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क्या इतने प्रदूषण के बीच मैचों की मेजबानी के लायक है दिल्ली?

दिवाली के आस-पास दिल्ली के प्रदूषण स्तर में इतनी बढ़ोतरी हो जाती है कि आम लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं

Riya Kasana

हर साल जैसे ही दीवाली पास आती है वैसे ही दिल्ली की हवाओं में स्मॉग बढ़ जाता है. इसका असर हर इंसान पर साफ-साफ देखा जा सकता है. सोचिए जब एक आम आदमी को अपने रोजमर्रा के काम करने में इतनी परेशानी होती हैं तो खिलड़ियों के ऊपर इसका किस कदर असर होता होगा जिनका आधे से ज्यादा दिन मैदान पर बीतता है.

लगभग दो साल पहले इसी प्रदूषण के चलते रणजी के दो मैचों को टाल दिया गया था. गुजरात और बंगाल के बीच फिरोजशाह कोटला में होने वाला मैच और करनैल सिंह स्टेडियम में हैदराबाद और त्रिपुरा का मैच हवा की खराब गुणवत्ता के कारण दिसंबर तक टाल दिया गया था. बात सिर्फ क्रिकेट की ही नहीं है. नवंबर के आस-पास दिल्ली की हवा में बहने वाला यह स्मॉग बाकी खेलों के खिलाड़ियों पर भी उतना ही असर डालता है. मुसीबत तब और बढ़ जाती है जब कोच और खिलाड़ी भारतीय ना हो.


आईएसएल के मौजूदा सीजन में दिल्ली डायनामोज के कोच अपने विदेशी खिलाड़ियों की इस परेशानी से हर प्रैक्टिस सेशन में दो-चार होते हैं. इंडियन एक्सप्रेस को दिए बयान में उन्होंने कहा, 'हम जैसे विदेशियों के लिए यह स्थिति बहुत मुश्किल होती है, हमें इतनी प्रदूषित जगह रहने की आदत नहीं होती. टीम के खिलाड़ी हालांकि मास्क पहनकर खेलते हैं.'

पिछले साल दिसंबर में श्रीलंका की टीम भारत के दौरे पर आई थी. दोनों के बीच दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में तीसरा टेस्ट खेला जाना था. मैच के दौरान अचानक श्रीलंकाई टीम ने खेलने से मना कर दिया. स्टेडियम में किसी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मैच बीच में ही रोक देने के पीछे क्या कारण है. जब वजह सामने आई तो लोगों की भौहें चढ़ गईं. किसी को इस बात को लेकर यकीन नहीं हो रहा था श्रीलंका की टीम ने प्रदूषण के चलते हो रही तकलीफ के कारण मैच रोकने की अपील की है. 20 मिनट तक मैच रुका रहा. इसके बाद एक बार फिर मैच रोका गया. सुरंग लकमल और लाहिरू गामगे तबियत खराब होने के कारण पवेलियन लौट गए. मैच तो जारी रहा, लेकिन श्रीलंका की टीम मुंह पर मास्क लगाकर खेलती रही. मुंह छुपाने की जरूरत तब शायद बीसीसीआई को भी थी और उन फैंस को भी जो इसे नाटक करार दे रहे थे.

इस स्मॉग से सिर्फ खिलाड़ियों पर बल्कि देश की छवि पर भी काफी असर पड़ता है. 2017 में फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप के दौरान दिल्ली से कुछ मैचों की मेजबानी ले ली गई थी. क्योंकि आधिकारियों का मानना था कि दिल्ली का प्रदूषण दिवाली के बाद और ज्यादा खतरनाक हो जाता है और यह स्थिति खिलाड़ियों के लिए सही नहीं है. हालांकि बाद में इस फैसले को बदल दिया गया. स्मॉग ने देश के मुंह पर जो कालिख लगाई उसे हटाने की कोशिश अब तक नहीं की गई है.

हालात में कुछ खास बदलाव नहीं आया है. एक नवंबर से रणजी ट्रॉफी का आगाज हो रहा है. शुरुआती मैच में दिल्ली के करनैल सिंह स्टेडियम में मुंबई का सामना रेलवे से होना है और दिल्ली के हालात अब भी वही हैं. दिल्ली का एक्यूआई 31 अक्टूबर को 252 था जो कि इंडेक्स के हिसाब से बहुत खराब श्रेणी में आता है. वहीं 2016 में जब मैच रद हुए थे उस समय स्मॉग के कारण 25 यार्ड तक की दूरी तक देखना मुश्किल हो रहा था. दिवाली से पहले ही हवा में प्रदूषण का जोर दिखने के साथ-साथ दिल्ली वालों को महसूस होने लगा है. लोगों को सुबह के वक्त सैर ना करने, घर के बाहर व्यायाम ना करने की सलाह दी गई है. लोगों को घर से बिना काम के बाहर ना निकलने को भी कहा गया है. लोग मास्क पहनकर घूमते नजर आ रहे हैं. ऐसे में खिलाड़ी और खेल पर भी इसका असर होना लाजिमी है. रणजी के पहले मैच में दोनों टीमों  पर इसका असर भी दिखेगा. ऐसे में दिल्ली को अहम टूर्नामेंट की मेजबानी देना कहां तक सही है. सवाल हर बार की तरह यही है.

सवाल तो हर बार उठाए जाते हैं लेकिन ना तो उनके जवाब मिलते हैं ना हालात में सुधार होता है. लेकिन अब सचमुच इसमें सुधार की जरूरत है. खेल फेडरेशंस के साथ-साथ दिल्ली सरकार को भी इसका उपाय करना होगा ताकि दिल्ली में खेलते हुए खिलाड़ी कतराए नहीं.