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क्या भारतीय हॉकी फिर से ‘गिल युग’ की तरफ जा रही है?

ओल्टमंस से नहीं थे खिलाड़ी खुश, सिखाने को ज्यादा कुछ नहीं था... ऐसे में ओलिंपिक के बाद क्यों नहीं हुआ फैसला

Shailesh Chaturvedi

जुलाई 2013 की बात है. माइकल नॉब्स को भारतीय हॉकी टीम के कोच पद से हटाया गया था. उन्हें प्रदर्शन के आधार पर हटाया गया था. हालांकि आधिकारिक तौर पर कहा गया था कि सेहत की वजह से वो इतने दबाव वाला काम नहीं संभाल सकते. अगस्त 2012 में ओलिंपिक्स हुए थे, जहां भारतीय हॉकी टीम 12वें नंबर पर आई थी. उस टीम में हर कोई जानता था कि माइकल नॉब्स कोच के तौर पर बुरी तरह फेल हैं. लेकिन वो ओलिंपिक से एक साल बाद तक कोच क्यों बने रहे, कोई नहीं जानता.

अब सितंबर 2017 है. रोलंट ओल्टमंस को हटाया गया है. यहां भी मामला प्रदर्शन का है. अगस्त 2016 में रियो ओलिंपिक हुए थे. भारतीय टीम आठवें नंबर पर आई थी. दरअसल, ओल्टमंस के लिए मुश्किल वक्त उसके बाद से ही शुरू हुआ. ओल्टमंस के रहते भारत ने काफी तरक्की की. लेकिन रियो ओलिंपिक के बाद नहीं. सवाल यही है, जो चार साल पहले था. अगर चीफ कोच को हटाना था, तो ओलिंपिक के बाद एक साल तक इंतजार क्यों किया गया.


हटाना था, तो एक साल पहले होना चाहिए था फैसला

दुनिया के लगभग सभी देश ओलिंपिक साइकिल के हिसाब से कोच तय करते हैं. यानी ठीक एक ओलिंपिक के बाद कोच चुना जाता है, जिसे चार साल का वक्त दिया जाता है... अगले ओलिंपिक तक. भारत में ऐसा कोई रिवाज नहीं है. बल्कि ओल्टमंस तो महज एक साल बाकी रहते कोच बने थे, जब पॉल वान आस को अचानक हटाए जाने का फैसला किया गया था.

यह जरूर है कि ओल्टमंस सबसे ज्यादा समय तक कोच या हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर के तौर पर भारतीय हॉकी से जुड़े रहे. उन्हें सबसे ज्यादा अधिकार मिले. उन्होंने अपने मुताबिक टीम चुनी. ये सारी बातें हैं, जिसकी वजह से अभिनव बिंद्रा ने हॉकी इंडिया को सबसे प्रोफेशनल तरीके से काम करने वाली फेडरेशन बताया था. लेकिन कोच को हटाने का समय ऐसा नहीं है, जिसे प्रोफेशनल तौर पर सही कहा जा सके.

एक साल बाद वर्ल्ड कप, नए कोच को कैसे मिलेगा समय?

नॉब्स को हटाया गया था, तो किस्मत से ओल्टमंस थे, जो हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर थे. उसके बाद जो भी कोच आया, ओल्टमंस साथ थे. बाद में उन्होंने चीफ कोच का रोल बड़ी आसानी से संभाल लिया. लेकिन अब ऐसा नहीं है. डेविड जॉन को अंतरिम जिम्मा दिया गया है. डेविड जॉन वो हैं, जिन्हें माइकल नॉब्स के समय भारतीय हॉकी ने जो भी कामयाबियां पाईं, उसका जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन वो कोच नहीं हैं. एक तो वो फिजिकल ट्रेनर हैं. दूसरा, उन्हें ज्यादा समय नहीं हुआ है हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर बने हुए. ऐसे में भारत को नया कोच ढूंढना होगा. वो भी तब, जब वर्ल्ड कप सिर पर है और ओलिंपिक महज तीन साल दूर हैं.

यह बात ‘प्रोफेशनल तौर’ पर काम कर रही हॉकी इंडिया के लिए ठीक नहीं है. यह सही है कि ओल्टमंस ने सबसे ज्यादा समय काम किया. वरना इससे पहले जो विदेशी आए, वो ज्यादा समय टिक नहीं पाए. चाहे वो रिक चार्ल्सवर्थ हों, होजे ब्रासा, माइकल नॉब्स, टेरी वॉल्श या पॉल वान आस. उन्हें हटाया जाना तभी तय लगने लगा था, जब खबरें आईं कि उनसे पूछे बगैर टीम चुनी गई है. टीम चुनने की पूरी जिम्मेदारी डेविड जॉन ने ले ली है और ओल्टमंस की नाराजगी से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा. जब किसी को हटाया जाता है, तो भारतीय सिस्टम में इस तरह की चीजें होती हैं. इस बार भी हुईं और अब ओल्टमंस को बाय-बाय कह दिया गया.

पिछले कुछ समय में हुए हैं हैरान करने वाले फैसले

पिछले कुछ सालों में भारतीय हॉकी सुधरी है, तो उसमें हॉकी इंडिया का बड़ा रोल है. लेकिन पिछले कुछ समय में हॉकी इंडिया ने कुछ फैसले ऐसे किए हैं, जो सवालों में हैं. वर्ल्ड कप जीतने के बाद हरेंद्र सिंह की जगह जूड फेलिक्स को कोच बनाना. अगर हरेंद्र को जूनियर से हटाया जाना था, तो उन्हें डेवलपमेंट टीम सौंपनी चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अभी तक आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. लेकिन माना जा रहा है कि 1980 की ओलिंपक स्वर्ण विजेता टीम के कप्तान रहे वी.भास्करन को डेवलपमेंट टीम दी जाएगी. यह टीम सीनियर और जूनियर के बीच की टीम होगी.

भास्करन कई बार भारतीय हॉकी टीम के कोच रहे हैं. उनका कोचिंग करियर भारतीय हॉकी में चूकने की कहानियां लेकर आता रहा है. वो केपीएस गिल का दौर था. उन्हें कई बार हटाया गया, फिर वापस लाया गया. हर बार वो आ भी गए. पहली बार भारत ने एशियाई खेलों में पदक नहीं जीता, वो भास्करन साहब की कोचिंग में हुआ. इन सारे रिकॉर्ड्स के साथ उनकी वापसी की बात है.

इस वक्त बताया जा रहा है कि ओल्टमंस को हटाए जाने में खिलाड़ियों का भी रोल है. खिलाड़ियों को लग रहा था कि अब उनके पास बताने के लिए कुछ नया नहीं है. उनसे वो सारी बातें सीखी जा चुकी हैं, जो उनके पास थीं. लेकिन यही सवाल तो भास्करन के लिए भी है. ...और यह सवाल भी कि अगर ओल्टमंस के पास सिखाने के लिए कुछ नहीं था, तो एक साल रुकने की क्या जरूरत थी? ऐसा तो गिल युग में होता था. हॉकी इंडिया के ‘प्रोफेशनल सेट-अप’ में चीफ कोच के मामले को ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से हैंडल किए जाने की उम्मीद थी, जो नहीं हुआ.