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CWG 2018 : जब भी कॉमनवेल्थ गेम्स आते हैं, तेंदुलकर एंड कंपनी पर लगे दाग नजर आने लगते हैं

साल 1998 में क्रिकेट को पहली और एकमात्र बार कॉमनवेल्थ गेम्स में शामिल किया गया था और उससे जुड़े विवाद ने सचिन पर कई सवाल खड़े कर दिए थे

Shailesh Chaturvedi

20 साल हो गए. जेनरेशन बदल जाती है. बदल भी गई है. लेकिन वो याद नहीं मिटती, जो उस दौर के खेल प्रेमियों के जेहन में छपी हुई है. साल था 1998. कड़वी याद है. ऐसी याद, जो सचिन तेंदुलकर एंड कंपनी की अच्छी तस्वीर सामने नहीं लाती. हो सकता है कि सचिन व्यक्तिगत तौर पर उस तस्वीर के लिए जिम्मेदार न हों. लेकिन टीम गेम में हर सदस्य के हिस्से हार या जीत का श्रेय आता ही है.

कहानी कुछ यूं है कि कॉमनवेल्थ गेम्स होने थे मलेशिया के शहर क्वालालंपुर में. क्रिकेट उसमें शामिल था. एकमात्र बार क्रिकेट कॉमनवेल्थ खेलों का हिस्सा बना था. स्वाभाविक भी है, क्योंकि क्रिकेट खेलने वाले देश कॉमनवेल्थ देशों में ही हैं.


ठीक उसी वक्त भारतीय क्रिकेट टीम को कनाडा जाना था. वहां पर सहारा कप होता था. पाकिस्तान के खिलाफ वनडे मैचों की सीरीज. दोनों का वक्त लगभग एक था. नौ सितंबर को कॉमनवेल्थ गेम्स में क्रिकेट का आगाज होना था. 12 सितंबर को कनाडा में भारत और पाकिस्तान के बीच पहला मैच था.

बीसीसीआई ने तय किया कि कनाडा मेन टीम जाएगी. इसमें सचिन तेंदुलकर समेत ज्यादातर बड़े खिलाड़ी होंगे. चंद सीनियर खिलाड़ियों के साथ एक और टीम कॉमनवेल्थ खेलों में भेज दी जाएगी. उस वक्त सुरेश कलमाडी भारतीय ओलिंपिक संघ यानी आईओए के अध्यक्ष थे. कलमाडी का नाम आते ही इस समय 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स के घोटाले याद आते हैं. उसके बाद से उनका कद घटता गया. लेकिन 90 के दशक में वो ताकतवर हस्ती थे. क्रिकेट को शामिल कराना आईओए के लिए भी बड़ी बात थी. कहा जाता है कि कलमाडी अड़ गए और आखिर में बीसीसीआई को झुकना पड़ा. आखिर तेंदुलकर को टीम में लेना पड़ा. अजय जडेजा उस टीम के कप्तान थे और श्रीकांत कोच. टीम में सीनियर के नाम पर अनिल कुंबले भी थे. उस दौर के युवा प्रतिभाशाली हरभजन सिंह और वीवीएस लक्ष्मण टीम का हिस्सा थे.

दूसरी तरफ, टोरंटो गई टीम में कप्तान अजहरुद्दीन थे. उसमें नवजोत सिद्धू, नयन मोंगिया, राहुल द्रविड़ जैसे खिलाड़ी थे. दिलचस्प ये है कि भारतीय टीम कॉमनवेल्थ गेम्स में लीग स्टेज भी पार नहीं कर पाई. लीग स्टेज खत्म होते ही खिलाड़ी टोरंटो गए. वहां अजय जडेजा ने दो और सचिन तेंदुलकर ने एक मैच खेला.

अब असली कहानी. 15 को भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना आखिरी मैच हारी. उसके बाद सचिन तेंदुलकर और अजय जडेजा को टोरंटो रवाना कर दिया गया, ताकि वे बचे हुए वनडे खेल सकें. उस वक्त के बीसीसीआई अध्यक्ष राजसिंह डूंगरपुर ने कहा था कि सचिन मुंबई और जडेजा दिल्ली से फ्लाइट लेकर टोरंटो जा रहे हैं.

उसी समय क्वालालंपुर में भारतीय दल के साथ गए असिस्टेंट शेफ डे मिशन एसएम बाली ने फ्लाइट बुकिंग की फोटो कॉपी पत्रकारों को दिखाई और कहा कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हारने के पांच घंटे बाद चार क्रिकेटर और कोच श्रीकांत ने घर वापसी की फ्लाइट ले ली थी. बाली ने तब आरोप लगाया था कि क्रिकेटर सिर्फ पैसों के लिए खेलते हैं. उन्हें यहां जीतने की कोई  फिक्र नहीं थी.

कुछ साल बाद बाली ने अपने आरोप दोहराए थे. जाहिर तौर पर आरोप यही था कि टीम ने पहले ही ग्रुप स्टेज से ही बाहर होना तय कर लिया था. इसी वजह से वे हारे. इस आरोप के अलावा भी उस टीम पर कई आरोप लगे. उस भारतीय दल के एक सदस्य ने बताया था कि कैसे कुछ क्रिकेटरों ने अपना सामान उठाने से मना कर दिया था. गेम्स विलेज में हर खिलाड़ी अपना सामान लेकर जाता है. एक क्रिकेटर ने एक पहलवान से अपना सामान उठाने को कहा था. उसके बाद कुछ और क्रिकेटरों ने सामान उठाने के लिए कुली की मांग की थी. एक खिलाड़ी ने दावा किया था कि उसे भारतीय टीम के ग्रुप स्टेज से आगे न बढ़ने का पता था. हालांकि ये दावे कभी आधिकारिक तौर पर नहीं किए गए. वे सब ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ ही थे.

कॉमनवेल्थ गेम्स में हारने के बाद टोरंटो जाकर आखिरी मैच मे 77 रन बनाने वाले सचिन तेंदुलकर ने मलेशिया में खेले तीन मैच में 28 रन बनाए थे. अमय खुरसिया के अलावा कोई भी बल्लेबाज 20 से ज्यादा औसत से रन बनाने में नाकाम रहा था. गेंदबाजों मे जरूर अनिल कुंबले ने नौ और देबाशीष मोहंती ने आठ विकेट लिए थे.

भारतीय टीम का पहला मैच एंटीगा एंड बरबुडा से था, जो पूरा नहीं हो पाया. कनाडा के खिलाफ मैच भारत ने जीता. उसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 146 रन की करारी हार के साथ भारत का सफर खत्म हो गया. उन कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद सुरेश कलमाडी ने नाराजगी में कहा था कि वो खुद कोशिश करेंगे कि अब कभी क्रिकेट को शामिल न किया जाए. हालांकि एशियन गेम्स में क्रिकेट को 2010 में शामिल किया गया. यह अलग बात है कि 2010 और 2014, दोनों बार भारत ने हिस्सा नहीं लिया.