view all

‘दंगल’ के एक्सपर्ट की जुबानी, आमिर की कहानी

हीरोइन की चोट ने 'एक्सपर्ट' के सपने को किया सच

Manoj Joshi

(लेखक पेशे से पत्रकार हैं. कई दशकों से खेलों, उसमें भी खासतौर पर कुश्ती से जुड़े रहे हैं. फिल्म दंगल में मनोज जोशी ने एक्सपर्ट की भूमिका निभाई है. फिल्म के साथ उनके क्या अनुभव रहे. इस लेख में उन्होंने बताया है)

मैं शुरू से ही आमिर खान से बहुत प्रभावित रहा हूं. शायद इसलिए भी कि जिस दिन मैंने अपनी पहली बड़ी नौकरी की शुरुआत की, उसी दिन आमिर की पहली फिल्म कयामत से कयामत तक रिलीज हुई थी. वह 29 अप्रैल, 1988 का दिन था. हालांकि मैं वह फिल्म पहले दिन तो नहीं देख पाया. लेकिन जब देखी तो मुझे उनमें खूब सम्भावनाएं दिखाई दी थीं. दूसरे, उनका जन्म का वर्ष भी वही है, जो मेरा है.


खैर, जिन दिनों उनकी फिल्म दंगल की शूटिंग का दिल्ली चरण शुरू हुआ, तो आमिर खान से मिलने की इच्छा ने भी जोर पकड़ा. इसकी एक वजह तो यह थी कि लंबे अरसे से मैं कुश्ती पर लिखता रहा था. इस खेल के हर ओलिंपिक पदक विजेता की लाइव कमेंट्री का मौका मिलना मुझे अंदर तक गुदगुदा रहा था. इससे भी बड़ी बात यह कि कमेंट्री को हर क्षेत्र से खूब सराहना मिली. मुझे दंगल फिल्म की कमेंट्री टीम से जुड़ने की दिली इच्छा थी.

कमेंट्री के लिए आया ऑफर

संयोग से मुझे उसी वक्त एक फोन आया, जब मैं इसके बारे में सोच ही रहा था. वह अर्जुन अवॉर्डी कृपाशंकर का फोन था, जो इस फिल्म में बतौर रेसलिंग कोरियोग्राफर जुड़े हुए थे. उन्होंने मेरे सामने वह ऑफर कर दिया, जो मेरे दिल में था. कुछ दिन बाद दिल्ली के त्यागराज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में फिल्म के निदेशक नीतेश तिवारी से मिलना तय हुआ. उधर गुवाहाटी में होने वाले साउथ एशियन गेम्स की तारीखें भी तय हो गई थीं. संयोग से दंगल में मेरी कमेंट्री की तारीखें उससे टकरा रही थीं, जिससे मुझे दोनों में से एक ऑफर को छोड़ना जरूरी हो गया.

साउथ एशियन गेम्स की कमेंट्री का ऑफर दूरदर्शन की ओर से था. मेरा झुकाव इसी लाइव कवरेज पर था. खैर, बातचीत के बाद तय हुआ कि वह कमेंट्री किसी और से करवा लेंगे. लेकिन एक रोल मुझे करना ही होगा। दुर्भाग्य से उस रोल के लिए शूटिंग की तारीख भी उन खेलों की तारीखों से टकरा गई. मैं उस समय निराश था. घर-परिवार चाहता था कि मैं किसी भी हालत में दंगल से मिले मौके को हाथ से न जाने दूं.

हीरोइन की चोट ने दिया मौका

आखिरकार ईश्वर ने मेरे दोनों रास्ते खोल दिए. फिल्म की हीरोईन फातिमा सना शेख को कुश्ती के कुछ सीन करते हुए पैर में इंजरी हो गई, जिससे आगे होने वाली शूटिंग की तारीखों को कुछ पहले कर दिया गया. हालांकि मुझे फातिमा की इंजरी से बुरा लगा. लेकिन एक कड़वा सच यह भी था कि इस घटना ने मेरी लॉटरी खोल दी. मुझे दंगल में काम करने और आमिर खान से बात करने का अवसर मिला. साथ ही साउथ एशियन गेम्स की भी मैंने कमेंट्री की.

एक लाइन के लिए आमिर के 18 रीटेक

उसी दिन आमिर को एक शॉट देते हुए देखा तो मैं दंग रह गया. दर्शक दीर्घा से उनका एक डॉयलाग था कि हारना नहीं है गीता. इस वाक्य को उन्होंने 18 बार बोला. जब तक उनकी तसल्ली नहीं हुई, तब तक वह अलग-अलग एक्सप्रेशन के साथ उसे दोहराते रहे.

आखिर आ गया शूटिंग का दिन

आखिरकार इस साल दो फरवरी को हमारी शूटिंग शुरू हुई. शूटिंग में मुझे सुबह सात बजे बुला लिया गया था. पहली बार मुझे वैनिटी वैन में बैठने का मौका मिला. वहां हर्ष शर्मा नाम के एक कलाकार पहले से ही इंतजार कर रहे थे. ये वही हर्ष शर्मा थे, जिनके साथ मुझे स्क्रीन शेयर करनी थी. हर्ष जी बजरंगी भाईजान में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के बॉस की भूमिका से सुर्खियों में आए थे.

मनोज जोशी और हर्ष शर्मा.

बड़े ही बिंदास शख्स हैं हर्ष. करीब एक घंटे गपशप करने के बाद हमें स्क्रिप्ट दे दी गई। हर्ष इस फिल्म में टीवी एंकर की भूमिका निभा रहे थे जबकि मुझे कुश्ती एक्सपर्ट की भूमिका दी गई थी. आखिरकार फिल्म की शूटिंग के लिए हमें उस हॉल में बुलाया गया, जहां न्यूज चैनल का सेट बनाया गया था. फिल्म का तामझाम देखकर मैं दंग रह गया. नीतेश तिवारी शायद इस बात को भांप गए थे.

उन्होंने मुझसे गपशप करके माहौल को खुशनुमा बना दिया. ये वही नितेश तिवारी हैं, जो इससे पहले भूतनाथ और चिल्लर पार्टी जैसी सफल फिल्में बना चुके थे. उनसे मेरी पहले भी तीन-चार बार मुलाकात हो चुकी थी. हर्ष और मेरी शूटिंग शुरू हुई. पहले टेक में मैं एक्सपर्ट की तरह बोला. लेकिन नीतेशजी की तरफ से आवाज आई कि स्क्रिप्ट से बाहर मत जाइए मनोजजी.

खैर, दूसरा टेक बहुत अच्छा हुआ और तीसरा उससे भी अच्छा. दो दिन पहले मैं शूटिंग देखने गया था. तब मैं कलाकारों को एक्टिंग करते देख रहा था. लेकिन उस दिन लोग मुझे एक्टिंग करते देख रहे थे. शूटिंग के बाद नितेशजी ने कहा कि आपका न्यूज चैनल में लाइव शो करना काफी काम आया. आपके पहले दो शॉट सबसे अच्छे थे. ऐसा लगा ही नहीं कि आप पहली बार फिल्म में काम कर रहे हैं. उनकी यह बात मेरी हौसला अफजाई के लिए थी, या वाकई वे ऐसा महसूस कर रहे थे, मैं समझ नहीं पाया. लेकिन अगर उन्होंने यह बात दिल से कही है तो यह मेरे लिए एक बड़ा कॉम्प्लिमेंट था.

फिल्म की स्क्रीनिंग में शामिल होने का मिला मौका

बहरहाल, फिल्म की रिलीज से दो दिन पहले फिल्म की सह-निदेशक विधि का फोन आया कि 22 दिसम्बर को फिल्म की मुम्बई में स्क्रीनिंग है, आप आएंगे तो हमें अच्छा लगेगा. बस, फिर क्या था. स्क्रीनिंग में बतौर कलाकार जाने का भी मेरा पहला अनुभव था. मुम्बई के अंधेरी वेस्ट के इनफिनिटी मॉल में मैंने उन्हीं हर्ष शर्मा के साथ फिल्म देखी, जिनके साथ मैंने स्क्रीन शेयर की थी.

उस शाम आमिर खान सहित फिल्म की पूरी स्टार कास्ट मौजूद थी. आमिर से मिलना भी हुआ. लेकिन बाकियों से मिलते हुए मुझे इस बात का अहसास हो रहा था कि क्यों न मैं भी कभी इनके जैसा बड़ा रोल करूं. वैसे भी मैं एक समय 80 के दशक में श्रीराम सेंटर में एक्टिंग कोर्स कर चुका था. परफॉर्म करने के बाद लोगों की प्रतिक्रियाएं कितनी मायने रखती हैं, इसे मैं भली भांति जानता था.

फिल्म की रिलीज़ के बाद जैसा रिस्पॉन्स मिला, उससे बस एक ही बात ज़ाहिर होती है कि फिल्में आम जनता तक पहुंचने का सबसे मज़बूत माध्यम हैं. और अगर वह फिल्म आमिर खान प्रोडक्शन की हो तो कहने ही क्या. मुझे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि आखिर क्यों न्यूज चैनलों में काफी मेहनत के बाद भी वैसा रिस्पॉन्स नहीं मिलता जो दंगल फिल्म के छोटे से रोल ने कर दिया.