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क्या राहुल गांधी की याद नहीं दिलाते भारतीय टेनिस खिलाड़ी?

प्रतिभाशाली और युवा खिलाड़ी कभी मैच्योर क्यों नहीं हो पाते?

Shailesh Chaturvedi

90 के दशक के अंत में एक खिलाड़ी आए थे सुनील कुमार सिपैया. प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे. सबसे बड़ा टैलेंट उन्हें कहा जा रहा था. वो कई साल तक बड़ा टैलेंट बने रहे. फिर वो गायब हो गए. चोट से लेकर सुविधाओं की कमी तक तमाम वजहें बताई जाती रहीं.

उसके बाद एक के बाद एक खिलाड़ी आते रहे हैं. हर कोई टैलेंटेड का तमगा लटकाए. इस उम्मीद के साथ कि वो बड़ा खिलाड़ी बनेगा. अरसे तक इंतजार किया जाता रहा है. उसके बाद उम्मीदें टूट गई हैं. क्या ये कहानी आपको राहुल गांधी से मिलती जुलती नहीं लगती?


वहां भी तो एक राजकुमार भारतीय राजनीति में आया था, जिससे कांग्रेस की नैया पार लगाने की उम्मीद की जा रही थी. आज तक की जा रही है. भारतीय टेनिस की तरह उन्हें आज भी प्रतिभाशाली माना जा रहा है. आज भी उनके बारे में कहा जा रहा है कि वो अभी मैच्योर होंगे. ठीक भारतीय टेनिस खिलाड़ियों की तरह.

भारतीय टेनिस की तस्वीर

कुछ रोज पहले सोमदेव देववर्मन रिटायर हुए हैं. सोमदेव भी प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की लिस्ट में थे. वो सालों तक प्रतिभाशाली बने रहे. उसके बाद रिटायर हो गए. एक के बाद एक ऐसे नाम आपको दिखेंगे. इस वक्त रामकुमार रामनाथन प्रतिभाशाली हैं. डेविस कप टीम का हिस्सा भी हैं वो. 22 साल के हैं वो. 2011 में उन्होंने पहली बार हजार खिलाड़ियों में जगह बनाई थी. 2014 में वो टॉप 300 में आ गए. तबसे तीन साल बीत गए हैं. अभी वो 277वें नंबर पर हैं.

लिएंडर पेस और रामकुमार रामनाथन.

समझने के लिए जान सकते हैं कि 21 साल की उम्र में रोजर फेडरर ने ग्रैंड स्लैम खिताब जीत लिया था. राफेल नडाल ने तो खिताब 20 की उम्र से पहले ही जीत लिया था. आमतौर पर विश्व टेनिस में टॉप पर पहुंचने की उम्र 20 के आसपास से शुरू होती है. हमारे यहां भी खिलाड़ी उसी तरह ऊपर आते हैं. शायद एक-दो साल देरी से. रामकुमार रामनाथन 19 की उम्र में टॉप 300 में थे. लेकिन अगले तीन साल में वो कहां हैं, इसी में भारतीय टेनिस की नाकामयाबी छिपी है. रामकुमार रामनाथन को भी आगे बढ़ने के लिए ज्यादा समय अपने घर चेन्नई के मुकाबले दूसरे घर स्पेन में बिताना होता है.

डेविस कप टीम के खिलाड़ियों का लेखा-जोखा

डेविस कप की बाकी टीम में युकी भांबरी हैं. युकी 24 साल के हैं. दिल्ली और फ्लोरिडा में ज्यादातर वक्त बिताते हैं. 2015 में वो टॉप सौ में थे. अभी 341 पर हैं. उनके आगे न बढ़ पाने की वजह चोट है. उनकी बहन अंकिता भांबरी लगातार कहती रही हैं कि एक स्तर के बाद जितनी मदद की जरूरत होती है, जितने पैसों की जरूरत होती है, वो युकी नहीं खर्च कर पाए. सवाल यही है कि आखिर उन्हें अगले स्तर तक क्यों नहीं पहुंचने दिया जाता. उन्हें इस तरह की मदद क्यों नहीं मिलती?

बाकी टीम में प्रज्ञेश गुणेश्वरन 27 साल के हैं. 2015 में वो टॉप हजार में आए थे. अब साढ़े तीन सौ के करीब हैं. 27 की उम्र के बाद हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? क्या आपको लगता है कि वो टॉप 100 में आ पाएंगे? अगर आपको ऐसा लगता है, तो आप उतने ही पॉजिटिव सोच के लोग हैं, जितने कांग्रेसी हैं, जो राहुल गांधी से उम्मीदें लगाए बैठे हैं.

चौथे सिंगल्स खिलाड़ी बालाजी हैं. वो भी 26 साल के हो गए हैं. 400 के आसपास हैं. बेस्ट रैंकिंग 2014 में थी. तब भी वो टॉप 300 में नहीं पहुंच पाए थे. यहां भी ऐसी कोई उम्मीद नजर नहीं आती, जिससे लगे कि वो टॉप 100 में पहुंच पाएंगे.

रोहन बोपन्ना.

अब बाकी दो खिलाड़ियों पर बात. रोहन बोपन्ना 37 साल के हैं और लिएंडर पेस 43 के. बोपन्ना पांच साल पहले तक प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में ही गिने जाते थे. फिर वो वेटरन हो गए. टीम में साकेत मैनेनी नहीं हैं. वो अब भी प्रतिभाशाली हैं. भले ही उनकी उम्र 29 हो गई हो.

भारतीय टेनिस की यही हकीकत है. प्रतिभाशाली से सीधा वेटरन होना. यहां जवानी की रवानी नहीं दिखती. वहां सिर्फ संघर्ष दिखता है. समस्या यही है कि जो टॉप पर हैं, वे समस्या सुलझाना ही नहीं चाहते. उन्हें कांग्रेस की तरह गलतफहमी भी नहीं है कि राहुल गांधी सत्ता दिलवा सकते हैं. टेनिस संघ को अच्छी तरह पता है कि विश्व स्तरीय कोई खिलाड़ी भारत के पास नहीं है. लेकिन वो सिर्फ दिल बहला रहे हैं. अपना भी और भारतीय टेनिस प्रेमियों का भी.