गले में असमी ‘गमुसा’, हाथों में तिरंगा, चेहरे पर बड़ी मुस्कान और आंखों में जीत की चमक लेकर ट्रैक पर खड़ी 18 साल की हिमा दास और सामने फॉटोग्राफर्स की भीड़. शायद ये तस्वीर ये बयां करने के लिए काफी है कि भारतीय एथलेटिक्स का स्वार्णिम दौर शायद अब ज्यादा दूर नहीं है. असम के नायगांव के एक छोटे से गांव की हिमा दास ने अंडर 20 विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीतकर एक ऐसे दौर की शुरुआत की है जहां से देश अब इस खेल में और मेडल्स की उम्मीद करेगा. हिमा दास के चेहरे पर जीत के बाद आज भी वही चमक थी जो कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 के 400 मीटर फाइनल के दौरान थी.
कैमरामैन हर लेन में खड़ी एथलीट के पास जाता हुआ छठी लेन पर पहुंचा. 18 साल की हिमा दास मुस्कुरा रही थीं, कैमरे को देखकर पोज कर रही थी. वो दुनिया की कुछ सबसे बेहतरीन एथलीट्स के साथ ट्रैक पर खड़ी होकर उनसे मुकाबला कर रही थीं, लेकिन इस बात की चिंता या इसका दबाव आपको उनके चेहरे पर कतई दिखाई नहीं देगा. इन सबसे बेपरवाह हिमा उस लम्हे को जी रही थीं. कॉमनवेल्थ गेम्स में हिमा फाइनल में छठे नंबर पर रही थीं, लेकिन इससे ना उनके चेहरे की चमक में कोई कमी आई ना जज्बे में. वो वापस लौटकर मेहनत करती रहीं. अपने कोच निपुन के साथ खुद को निखारती रहीं और उस हार को सुनहरा करके दम लिया.
देश में चल रही और खबरों के बीच रातों रात हिमा दास अखबारों की सुर्खियों से लेकर ट्विटर के ट्रेंड तक पर छा गईं. कोच निपुन की खोज हिमा दास का खेलों की ओर रूझान बचपन से ही था. एक किसान परिवार में जन्मीं हिमा के लिए यह सिर्फ शौक था जो खेतों में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलने तक सीमित था. तभी वहीं के लोकल कोच ने उन्हें एथलेटिक्स में खुद को आजमाने की सलाह दी. इसके बाद तक भी सब कुछ लगभग सामान्य था.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक उसी दौरान डायरेक्टरेट ऑफ स्पोर्ट्स एंड वेलफेयर के कोच निपुन दास की नजर उन पर पड़ी. हिमा सस्ते स्पाइक्स पहनकर इंटर डिस्ट्रिक्ट की 100 और 200 मीटर स्पर्धा में दौड़ रही थीं. उन्होंने दोनों इवेंट का गोल्ड अपने नाम किया. हिमा की तेजी ने निपुन को प्रभावित होने के साथ हैरान भी किया. उन्होंने सालों से इस तरह की प्रतिभा नहीं देखी थी. उन्होंने हिमा के परिवार से जाकर बात की और उन्हें गुवाहाटी ले आए. जो सपना उस वक्त शायद हिमा की आंखों में भी नहीं था निपुन उसे मुकम्मल करने की ठान चुके थे. छह बच्चों के मां-बाप अपनी सबसे छोटी बेटी तो खुद से दूर नहीं करना चाहते थे, लेकिन कोच निपुन के सामने उनकी एक ना चली. वो उसे गुवाहाटी के सारूसजाई स्पोर्ट्स कॉमपलेक्स ले आए यह जानते हुए कि वहां एथलीट्स के लिए कोई अलग विंग नहीं है. वहां खासतौर पर फुटबॉल और बॉक्सिंग के लिए खिलाड़ियों को तैयार किया जाता था.
हालांकि हिमा दास ने यहां भी लोगों को अपनी प्रतिभा से चौंकाते हुए एकेडमी में जगह बना ली. इसके बाद तो उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा. खुद निपुन को इस प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी. शुरुआत में वो बस इतना चाहते कि हिमा एशियन गेम्स में रिले टीम का हिस्सा हों, लेकिन हिमा ने उम्मीद के परे प्रदर्शन करके उन्हें ऐसी गुरु दक्षिणा दी है जो निपुन कभी नहीं भूलेंगे. वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में शुरुआत में सबसे पीछे चल रही हिमा ने आखिरी कुछ मीटर में तेजी दिखाई. जैसे ही वह फिनिशिंग लाइन के पास पहुंचीं, कमेंटेटर कहने लगे ‘हिमा दास को फिलहाल बस फिनिशिंग लाइन दिख रही है, उन्हें उस लाइन के उस तरफ एक सुनहरा इतिहास दिख रहा है.' वाकई में हिमा ने अपनी इस जीत के साथ साबित किया कि इस ट्रैक पर उनके कदम और कई फिनिशनिंग लाइन क्रॉस करने के लिए बने हैं.