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CWG 2018: उधार की बंदूक लेकर रवि ने शुरू किया था अपना सफर

उन्हें अपनी पहली बंदूक कॉलेज में आने के बाद ही मिली

FP Staff

21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में शूटर रवि कुमार ने ब्रॉन्ज पर निशाना साध कर भारत की झोली में एक और मेडल डाल दिया है. वैसे तो कॉमनवेल्थ गेम्स में जीता गया हर मेडल बेहद खास है, लेकिन रवि के मेडल के पीछे का संघर्ष, कड़ी मेहनत और लंबा इंतजार इसे और भी ज्यादा खास बना देता है. साल 2012 से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे रवि का यह पहला कॉमनवेल्थ गेम्स मेडल है.

उन्होंने यह मेडल पुरुषों के 10 मीटर एयर पिस्टल मुकाबले में जीता है. इस मुकाबले में उन्होंने कुल 224.1 अंक हासिल करते हुए ब्रॉन्ज मेडल पर निशाना साधा. इस स्पर्धा में गोल्ड ऑस्ट्रेलिया के डेन सेम्पसम को मिला तो सिल्वर बांग्लादेश के बाकी अबदुल्ला ने जीता.


मेरठ के छोटे से गांव जौड़ी से ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट तक

भारत की झोली में ब्रॉन्ज मेडल डालने वाले रवि का मेडल जीतने तक का सफर काफी चुनौतीपूर्ण था. मेरठ के मवाना से 50 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव जौड़ी में डॉक्टर राजपाल सिंह ने एक रेंज खोली थी. वहां जाकर रवि ने पहली बार जाना कि शूटिंग क्या होती है. यहीं से शुरू हुआ उनका वर्ल्ड कप और कॉमनवेल्थ में ब्रॉन्ज जीतने तक का सफर.

उधार की बंदूक से शुरू की शूटिंग

रवि बताते हैं कि रेंज उनके घर से काफी दूर था इसलिए वह महीने में एक या दो बार ही वहां जाते थे. वहीं से धीरे-धीरे रवि ने मुकाबलों में हिस्सा लेना शुरू किया, और राज्य, राष्ट्रीय स्तर के कॉम्पटीशन में मेडल जीते. उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने के बाद दिल्ली के एक कॉलेज में स्पोर्ट्स कोटे पर एडमिशन मिला. वहीं उन्हें अपनी पहली बंदूक भी मिली.

कॉलेज में एडमिशन मिलने के पहले तक वह उधार पर बंदूक लेकर शूटिंग करते थे. उन्हें अपनी पहली बंदूक कॉलेज में आने के बाद ही मिली. कॉलेज की पढ़ाई खत्म करते ही उन्हे एयरफोर्स में नौकरी मिल गई. जिसके बाद वह साल 2012 में शूटिंग की राष्ट्रीय टीम में शामिल हो गए.

लंबे इंतजार के बाद वर्ल्ड कप में जीता था ब्रॉन्ज

रवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी संघर्ष करना पड़ा है. उन्हें छह विश्व कप फाइनल खेलने के बाद पहला मेडल हासिल हुआ था. हाल ही में आयोजित मैक्सिको में आईएसएसएफ वर्ल्ड कप में भी  रवि ने भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया था.