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सरदार का रिटायरमेंट : भारतीय हॉकी की परंपरा में ही हुई है एक और ‘सरदार’ की बलि

भुवनेश्वर में 28 नवंबर से शुरू हो रहे हॉकी वर्ल्ड कप से करीब ढाई महीने पहले उनका रिटायर होने का फैसला क्या बताता है

Shailesh Chaturvedi

कुछ साल पहले की बात है. एक बड़े खिलाड़ी को बाहर कर दिया गया था. देश में हॉकी चला रहे एक बड़े शख्स का मानना था कि अब उसमें खेल बचा नहीं है. व्यक्तिगत बातचीत में उनसे सवाल किया था कि आप उस खिलाड़ी को सम्मान से रिटायर होने का मौका क्यों नहीं देते. इसके जवाब में उन्होंने सवाल ही किया था – हॉकी में कोई रिटायर होता है क्या? धक्का देकर ही निकालना पड़ता है.

इस बातचीत को आप किसी भी अंदाज से लें. लेकिन भारतीय हॉकी का सच यही रहा है कि खिलाड़ी रिटायर नहीं होते. या अधिकारी उन्हें रिटायर होने का मौका नहीं देते. सरदार सिंह ने इन दोनों के बीच का काम किया है. वो रिटायर हुए हैं. उन्होंने वर्ल्ड कप कोर ग्रुप से बाहर किए जाने का मतलब अच्छी तरह समझा और फिर सम्मान से हटने का फैसला किया. लेकिन भारतीय हॉकी ने अपनी परंपरा का बखूबी निर्वाह किया. पहले हॉकी इंडिया की तरफ से टीम घोषित हुई, जिसमें सरदार का नाम नहीं था. उसके बाद सरदार का बयान आया कि वो रिटायर हो रहे हैं. जबकि सर्किल में हर किसी को लगभग यकीन था कि  इस बार सरदार को वर्ल्ड कप के लिए नहीं लिया जाएगा.


क्या बेहतर रिटायरमेंट के हकदार नहीं थे सरदार?

सरदार का रिटायरमेंट दुखद है. इसलिए नहीं कि वो रिटायर हुए. यह तो हर किसी को होना है. कोई भी खिलाड़ी हमेशा नहीं खेल सकता. दुखद कई वजहों से है. पहला, रिटायरमेंट का ऐलान टीम घोषणा से पहले कराया जा सकता था. दूसरा, क्या टीम के सबसे बड़े खिलाड़ी को आप इस तरह वर्ल्ड कप से महज ढाई महीना पहले जाने दे सकते हैं? क्या वाकई सरदार एशियन गेम्स में इतना खराब खेले कि उन्हें एक और टूर्नामेंट नहीं दिया जा सकता था?

इसमें कोई शक नहीं कि सरदार अपने बेस्ट पर नहीं हैं. लेकिन क्या अभी इस कोर ग्रुप में कोई है, जो वाकई उन्हें रिप्लेस कर सके? सिर्फ जिद पर नाम लेना हो तो किसी का भी लिया जा सकता है. ठीक वैसे ही, जैसे एक समय गेरहार्ड राख ने एडम सिन्क्लेयर को धनराज पिल्लै से बेहतर बता दिया था. उन्होंने विक्रम पिल्लै को भी धनराज से बेहतर बताते हुए कहा था, ‘दिस पिल्लै इस बेटर दैन दैट पिल्लै.’ उस तरह की जिद में जवाब न दें. वाकई देखें कि क्या सरदार की वजह से ही भारत का गोल्ड नहीं आया?

टीम से जुड़े लोग इस बात को मानेंगे कि अगर भारत को ब्रॉन्ज मिला, तो उसमें सरदार का बड़ा रोल है. टीम मैनेजमेंट के एक सीनियर सदस्य के मुताबिक सरदार और श्रीजेश ने टीम को प्रेरित किया, जो उस वक्त बिल्कुल टूट गई थी. इन दोनों की वजह से पाकिस्तान के खिलाफ मैच में युवा खिलाड़ी जीत के लिए खुद को प्रेरित कर पाए.

सीनियर का काम सिर्फ मैदान पर ही सीमित नहीं होता. वो थिंक टैंक का हिस्सा होता है. क्या वाकई सरदार थिंक टैंक नहीं हैं? क्या उस मैच्योरिटी की जरूरत वर्ल्ड कप में नहीं पड़ने वाली है? क्या सरदार अगर वर्ल्ड कप खेलने के बाद रिटायर होते, तो भारतीय हॉकी का बहुत बड़ा नुकसान होता? क्या कोई ऐसा बहुत बड़ा खिलाड़ी है, जिसका रास्ता सरदार के इस टीम में होने की वजह से रुक रहा है?

हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर से सवाल कब पूछे जाएंगे

ये सारे सवाल भारतीय हॉकी के हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर डेविड जॉन को खुद से पूछने चाहिए. यह वही डेविड जॉन हैं, जिन्हें भारतीय टीम की फिजिकल फिटनेस सुधारने के लिए लाया गया था. तब खिलाड़ी बताते थे कि कोच माइकल नॉब्स से ज्यादा कोचिंग डेविड जॉन करते हैं. उस वक्त भारतीय टीम लंदन ओलिंपिक गई और 12वें नंबर पर आई. इसका इनाम उन्हें हाई परफॉर्मेंस डायरेक्टर बनाकर दिया गया. उनके रहते टीम कॉमनवेल्थ गेम्स में फेल हुई. तब कोच को हटाया गया. लेकिन तब किसी ने नहीं पूछा कि इस कोच को लाया कौन था. डेविड जॉन ये सवाल खुद से पूछें. ईमानदारी से पूछेंगे तो जवाब मिलेंगे. अलग बात है कि जितने पैसे उन्हें दिए जा रहे हैं, उसमें ईमानदार जवाब मिलने मुश्किल हैं.

माना जा रहा है कि सरदार के परफॉर्मेंस से डेविड जॉन बिल्कुल खुश नहीं थे. सरदार खुद भी खुश नहीं होंगे. लेकिन सवाल वही है कि अजित पाल सिंह के बाद भारत के श्रेष्ठतम मिड फील्डर की जगह लेने वाला क्या अभी आपके पास कोई है? अगर नहीं है, तो वर्ल्ड कप से महज ढाई महीना पहले इतनी हड़बड़ी क्यों?

डेविड जॉन को हॉकी का पता नहीं, लेकिन फिटनेस का मतलब अच्छी तरह समझ आता है. सरदार सिंह इस टीम के किसी भी खिलाड़ी से पीछे नहीं हैं. यह यो-यो टेस्ट का रिजल्ट बताता है. कोच हरेंद्र सिंह ने पिछले दिनों मुंबई में वर्ल्ड कप के लिए जर्सी लॉन्च में कहा था कि कमिटमेंट के मामले में सरदार का कोई जवाब नहीं है.

युवा से 'बेस्ट' तक सरदार का सफर

हरेंद्र ही हैं, जिन्होंने एक तरह से सरदार की प्रतिभा को पहचाना था. दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में जूनियर टीम का कैंप था. 2004-05 की बात है. एक दुबला-पतला खिलाड़ी चुपचाप कोने में खड़ा था. सिर पर छोटा सा पटका. कोच हरेंद्र सिंह से अपनी जानकारी के लिए पूछा था कि आपको क्या लगता है, कौन-से वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी हैं. उन्होंने तीन-चार नाम लिए थे. एक नाम था सरदारा. सरदार सिंह को इसी नाम से जानते हैं. उन्होंने कहा था, ‘आप देखिएगा, फोकस सही रहा, तो दुनिया का बेस्ट खिलाड़ी बन सकता है.’

उसके कुछ समय बाद हॉकी के एक अच्छे जानकार स्टेडियम आए. वो काफी समय बाद भारतीय हॉकी देख रहे थे. उन्होंने सरदार को खेलते देखा. फिर उनकी तरफ इशारा करते हुए सवाल किया, ‘ये कौन है.’ नाम बताने पर जवाब आया, ‘इसका बॉडी मूवमेंट तो शाहबाज जैसा है.’ शाहबाज यानी पाकिस्तान के महान खिलाड़ी शाहबाज अहमद.

सरदार ने फॉरवर्ड के तौर पर ही करियर शुरू किया था. मिडफील्ड में आए, तो उनकी अजितपाल से तुलना होने लगी. अभी यकीनन वो उस लेवल पर नहीं खेल रहे. लेकिन इतने नीचे लेवल पर भी नहीं. ..और कुछ देर के लिए मान लिया कि वो इतने ही नीचे लेवल पर खेल रहे हैं. तो भी क्या उन्हें रिटायरमेंट का बेहतर मौका देने की जरूरत नहीं थी?

समस्या यही है कि भारतीय हॉकी सम्मान से रिटायरमेंट का विकल्प नहीं देती. मोहम्मद शाहिद को नहीं दिया था. न धनराज पिल्लै को. ऐसे अनगिनत नाम मिलेंगे. इसी नामों में सरदार का नाम भी शामिल हो गया है. भारतीय हॉकी की परंपरा ने उनकी भी बलि ले ली है. फिर कोई किसी दिन बताएगा कि हॉकी खिलाड़ी रिटायर कहां होते हैं. उन्हें धक्का मारकर बाहर किया गया है. हालांकि सरदार ने इससे ज्यादा का मौका नहीं दिया और रिटायरमेंट अनाउंस कर दिया. एक सीनियर खिलाड़ी ने कहा भी, ‘उसने बहुत समझदारी का काम किया है. सिर ऊंचा रखकर जाने का फैसला किया.’

यकीनन भारतीय हॉकी की परंपरा को देखते हुए टीम में ‘फाइट बैक’ की कोशिश के बजाय हटने का फैसला सही है. लेकिन वो सारे सवाल अपनी जगह बरकरार हैं, जिसमें सबसे बड़ा यह कि क्या वर्ल्ड कप से ठीक ढाई महीने पहले कोई अपने सबसे बड़े खिलाड़ी की इस तरह विदाई करता है?