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स्नूकर और पूल का नया फॉर्मेट - क्यू स्लैम, रंगीन कपड़े, शॉट क्लॉक और शोरशराबा

इस लीग में शामिल खिलाडियों और दर्शको के उत्साह को देखकर कहा जा सकता है कि यह लीग एक लम्बी रेस का घोड़ा है

Neeraj Jha

इंडियन प्रीमियर लीग ने जिस तरह क्रिकेट की तस्वीर बदल दी.. उसी राह पर कई और लीग आए और गए भी. कुछ ऐसे लीगों ने लोगो के बीच अपनी पहचान बनायीं तो कुछ को लोगो ने बिलकुल ही नकार दिया. क्यू स्लैम भी एक ऐसा ही लीग जो पिछले हफ्ते 19 से 25 अगस्त के बीच अहमदाबाद में खेला गया. इस लीग में शामिल खिलाडियों और दर्शको के उत्साह को देखकर कहा जा सकता है की ये लीग एक लम्बे रेस का घोड़ा है.

चेस, स्नूकर और बिलियर्ड्स जैसे खेलों की गिनती हमेशा से ही गंभीर और दिमाग लगाने वाले खेलो में की जाती रही है. माहौल भी काफी शांत सा होता है और कोई अगर गलती से खांस भी दे तो फिर सारे लोग उसे ऐसे देखते है की जैसे उसने कोई पाप कर दिया हो. खिलाडियों के साथ साथ लोग भी फॉर्मल ड्रेस में काफी सज धज कर हिस्सा लेते रहे है. हमेशा से ही इस खेल को जेंटलमैन खेलों की लिस्ट में ऊपर रखा जाता रहा है.


लेकिन क्यू स्लैम 2017 - इंडियन क्यू मास्टर्स लीग ने ना सिर्फ इन सारे परिभाषाओं को बदल दिया है बल्कि इसने नियमो में भी काफी परिवर्तन किये है. आईपीएल के तर्ज़ पर ही इसे लोगों के मनोरंजन को ध्यान में रखकर बनाया गया. परिणाम ये रहा की ना सिर्फ ये दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाबी हासिल की बल्कि प्लेयर्स ने भी इस नए फॉर्मेट में भरपूर रोमांच पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा.

क्या है ये नया फॉर्मेट?

इस खेल के बेहतरीन इतिहास और खिलाड़ियों को ध्यान में रखकर बिलियर्ड्स फेडरेशन और स्पोर्ट्स लाइव ने मिलकर एक नए रंग और रूप में इसे लांच करने का मन 2015 में ही बना लिया था लेकिन इसका असली रूप आते आते 2 साल और लग गए , खैर देर से आए लेकिन दुरुस्त आए.

इस लीग में कुल फ्रैंचाइजी पर आधारित पांच टीमों को बेचा गया -  देशभर के खरीदारों ने इसमें काफी दिलचस्पी दिखाई, आख़िरकार जो पांच शहरों को फ्रैंचाजि मिली  - दिल्ली डॉन, गुजरात किंग्स, हैदरबाद हसलर्स, बेंगलुरु बडीज़ और चेन्नई स्ट्राइकर्स.  

ड्राफ्ट में कुल 25 खिलाड़ियों को शामिल किया गया जिसमें 16-बार विश्व चैंपियन पंकज आडवाणी, वेल्श स्टार डेरेन मॉर्गन, सात बार यूरोपीय स्नूकर चैंपियन केली फिशर, और महिला विश्व स्नूकर चैंपियनशिप रजत पदक विजेता विद्या पिल्लै जैसे बड़े नाम शामिल थे.

इसमें से प्रत्येक टीम में पांच खिलाड़ी को रखा गया जिनमें से एक चोटी का खिलाड़ी (आइकॉन प्लेयर) हर टीम में था.  भारत और विदेश के कई नामी गिरामी खिलाडियों ने इसमें हिस्सा लिया. जहाँ चेन्नई स्ट्राइकर्स की बागडोर पंकज अडवाणी के हाथों में थी, वही गुजरात किंग्स की कमान एंड्रू पेजेट ने संभाल रखी थी. दिल्ली डॉन को जहाँ  विश्व प्रसिद्ध केली फिशर लीड कर रही थी, वही बेंगलुरु बडीज़ की अगुवाई डैरेन मॉर्गन कर रहे थे. कुल इनाम  राशि रखी गयी थी 50 लाख रुपये.

अहमदाबाद में 350-सीटर राजपाथ क्लब में क्यू स्लैम खेला गया. नॉक आउट राउंड के एक टाई में कूल पांच मैच रखे गए थे - 6 रेड बॉल स्नूकर और 9 बॉल  पूल के मैच. इनमें से चार मैचों को तीन फ्रेम में बांटा गया था और हर फ्रेम के लिए समय दिया गया था 10 मिनट. सिर्फ एक मैच सिंगल फ्रेम रखा गया. 6  रेड बॉल स्नूकर  इस बेस्ट ऑफ़ फाइव मैच में शॉट खेलने के लिए अधिकतम समय 20 सेकेंड्स का रखा गया

जिस खेल को लोग अभी तक ये कहते थे की ये बहुत ही स्लो है आज इस लीग ने इन सारी धारणाओं को बदल दिया. जहाँ टीम के खिलाडी भाग भाग कर शॉट खेल रहे थे वही दर्शक दीर्घा ने तालियों और शोरशराबे से पूरा माहौल को अलग रंग दे दिया. इस लीग में खिलाडियों के पास सोचने का वक़्त बहुत कम है लेकिन अगर सही तकनिकी से खेला जाए तो वो अब्बल नंबर पर पहुंच सकते है

और ऐसा ही हुआ हैदराबाद हसलर्स सेमीफ़ाइनल के दौर से बाहर हो गई. पंकज आडवाणी सरीखे खिलाडी भी चेन्नई स्ट्राइकर्स को फाइनल में नहीं पंहुचा सके. आख़िरकार दिल्ली डॉन  और स्थानीय गुजरात किंग्स के बीच फाइनल मैच खेला गया. लोकल समर्थक और  एंड्रू पेजेट के बेहतरीन खेल के बदौलत किंग्स ने ये मैच 3-0 से जीत कर पहले क्यू स्लैम पर कब्जा कर लिया.

जो सबसे बड़ा बदलाव था वो रहा इस खेल में दर्शकों और प्रशंषको की भागीदारी, खिलाड़ी जो अब तक काफी फॉर्मल कपडे पहनकर खेलते थे, अब वो अपने टीम के पोलो टी शर्ट में खेल रहे है. पंकज अडवाणी कहते है की उन्हें फोन करके बताया की ये फॉर्मेट तेज़ है और उन्हें काफी पसंद आ रहा है.

क्यू स्लैम - एक अच्छी पहल

हालांकि बिलियर्ड्स का खेल पहले से ही प्रचलन में था लेकिन स्नूकर का जन्म 19वीं शताब्दी भारत के इटावा शहर में हुई. इसकी शुरुआत ब्रिटिश सेना के एक लेफ्टिनेंट नेविल चेम्बरलेन ने की. इसके बाद भारत ने हमेशा से ही इस खेल पर अपनी पकड़ बनाकर रखी है. इस खेल पर हमारी पकड़ का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की अब तक हम 42 विश्व ख़िताब जीत चुके है. एशियाई खेलों में हमारे नाम 5 गोल्ड, 4 सिल्वर और 6 ब्रॉन्ज है. क्यू स्पोर्ट्स में भारत के विल्सन जोंस, माइकल फेरेरा और गीत सेठी ने दुनिया भर में शोहरत हासिल की है

अगर हाल फिलहाल की बात करें तो पंकज अाडवाणी ने कई खिताबों पर कब्ज़ा कर देश की शान दुनिया भर में बढ़ाई है. सिर्फ 32 साल के पंकज ने सोलह बार विश्व चैंपियनशिप के खिताब पर कब्जा कर चुके है.

इतनी सारी उपलब्धियों के बाबजूद इस खेल को देश में वो जगह नहीं मिली है और न ही सरकार का भी इसमें कोई विशेष योगदान रहा है. लेकिन क्यू स्लैम ने इस खेल को एक नया आयाम दिया है जो लोगों को इस खेल के प्रति आकर्षित करने में सफल रही है.  इस लीग का उद्देश्य टीवी को इसे लेकर क्यू स्पोर्ट्स को लोकप्रिय बनाना है. भारत में इस खेल से जुड़े कई प्रतिभावान खिलाड़ी है जिनको उनकी प्रतिभा दिखाने का सही प्लेटफार्म नहीं मिला है. लेकिन क्यू स्लैम जैसा फॉर्मेट शायद इन खिलाडियों को नयी पहचान देने में कारगर साबित हो सकती है.