॉकी मैच अगर पेनल्टी शूट आउट में जाता है, तो दिल की धड़कनें रुक जाती हैं. लेकिन आपके आने के बाद जब भी मैच ऐसी पोजीशन में होता है, तो हम सब बड़े खुश हो जाते हैं कि हमारे पास श्रीजेश है, हम ही जीतेंगे...

मैंने कभी इसे अपना मजबूत पॉइंट नहीं समझा था. 2011 के एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में हम सिर्फ मेरी वजह से नहीं जीते. लेकिन इसलिए जीते, क्योंकि हमारे खिलाड़ियों ने गोल किए. जैसे एशियन चैंपियंस ट्रॉफी के सेमीफाइनल में मुझसे चार बॉल टच तक नहीं हुई. मेरे खिलाड़ियों ने पांच गोल पारे. मैंने एक बचाव किया और हम जीत गए. हमें पूरी टीम को क्रेडिट देना चाहिए. पेनल्टी कॉर्नर के वक्त ड्रैग फ्लिकर को अपना काम करना होता है. पुशर को सही तरीके से पुश करना होता है. स्टॉपर को सही तरीके से रोकना होता है. सब ठीक हो, तो हलुआ जैसा गोल मिल सकता है. बॉब (रूपिंदरपाल), रघु (रघुनाथ),  बीरेंद्र (लाकड़ा) जैसे डिफेंडर अपना काम करते हैं. सब अपना काम करते हैं, तो हम जीतते हैं.

हरेंद्र सिंह (भारतीय जूनियर टीम के कोच) उस दौर को याद करते हैं, जब आप पहली बार नेशनल कैंप में आए थे. आपके हाथ में एक लोहे का ट्रंक था. वहां से अब यहां तक पहुंच गए हैं. हम फाइव स्टार होटल में आपके रूम में बैठकर बात कर रहे हैं. कैसे देखते हैं अपनी इस यात्रा को?

मैं जब तक स्पोर्ट्स हॉस्टल नहीं पहुंचा था, तब तक मैंने कभी हॉकी नहीं देखी थी. मैं तब आठवीं क्लास मे था. मैं पटियाला अंडर-16 कैंप के लिए आया. मैं पुराना पैड इस्तेमाल करता था. फुटबॉल के जूते पहनता था. जर्सी नहीं थी. हां, लुंगी जरूर थी.

हरेंद्र सर ने मुझे पहली बार देखा, जब वो केरल आए थे. उन्होंने मुझे सीधे एशिया कप कैंप में बुला लिया. ये 2004 की बात है. दिल्ली में कैंप था. वो और लोबो सर (क्लेरेंस) थे. उन्होंने मुझे गोलकीपिंग के बेसिक्स सिखाए. वो अलग प्रैक्टिस कराते थे. उन्हें लगता था कि पैड पुराने हैं. कहीं चोट न लग जाए. शायद उन्हें मुझमें एक अच्छा गोलकीपर दिखाई दिया.

मैं पहली बार 2004 में टीम में आया और ऑस्ट्रेलिया गया. बहुत अच्छी शुरुआत नहीं थी. लेकिन इंडिया के लिए खेला था. बहुत खुश था. उसके बाद पाकिस्तान, मलेशिया और स्पेन गया. 2009 में पाकिस्तान के खिलाफ मैं सेकेंड गोलकीपर था. पाकिस्तान ने एड्रियन के लिए तैयारी की थी. उन्हें कनफ्यूज करने के लिए मुझे मैदान पर उतारा गया. हमने अच्छा किया.

फिर कॉमनवेल्थ गेम्स आए. वहां हमारी टीम एक गोलकीपर के साथ उतरी. जाहिर है, मुझे जगह नहीं मिली, क्योंकि भरत छेत्री तब नंबर वन गोलकीपर थे. अब सोचता हूं, तो लगता है कि शायद ये अच्छा ही था. अगर मैं अच्छा नहीं कर पाता, तो पूरी तरह बाहर हो जाता. लंबी यात्रा है. आप कह सकते हैं कि ट्रेन में जनरल कंपार्टमेंट से शुरुआत की थी. अब फर्स्ट एसी में आ गया हूं.

(श्रीजेश ने सीनियर टीम में शुरुआत 2006 में दक्षिण एशियाई खेल से हुई थी. उन्हें टूर्नामेंट का बेस्ट गोलकीपर चुना गया, जब भारत ने 2008 में एशिया कप जीता. 2011 के बाद वो सीनियर टीम के नियमित सदस्य बने. एशियन चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ दो पेनल्टी स्ट्रोक बचाए. इससे भारत ने टूर्नामेंट जीता. 2016 में उन्होंने शानदार खेल दिखाया. भारत ने पहली बार चैंपियंस ट्रॉफी में सिल्वर जीता. पिछले साल एशियन चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पाकिस्तान पर जीत में भी उनका बेहतरीन प्रदर्शन था.)

हम सब जानते हैं कि सचिन (तेंदुलकर) को अपने हर शॉट और अपना हर आउट होने का तरीका याद होता है. ऐसा लगता है कि आपको भी एक-एक लम्हा याद रहता है...

मुझे अपने बचाव याद नहीं रहते. वे बस, हो जाते हैं. लेकिन जब गोल होता है, तो मुझे हमेशा याद रहता है. गोल न हो, इसलिए हम लोग घंटों ट्रेनिंग करते हैं. दुख होता है, जब एक तरह से गोल हुआ हो. वही गलती मैंने फिर रिपीट की हो. रियो में मैंने कनाडा के खिलाफ दो गोल खाए. जबकि मैंने उसके लिए काफी प्रैक्टिस की थी. वो बहुत खराब लगा.

2006 सैफ गेम्स के फाइनल में हम पाकिस्तान से खेले. मैंने पैरों के बीच से दो गोल खाए. किसी ने उस समय मुझसे कुछ कहा नहीं. लेकिन जब मैं जा रहा था और लोग हंस रहे थे, तो लग रहा था कि मुझ पर हंस रहे हैं. हो सकता है कि वो आपस में हंस रहे हों, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि सब मेरा मजाक उड़ा रहे हैं. वो बुरे मौके, गोल खाना याद रहता है. कोशिश होती है कि फिर न हो.

क्या ये सब बदला है. क्योंकि पहले तो होता था कि हॉकी वाले हैं, हार के आएंगे. लेकिन पिछले कुछ साल में तो हमने काफी कुछ जीता है...

बिल्कुल. पहले लोग बोलते थे कि यार कोई एक मैच तो जीत जाना. अब वे ट्रॉफी और मेडल लाने की उम्मीद करते हैं. हम जहां भी जाते हैं, लोग कहते हैं कि आप अच्छा खेल रहे हो. अभी कुछ दिन पहले मुंबई में मुझे राहुल द्रविड़ और रवि शास्त्री मिले. उन्होंने मुझे पहचान लिया. मुझे बहुत अच्छा लगा कि जिनको बचपन से देखता था, वो मुझे पहचान रहे हैं.

एक सवाल हॉकी इंडिया लीग पर... कैसे लीग ने भारत में खेल पर असर डाला है?

आप इस तरह का फेम, पैसा और एक्सपोजर और कहीं नहीं पा सकते. आज हर हॉकी खिलाड़ी का सपना होता है कि वो हॉकी इंडिया लीग में खेले. 2010 के बाद से मुझे नहीं लगता कि नेशनल लेवल का कोई भी खिलाड़ी पैसों को लेकर मुश्किल में होगा. ऐसा कुछ होगा कि वो सड़कों पर रह रहा है या पैसे नहीं हैं. ये सिर्फ लाइफस्टाइल या ग्लैमर के लिए न हीं है. इसने हमें गर्व दिया है. एक पहचान दी है. यहां से तमाम खिलाड़ी ऊपर आए हैं.

रोलंट ओल्टमंस काफी समय से अब भारतीय टीम के साथ हैं. पहले हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर और अब चीफ कोच. आप लोगों ने उन्हें क्या कुछ सिखाया है? मस्ती करना या भारतीय कुछ बातें सिखाई हैं?

रोलंट का हमारे साथ इमोशनल रिश्ता है. वो भारतीय लोगों के इमोशन को समझते हैं. पहले भी समझते थे. अब ज्यादा समझते हैं. उन्होंने मुझे अजलन शाह टूर्नामेंट के बीच फैमिली के साथ वक्त बिताने के लिए कहा, क्योंकि इसके बाद बड़ा लंबा शेड्यूल था. हम उनके साथ मस्ती करते हैं.

हमने नियम  बनाया है कि अगर कोई गलती करता है, तो उसे सजा मिलेगी. उसे अजीब कपड़ों में ब्रेकफास्ट के लिए आना पड़ेगा. मैं एक नाइटी पहनकर एक बार ब्रेकफास्ट में आया. एक बार तय हुआ कि लड़कियों के नाइट वियर को काट-पीटकर कपड़े बनाए जाएंगे. सब उसी को पहनकर जाएंगे. मुझे जो कपड़े मिले, वो बहुत खराब थे. मेरा आधा शरीर दिख रहा था. रोलंट ने भी वैसे ही कपड़े पहने. इस तरह के कामों से जूनियर खिलाड़ियों को रिलैक्स होने में मदद मिलती है. वे गेम में मजा लेना सीखते हैं.

रघुनाथ और आपकी जोड़ी को जय और वीरू की जोड़ी कहते हैं. इस दोस्ती के बारे में क्या कहेंगे?

हम सब जूनियर दिनों से साथ हैं. जब तक मैं उसे मैदान पर दो गाली ना दे दूं, तब तक वो चार्ज नहीं होता. ये ऐसा रिश्ता है, जिसे बताया नहीं जा सकता है. मैंने उसके साथ अपनी बीवी के मुकाबले ज्यादा वक्त बिताया है.

अब रैपिड फायर राउंड के कुछ सवाल

पसंदीदा फिल्म – इकबाल

पसंदीदा हीरो – शाहरुख खान, सलमान खान हिंदी में... वैसे रजनीकांत

पसंदीदा हीरोइन – एक नाम नहीं ले सकता

पसंदीदा खिलाड़ी – सचिन तेंदुलकर, धनराज पिल्लै, महेंद्र सिंह धोनी

पहला क्रश – मेरी बीवी. मैं जब आठवीं में पढ़ता था, तबसे हम साथ हैं.

बेस्ट मोमेंट – जब राष्ट्रगान बजता है. जीत के बाद झंडा ऊपर जाता है. उस मोमेंट से बड़ा कुछ नहीं हो सकता. वो शब्दों में नहीं बता सकते.

वर्स्ट मोमेंट – 2006, सैफ गेम्स, जब मैंने पाकिस्तान के खिलाफ पैर के बीच से दो गोल खाए थे.

पसंदीदा डायलॉग – रजनी सर (रजनीकांत) की लाइन.. फिल्म बाशा से, ‘नान ओरु दरावा सोना आदु नूरू दरावा सोल्लारा मादारी’ इसका मतलब है कि अगर मैं एक बार कुछ कहता हूं, तो सौ बार बोलने जैसा है.

एक शब्द या वाक्य में श्रीजेश क्या हैं – लकी और ऐसा आदमी जो किस्मत में विश्वास करता है