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जन्मदिन विशेष: धनराज पिल्लै, फ्रेजाइल... हैंडल विद केयर

भारतीय हॉकी के पोस्टर बॉय को जन्मदिन पर शुभकामनाएं

Harendra Singh

धनराज पिल्लै. महान हॉकी खिलाड़ी. भारतीय हॉकी के पोस्टर बॉय. मेरी पत्नी के लिए भाई. बच्चों के लिए मामा. मेरे लिए छोटा भाई- धन. उनके जन्मदिन का मौका है. याद आती है वो पहली मुलाकात, जो आज से करीब 30 साल पहले हुई थी. 1987 का साल था. मैं महिंद्रा के लिए खेलता था. वहीं पहली मुलाकात हुई थी.

मुझे अच्छी तरह याद है. धनराज आए थे. उन्हें एक अधिकारी ने कुछ बोल दिया था. वो रोते हुए जा रहे थे. मेरे कोच जोकिम कारवाल्हो ने मुझसे कहा कि देखो, कहीं वो छोड़कर तो नहीं जा रहा. मैं गया. उनसे बात की. वहीं से हमारे तार ऐसे जुड़े. अब लगता है, जैसे जन्मों की जान-पहचान हो. हम इतने करीब हैं, उसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि जिस तरह की फैमिली से धन हैं, वैसी ही फैमिली से मेरा भी ताल्लुक है.


बंबई (अब मुंबई) को पहचानने में धनराज ने मेरा बड़ा साथ दिया. मैं बिहार का हूं. घर से अलग रह रहा था. घर की याद आती थी. घर का खाना याद आता था. धन हमेशा मुझे बड़े भाई के घर ले जाते थे. वहां अम्मा आती थीं (धनराज पिल्लै की मां). वो अपने हाथ से खाना बनाकर हम सबको खिलाती थीं. मैं वो यादें भूल नहीं सकता. हम दोनों बेस्ट की बस में सबसे पीछे की सीट पर बैठकर तरबूज खाते हुए बंबई घूमते थे.

जब पहली बार टीम इंडिया में चुने गए थे धनराज

मैं कभी नहीं भूल सकता, जब पहली बार धन को इंडियन टीम में चुना गया था. वो एशियाड कप था. मैंने मन्नत मांगी थी. उन्हें टीम में चुना गया, उसके बाद हम दोनों दिल्ली में हनुमान मंदिर गए. मंदिर कनॉट प्लेस में है और शिवाजी स्टेडियम के काफी करीब है. वहां जुगल किशोर की दुकान थी. टीम में चुने जाने की खुशी में हमने कपड़े सिलवाए. वो दौर था, जब ज्यादातर लोग कपड़े सिलवाते थे. रेडीमेड खरीदने के बजाय.

मेरी शादी में भी धन का बड़ा रोल है. जाहिर है, मेरे कोच जोकिम कारवाल्हो का तो रोल रहा ही, जो मेरे ससुर साहब को पहली बार लेकर आए थे. धन का रोल मेरी फैमिली से जुड़ा है. उन्होंने मेरे मम्मी-डैडी को समझाया. एक तरह से उन्होंने कहा कि मैं गारंटी लेता हूं कि ये शादी कामयाब होगी. शादी कामयाब भी हुई. तबसे वो आशु (मेरी पत्नी) का भाई हो गए.

मुझे कोचिंग में लाने का श्रेय भी धनराज को ही जाता है. वो हमेशा कहते थे – हैरी तू कोच बन, तुझमें वो क्वालिटी है. आज अगर मैं विश्व कप विजेता टीम का कोच कहलाता हूं, तो इसकी नींव रखने का काम धनराज पिल्लै ने ही किया था.

गलत को मुंह पर गलत बोलने वाले इंसान हैं धनराज

मुझसे तमाम लोग एक सवाल पूछते हैं. वे धनराज की पर्सनैलिटी को जटिल मानते हैं. वे जानना चाहते हैं कि मैं उनसे कैसे डील करता हूं. मैं कह सकता हूं कि ज्यादा लोग धन को समझ नहीं पाते. उनकी खासियत है कि वो गलत को गलत बोलते हैं. कह सकते हैं कि आज के जमाने में गलत को मुंह पर गलत बोलने वाला इंसान बहुत कामयाब नहीं होता. लेकिन धनराज ऐसे ही हैं. इसीलिए उन्हें गलत समझ लिया जाता है. मैं हमेशा कहता हूं कि धनराज पर टैग लगा है – फ्रेजाइल, हैंडल विद केयर. जिसने समझ लिया, अनुयायी हो गया. जो नहीं समझ पाया, वो उन्हें हमेशा गलत मानता रहा.

वो भारतीय हॉकी के पोस्टर बॉय हैं. मोहम्मद शाहिद के बाद अगर किसी का नाम आता है, वो धनराज ही हैं. धन ने मेरी कोचिंग में बहुत से टूर्नामेंट खेले. मुझे कभी उनसे डील करने में दिक्कत नहीं हुई. दरअसल, धन की टाइमिंग समझना बहुत जरूरी है. उनका सोना, उनका जागना. जो समझ गया, वो धनराज से बेस्ट निकलवा सकता है. मुझे लगता है कि जिसने उनसे बेस्ट निकलवाया, वो एमके कौशिक थे. कौशिक भाईसाहब मैन मैनेजमेंट के मामले में बहुत आगे हैं. इसीलिए उन्हें धनराज से कभी दिक्कत नहीं हुई.

बड़ा फेमस है धन का खुजली डांस 

धन बहुत ही मस्त इंसान है. अगर आप उनके आसपास हैं, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई बोरिंग लम्हा आ जाए. उन्हें समझ आ जाता है, अगर टीम में कोई तनाव में है. उनका एक खास डांसिंग स्टाइल है. जब तनाव होता है, वो डांस शुरू कर देते हैं. वो डांस ऐसा है, जैसे शरीर में खुजली हो रही हो. उसके बाद ऊपर से पानी बरस रहा हो. हम अक्सर ड्रेसिंग रूम में या कई बार बाहर भी वो डांस करते हैं.

मेरे और धनराज के बीच एक बार थोड़ी सी गफलत हुई थी. बात है 2004-05 की. वो ओलिंपिक से आए थे. इंडियन एयरलाइंस के लिए खेलते थे. मैं कोच था. धन को घुटने में चोट थी. लेकिन वो ओलिंपिक में आईएचएफ की तरफ से किए गए सुलूक की वजह से नाखुश थे. वो दुनिया को दिखाना चाहते थे कि धनराज पिल्लै क्या है. मैंने उन्हें मना किया. उनसे रेस्ट करने को कहा. वो नाराज हो गए. लेकिन उन्होंने रेस्ट किया. उसके बाद लौटे, तो उस सीजन के सारे खिताब हमने जीते. तब उन्हें समझ आया और उन्होंने माना भी कि मैं सही कह रहा था.

उस शख्स की एक और बात के बगैर मैं उन पर ये लेख खत्म नहीं कर सकता. उनकी देशभक्ति. बुसान एशियाड याद आता है. पाकिस्तान से मैच था. पाकिस्तान ने पहला गोल किया. उसके बाद भारत ने मैच जीता. धनराज कूदकर स्टैंड में चले गए. वहां किसी दर्शक से झंडा लिया और दौड़कर पाकिस्तान के बेंच के सामने कूद गए. ठीक बेंच के सामने जाकर उन्होंने झंडा लहराया.

दरअसल, धनराज को हार से नफरत है. पाकिस्तान से तो वो किसी हालत में हारना नहीं चाहते. आज वो जिंदगी के अर्धशतक की ओर एक कदम आगे बढ़े हैं. लेकिन अब भी हमारी बातचीत हॉकी के ही आसपास होती है. वो शख्स सोते, जागते हर वक्त हॉकी के बारे में सोचता है. जीत उन्हें अब भी वैसे ही खुशी देती है, जैसी खेलते समय देती थी. ..और ये जिंदगी भर बदलेगा भी नहीं. ऐसे ही रहना धन... हमेशा, हमेशा. जन्मदिन मुबारक हो.

(लेखक भारतीय जूनियर विश्व कप विजेता टीम के कोच और धनराज पिल्लै के अभिन्न मित्र हैं)