view all

CWG 2018 : पहलवान बजरंग पूनिया हैं स्वर्ण पदक के दावेदार

ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में बजरंग ने जीता था रजत , इस बार पदक का रंग बदलने को तैयार

Sachin Shankar

नाम : बजरंग पूनिया

उम्र: 24


खेल: कुश्ती

कैटेगरी: फ्रीस्टाइल, 65 किलो वर्ग

पिछला कॉमनवेल्थ गेम्स प्रदर्शन : 2014 ग्लास्गो कॉमनवेल्थ में रजत पदक (61 किग्रा)

बजरंग ने 2006 में महाराष्ट्र के लातूर में हुई स्कूल नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था. उसके बाद से बजरंग ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसके बाद लगातार सात साल तक स्कूल नेशनल चैंपियनशिप का स्वर्ण पदक उनके साथ रहा. 2009 में उन्होंने दिल्ली में बाल केसरी का खिताब जीता. इस उपलब्धि के बाद ही बजरंग का चयन भारतीय कुश्ती फेडरेशन ने 2010 में थाईलैंड में हुई जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप के लिए किया. बजरंग ने पहली बार विदेशी धरती पर धाक जमाकर सोने पर कब्जा किया.

2011 की विश्व जूनियर चैंपियनशिप में भी बजरंग ने फिर सोना जीता. 2014 में हंगरी में हुए विश्व कप मुकाबले में बजरंग ने कांस्य जीतकर अपने चयन को सही ठहराया. और इसके बाद ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में बजरंग ने रजत पदक जीतकर धाक जमा दी. महज 20 साल की उम्र में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ में चांदी जीतने वाले बजरंग ने पिछले साल सीनियर एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में कोरिया के ली शुंग चुल को 6-2 से हराकर भारत को पहला स्वर्ण दिला दिया. उन्हें गोल्ड कोस्ट में स्वर्ण पदक का दावेदार माना जा रहा है.

करीब से देखी है गरीबी

बजरंग और उनके परिवार ने बड़ी करीब से गरीबी देखी है. दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती का ककहरा सीख रहे पुत्र को देशी घी देने के लिए पिता बलवान बस का किराया बचाने के लिए कई बार साइकिल पर गए. तो बजरंग की मां ओमप्यारी ने चूल्हे की कालिख सहकर लाडले को शुद्ध दूध भिजवाया. हालांकि अब इस परिवार के दिन होनहार पुत्र के कारण बहुर गए हैं. बलवान के दो ही बेटे हैं. एक बजरंग और बड़ा बेटा हरेंद्र. हरेंद्र उनके साथ तीन एकड़ खेती में हाथ बंटाता है.

पिता ने छोड़ी थी पहलवानी

बजरंग के पिता बलवान पूनिया भी अपने समय के प्रसिद्ध पहलवानों की गिनती में शुमार हो सकते थे, लेकिन परिवार में छाई गरीबी और घर की जिम्मेदारी कंधों पर होने के कारण उन्हें अपना यह शौक बीच में छोड़ देना पड़ा. बलवान ने कक्षा आठ से स्कूल स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था. बलवान ने बताया कि जब वह जब प्लस टू में आए तब कॉलेज स्तर की कुश्ती प्रतियोगिता में शामिल हुआ, जो हिसार के जाट कालेज में हुई. बलवान कुश्ती में हुनर दिखा पाते इससे पहले ही बुजुर्ग और बीमार पिता के कारण बलवान को अखाड़े की मिट्टी छोड़ खेतों में हल की मिट्टी के साथ कसरत शुरू कर देना पड़ी.