view all

अलविदा 2017, हॉकी: ‘ऑड ईयर’ किस तरह पूरी कर पाएगा ‘ईवन’ की उम्मीदें

भारतीय हॉकी के लिए 2017 का साल 2018 की बुनियाद रखने जैसा था, जो भारत के लिए बेहद अहम साबित होने वाला है

Shailesh Chaturvedi

ओलिंपिक खेलों में ऑड यानी विषम वो साल होता है, जो ईवन यानी सम की नींव रखता है. 2017 यानी ऑड ईयर. यह साल 2018 के लिए काफी कुछ तय करने वाला था. या यूं कहें कि 2018 में पता चलेगा कि 2017 में लिए गए फैसले किस हद तक कामयाब रहे. कम से कम हॉकी के मामले में तो ऐसा कहा जा सकता है.

ओलिंपिक और एशियाड हर चार साल में होते हैं. 2018 एशियाड का साल है. 2020 ओलिंपिक का. ऐसे में 2017 ‘ऑड’ ही था, जहां उस लिहाज से कोई ऐसा बड़ा टूर्नामेंट नहीं था, जो बहुत चर्चा में रहे. एक वर्ल्ड लीग फाइनल्स को छोड़कर. वर्ल्ड लीग फाइनल्स में भारत ने पिछले एडीशन की तरह ब्रॉन्ज जीता. यानी वो कामयाबी पाई, जो नए कोच श्योर्ड मरीन्ये को राहत देने वाली थी. लेकिन इस कामयाबी का अगला पड़ाव कैसे हासिल होगा, वो 2018 बताएगा.


तीन नामों के आसपास होती रही चर्चाएं

ऑड ईयर में एक और ऑड नंबर रहा, जिस पर चर्चा जरूरी है. नंबर तीन. तीन नाम रहे, जिनके इर्द-गिर्द हॉकी की बातचीत घूमी. पहला रोलंट ओल्टमंस. भारत के वो कोच, जिनके साथ टीम विश्व नंबर छह पर पहुंची है. पहले हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर और फिर चीफ कोच के तौर पर उन्होंने टीम के लिए काफी कुछ किया. लेकिन वो थकते नजर आ रहे थे. उन्हें हटाने का फैसला किया गया. फैसले पर सवाल नहीं थे. टाइमिंग पर सवाल थे कि अगर हटाना था, तो ओलिंपिक के बाद एक साल इंतजार क्यों किया गया. लेकिन ऐसे सवालों के जवाब भारतीय हॉकी में न पहले मिलते थे, न अब मिलते हैं.

लगभग पूरे साल टीम से बाहर रहे 'चोटिल' श्रीजेश

दूसरा चेहरा पीआर श्रीजेश. पिछले कुछ साल में भारत की कोई बड़ी कामयाबी श्रीजेश के बगैर नहीं आई है. चाहे वो एशियाड का गोल्ड हो या फिर चैंपियंस ट्रॉफी की कामयाबी या पिछली वर्ल्ड हॉकी लीग का ब्रॉन्ज. लेकिन 2017 में एक तरह टीम इंडिया श्रीजेश के बगैर दिखाई दी, जो लगातार चोटिल रहे और उससे वापसी की कोशिश करते रहे. उनके बगैर भारत ने इस बार वर्ल्ड लीग का ब्रॉन्ज जीता है. एक सवाल जो पिछले कई सालों से भारतीय हॉकी में पूछा जाता रहा है कि श्रीजेश के बाद कौन. उसकी नींव तैयार है. शायद 2018 उसका जवाब लेकर आएगा.

सरदार सिंह के भविष्य पर सवाल

तीसरा चेहरा सरदार सिंह. धनराज पिल्लै के बाद शायद भारतीय हॉकी का सबसे चर्चित चेहरा. ऐसे लोग कम नहीं हैं, जो उन्हें अजित पाल सिंह के बाद देश का सबसे अच्छा सेंटर हाफ मानते हैं. यह अलग बात है कि उस दौर से आज की हॉकी बहुत बदल गई है. सरदार ने फॉरवर्ड से लेकर डिफेंस तक हर पोजीशन पर अपनी पहचान बनाई है. उनके बगैर टीम के बारे में कुछ समय पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. इस बार सोचा ही नहीं गया, उनके बगैर कामयाबी पाई गई. वर्ल्ड हॉकी लीग के लिए उन्हें टीम में नहीं लिया गया. उसके बावजूद भारत ने ब्रॉन्ज जीता.

ऑड ईयर में नहीं सोचा गया होगा कि इस तिकड़ी के बगैर भारत खेलेगा. ओल्टमंस, श्रीजेश और सरदार. लेकिन भारत खेला और एक अनजान कोच के साथ कामयाबी भी पाई. पहले कमजोर टीमों वाला एशिया कप जीता. फिर वर्ल्ड लीग में तीसरा स्थान पाया.

नए कोच के साथ कितनी कामयाबी लेकर आएगा 2018

श्योर्ड मरीन्ये हॉकी जगत का कोई बहुत बड़ा नाम नहीं हैं. वो खुद मानते हैं कि औसत खिलाड़ी रहे. कोचिंग में भी सीनियर पुरुष टीम के कोच का उनके पास कोई खास अनुभव नहीं था. वो भारतीय महिला टीम के कोच थे. वहां से उन्हें सीधे पुरुष टीम की कमान दे दी गई. उनकी परीक्षा का साल है 2018.

यह वो साल है, जो एशियाड लेकर आएगा. कॉमनवेल्थ गेम्स इसी साल होने हैं. उसके बाद हॉकी वर्ल्ड कप होगा. भारत को वर्ल्ड कप जीते 42 साल हो गए हैं. ऐसे में यहां पर मिली कामयाबी भारतीय हॉकी को टॉप की तरफ ले जा सकती है. श्योर्ड मरीन्ये को दुनिया के बड़े कोच में शुमार करवा सकती है. लेकिन एशियाड या वर्ल्ड कप की नाकामी भारतीय हॉकी को फिर प्रयोगों के दौर की तरफ खींच सकती है.

महिलाओं के लिए भी है चुनौतियों भरा साल

महिलाओं के लिए भी साल अहम है. उनकी विश्व रैंकिंग के लिहाज से देखा जाए, तो साल अच्छा रहा. मरीन्ये की जगह हरेंद्र सिंह को कोच बनाया गया. हरेंद्र का महिला टीम की कोचिंग का पहला अनुभव है. उसके बावजूद उनकी कोचिंग में टीम ने एशिया कप जीता है. इस टीम के लिए भी वही बड़े टूर्नामेंट हैं, जो पुरुषों के लिए हैं. उनसे वैसी उम्मीदें नहीं हैं, जैसी पुरुषों से हैं. लेकिन उम्मीदें जरूर हैं. टीम एक तरह से रियो ओलिंपिक के बाद नए रंग-रूप में है. उसे मजबूत टीम बनाने की जिम्मेदारी हरेंद्र की है. टीम को काफी वक्त बाद कोई भारतीय कोच मिला है. ऐसे में उनसे उन्हीं की भाषा में बात करने वाला शख्स उनके साथ है. ..और शायद युवा टीम की जिम्मेदारी संभालने के लिए भारतीय हॉकी में हरेंद्र से बेहतर नाम नहीं मिलेगा. उनके साथ भारत ने 13 साल बाद एशिया कप जीता. ऐसे में शुरुआत अच्छी है. लेकिन असली नतीजे 2018 में सामने आएंगे.

हॉकी इंडिया लीग के भविष्य पर भी होगा फैसला

फेडरेशन के लिहाज से भी 2017 उथल-पुथल वाला साल रहा. नरिंदर बत्रा इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष बन गए. किसी भारतीय के लिए यहां तक पहुंचना कतई आसान नहीं था. उनके जाने से भारत के पक्ष में हालात और बेहतर होने की उम्मीद बंधी. लेकिन उनके जाते ही हॉकी इंडिया लीग पर संदेह छा गया. लीग अब कभी होगी या नहीं, इसे तय करने वाला साल भी 2018 ही होगा.