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भारतीय हॉकी में अदला-बदली का खेल, हरेंद्र बने पुरुष टीम के कोच, मरीन्ये को महिला टीम की कमान

सिर्फ आठ महीने पुरुष टीम का कोच रहने के बाद श्योर्ड मरीन्ये वापस संभालेंगे महिला टीम की कमान, महिला टीम के कोच हरेंद्र को अब पुरुष टीम की जिम्मेदारी

Shailesh Chaturvedi

कुछ समय पहले की बात है. भारतीय पुरुष हॉकी टीम को कोच की तलाश थी. चीफ कोच रोलंट ओल्टमंस के प्रदर्शन से हॉकी इंडिया खुश नहीं था. लगभग उसी समय जूनियर हॉकी टीम ने वर्ल्ड कप जीता था, जिसके कोच हरेंद्र सिंह थे. लॉजिक यही था कि हरेंद्र को पुरुष टीम सौंप दी जाए. लेकिन लॉजिक शब्द भारतीय हॉकी के साथ ज्यादातर समय मेल नहीं खाता. फैसला हुआ. महिला टीम के कोच श्योर्ड मरीन्ये को पुरुष टीम का कोच बनाया गया. महिला टीम हरेंद्र को सौंप दी गई.

वो महीना सितंबर था. आठ महीने भी पूरे नहीं हुए. एक और बदलाव किया गया है. इस बार हरेंद्र को पुरुष टीम सौंप दी गई है. मरीन्ये को वापस महिला टीम की कमान. आठ महीने पहले मरीन्ये को क्या सोचकर पुरुष टीम दी गई थी, इसकी कोई जवाबदेही नहीं है. आठ महीने बाद उन्हें पुरुष टीम से क्यों हटाया गया, ये शायद हरेक को पता होगा. जिसे नहीं पता, वो कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय टीम का प्रदर्शन देख ले. सिर्फ चौथे स्थान पर आना नहीं, खेल का तरीका भी देख ले. उससे समझ आ जाएगा कि मरीन्ये को क्यों हटाया गया. लेकिन अगला सवाल यह है कि अगर कोई अच्छा कोच नहीं है, तो वो महिला टीम के साथ जुड़कर अच्छा कैसे हो जाएगा?


नाकाम रहा आठ महीने का 'एक्सपेरिमेंट'

कुल मिलाकर भारतीय हॉकी के आठ महीने इस वजह से बरबाद हुए कि मरीन्ये को रखकर एक प्रयोग किया जाना था. जाहिर है, अब भी जो फैसला हुआ है, उसमें साई का रोल है. साई यानी भारतीय खेल प्राधिकरण की तरफ से ही कोच को सेलेरी दी जाती है. ऐसे में यह जवाब देना पड़ता कि मरीन्ये को क्यों हटाया जा रहा है. तो हल यह निकला कि कोई बदलाव करने की जरूरत नहीं है. कोच वही हैं, सिर्फ पुरुष को महिला और महिला को पुरुष टीम सौंप दी गई है.

इसमें कोई शक नहीं कि हरेंद्र को पुरुष टीम दिया जाना अच्छा फैसला है. लेकिन यह ‘अच्छा फैसला’ सितंबर में ही लिया जाना चाहिए था. अब आठ महीने की देरी भारतीय टीम को कितना भारी पड़ेगी, यह अगले कुछ महीनों में समझ आएगा, जब चैंपियंस ट्रॉफी से लेकर एशियाड और फिर वर्ल्ड कप खेलना है. हरेंद्र पर एक और दबाव होगा. करीब दस साल बाद भारतीय हॉकी में कोई भारतीय चीफ कोच बना है. ऐसे में उन्हें खुद को साबित करना है. इसके लिए समय बहुत कम है.

मरीन्ये को कोच बनाया गया था, तो यह सवाल उठा था कि आखिर ऐसे इंसान को कोच क्यों बनाया जा रहा है, जिसे सीनियर पुरुष टीम की कोचिंग का कोई अनुभव नहीं है. ...और ऐसे इंसान को महिला टीम की कमान क्यों दी जा रही है, जिसे महिला हॉकी टीम की कोचिंग का अनुभव नहीं है. लेकिन यही भारतीय हॉकी की पहचान रही है. लेकिन इस तरह के फैसलों पर ताज्जुब वही कर सकते हैं, जिन्हें भारतीय हॉकी के बारे में कुछ नहीं पता. ऐसे फैसले होना बहुत आम है.

अब 44 साल के मरीन्ये एशियन चैंपियंस ट्रॉफी के लिए महिला टीम को तैयार करवाएंगे, जो 13 मई से कोरियो में होनी है. हरेंद्र के सामने एक के बाद एक बड़ी चुनौतियां हैं. हॉकी इंडिया की प्रेस रिलीज में महासचिव मुश्ताक अहमद, मरीन्ये और हरेंद्र तीनों ने ही फैसले पर खुशी जताई. तीनों ने ही भारतीय हॉकी की कामयाबी को लेकर बातें कीं. जाहिर है, प्रेस रिलीज में इसी तरह की बातें होती हैं. लेकिन यह सवाल अब भी बरकरार है कि आठ महीने पहले जिसने मरीन्ये में वर्ल्ड क्लास कोच देखा था, उसका क्या. यकीनन उस पर कोई सवाल नहीं उठेगा. फैसले से हुआ यह कि हरेंद्र के साथ महिला टीम ने खेल के तरीके में जो बदलाव किए थे,  अब उन्हें नए सिरे से तैयारी करनी होगी. पुरुष टीम तो खैर मरीन्ये के दौरान अपने खेल में गिरावट के बाद बेहतरी की कोशिश करेगी ही.

क्या उनके खिलाफ फैसला होगा, मरीन्ये को लाए थे?

एक बहुत पुराना चुटकुला है, जो शायद हर किसी ने सुना होगा. एक कवि सम्मेलन में एक कवि ने कविता सुनाना शुरू किया. सामने बैठा एक आदमी लाठी लेकर खड़ा हो गया. कविता आगे बढ़ी, तो वो मंच पर आ गया. घबराए कवि ने पूछा कि अगर कविता पसंद नहीं तो बंद कर दूं.. जवाब मिला कि आप तो मेहमान हैं. आप जारी रखिए. मैं तो उसको ढूंढ रहा हूं, जो आपको लेकर आया है.

भारतीय हॉकी में हमेशा खिलाड़ी और कोच पर गाज गिरती है. मरीन्ये जैसे लोग चीफ कोच बनाए जाते हैं, जिसके वे हकदार नहीं थे. लेकिन उनका क्या, जिन्होंने उनमें चीफ कोच देखा था. भारतीय हॉकी में म्यूजिकल चेयर का एक राउंड और हो गया है. लेकिन म्यूजिकल चेयर खिला रहे शख्स से सवाल पूछा जाएगा? क्या हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन या मरीन्ये को लाने वाले बाकी लोगों से पूछा जाएगा कि गलत इंसान लाने की वजह से आठ महीने बरबाद होने की भरपाई कैसे होगी?