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जब मोदी सरकार योग को खेल ही नहीं मानती तो दिल्ली यूनिवर्सिटी उसके कोटे से दाखिले क्यों दे रही है!

मौजूदा सेशन में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई कॉलेजों ने योग को खेल मान कर उसमें दाखिले की सीट रिजर्व कर दी हैं

FP Staff

साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में योग के प्रोत्साहन के लिए जमकर प्रयास किए गए हैं. खुद पीएम मोदी भी इंडिया गेट से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक योग की वकालत करते नजर आए हैं. योग को लेकर मोदी सरकार दिलचस्पी के बाद केन्द्रीय खेल मंत्रालय ने इसे खेलों की कैटेगरी में लाने का नाकाम कोशिश भी की थी लेकिन तमाम प्रैक्टिकल दिक्कतों के बाद यह मान लिए कि योग को खेल का दर्जा नहीं दिया जा सकता है.

एक खेल के तौर पर योग को रजिस्टर्ड नहीं हो सका लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के दाखिले की प्रक्रिया में योग को खेलों की कैटगरी में शामिल करके उसके खेल कोटे से एडमिशन किए जा रहे हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई कॉलेजों में खेल कोटे की सीटों में योग के लिए भी सीटें आरक्षित कर दी गई हैं.


क्यों खेल नही बन सका योग

दरअसल 2015 में खेल मंत्रालय ने योग को खेल का दर्जा दे दिया था. लेकिन एक साल बाद ही खेल मंत्रालय को अहसास हुआ कि इसके कंपटीशन में तमाम दिक्कतों के चलते इसे खेल नहीं माना जा सकता लिहाजा योग का मामला फिर से आयुष मंत्रालय के सुपुर्द कर दिया गया था.

समाचार एजेंसी आईएएनएस ने जब इस मामले में दिल्ली यूनिवर्सिंटी की स्पोर्ट्स काउंसिल से संपर्क किया कि उसे बताया गया कि 19 कॉलेजों ने उनसे योग में ट्रायल आयोजित कराने का आग्रह किया था. योग पिछले साल खेल कोटे में शामिल था और इस साल भी शामिल है.

यूनिवर्सिटी का कहना है कि कॉलेजों को यह स्वात्तता है कि वह किसे खेलों की कैटेगरी में शामिल करे. अब सवाल यह है जब देश का खेल मंत्रालय ही यह मान चुका है कि योग में कंपटीशन कराना संभव नहीं है, लिहाजा उसे खेल नहीं माना जा सकता तो फिर दिल्ली यूनिवर्सिट के ये कॉलेज किस आधार पर योग का कंपटीशन कराके छात्रों को उसके कोटे से एडमिशन देंगे.