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क्या दो ओलिंपिक मेडल दिलाने वाले गोपीचंद को बेइज्जत कर रहा बैडमिंटन संघ?

बतौर चीफ नेशनल कोच,गोपीचंद के अधिकारों में हुई कटौती. कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के बहाने साधा गया निशाना.

Sumit Kumar Dubey

पुलेला गोपीचंद... बैडमिंटन की दुनिया में यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. गोपीचंद भारत में खेलों से जुड़ी एक ऐसी शख्सियत हैं जिसनें खेलों से जुड़े सभी अवॉर्ड्स हासिल किए हैं. बतौर खिलाड़ी अर्जुन अवॉर्ड और राजीव गांधी खेलरत्न वहीं बतौर कोच द्रोणाचार्य अवार्ड भी उनके नाम है. बैडमिंटन के कोर्ट पर अपने शिष्यों को दुनिया के दिग्गज खिलाड़ियों का मात देने के काबिल बनाने वाले गोपीचंद अब बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानी बाई की राजनीति में मात खाते दिख रहे हैं. जी हां , बाई ने बतौर चीफ नेशनल कोच गोपीचंद के अधिकारों में कटौती करने का फैसला कर लिया है.

रविवार को बेंगलुरु में हुई बाई के एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग में डबल्स वर्ग और जूनियर वर्ग के लिए अलग-अलग नेशनल कोच नियुक्त करने का फैसला किया है. बाई का यह फैसला गोपीचंद के लिए झटका है क्योंकि सीनियर वर्ग के साथ साथ ये दोनों वर्ग भी अब तक बतौर चीफ नेशनल कोच गोपीचंद के ही अधिकार क्षेत्र में आते थे.


गोपीचंद के बढ़ते कद को कम करने की है तैयारी

लंबे वक्त से बाई का एक तबका गोपीचंद के पर कतरने की तैयारी में लगा था. और पूर्व अध्यक्ष अखिलेश दास गुप्ता की असामयिक मौत के इस तबके की कोशिशों में तेजी आ गई . देश में बैडमिंटन का पर्याय बन चुके गोपीचंद हर वर्ग में अलग नेशनल कोच रखने की योजना का विरोध किया तो उनके विरोधियों ने एक्जीक्यूटिव बोर्ड की मीटिंग से पहले ‘चीफ नेशनल कोच’ के पद को ही समाप्त करने का ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया था. हालांकि मीटिंग से पहले दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया और गोपीचंद ने नई व्यवस्था के लिए हामी भर दी. जल्द ही इन दोनों वर्गों के कोचों का ऐलान हो जाएगा.

बाई के इस फैसले को कबूल करके गोपीचंद ने चीफ नेशनल कोच की अपनी कुर्सी तो बचा ली है लेकिन उनके लिए आने वाले दिनों में मुसीबतें कम होती नहीं दिख रही हैं.

बाई की राजनीति में गोपीचंद को मात देने के लिए नए मोहरे तैयार किए जा रहे हैं. साल 2011 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप में डबल्स का ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली ज्वाला गुट्टा को डबल्स चीफ नेशनल कोच के पद की तगड़ी दावेदार माना जा रहा है. 33 साल की ज्वाला गुट्टा खेल से संन्यास लेकर कोच की भूमिका में आने की अपनी इच्छा जाहिर कर चुकी हैं. वहीं दूसरी ओर जूनियर वर्ग में लिए संजय मिश्रा का नेशनल कोच बनना तय माना जा रहा है. गोपीचंद के साथ ज्वाला की खटास किसी से छिपी नहीं है. कई बार ज्वाला सार्वजनिक तौर पर गोपीचंद की आलोचना कर चुकी हैं. ऐसे में कोचिंग सिस्टम के भीतर ज्वाला की मौजूदगी गोपीचंद को असहज तो बनाएगी ही.

हितों के टकराव के बहाने गोपीचंद पर साधा गया निशाना !

इसके अलावा बाई में गोपीचंद के विरोधियो ने उन्हें ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ यानी हितों के टकराव का मामले में भी घेरने की तैयारी कर ली है. दरअसल गोपीचंद नेशनल चीफ कोच होने के अलावा तेलंगाना बैडमिंटन ऐसोसिएशन के सैक्रेटरी भी हैं. एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग में एक व्यक्ति एक पद के फॉर्मूला भी पेश किया गया. यह प्रस्ताव गोपीचंद को ही ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. गोपीचंद के विरोधी गुट की कोशिश है कि इस प्रस्ताव पर बाई की स्पेशल जनरल मीटिंग में अंतिम मोहर लगा दी जाए. यह मीटिंग जुलाई के आखिरी सप्ताह में होने वाली है. हालांकि बतौर कोच गोपीचंद के योगदान को देखते हुए बाई को कोई भी पदाधिकारी खुलकर उनके खिलाफ नहीं बोल रहा है. बाई के प्रवक्ता अनूप नारंग ने भी फर्स्टपोस्ट हिंदी के साथ हुई बातचीत में माना कि गोपीचंद बाई के लिए एक संपत्ति के समान हैं और उन्हें नेशनल कोच के पद से नहीं हटाया जाएगा.

नारंग की बात सही भी है. लेकिन इसके साथ सच्चाई यह भी है कि बेंगलुरु में हुई मीटिंग में गोपीचंद को उनकी एकेडमी के नाम पर पर घेरा गया. मीटिंग में उनके विरोधी खेमे के सदस्यों ने प्राइवेट एकेडमी चलाने वालों को खिलाड़ियों की चयन प्रक्रिया से दूर किए जाने की मांग की. जाहिर हैं इसका निशाना गोपीचंद ही थे. मीटिंग में हितों के के टकराव का मसला उठाकर गोपीचंद पर जमकर निशाना साधा गया. गौतरलब है गोपीचंद की एकेडमी पूरे देश में मशहूर है और बतौर चीफ कोच गोपीचंद नेशनल सलेक्शन कमेटी के सदस्य भी है.

गोपीचंद के विरोधी खेमे के अगुआ माने जाने वाले और बाई के एक उपाध्यक्ष ने फर्स्टपोस्ट हिंदी को बताया कि हितों के टकराव का मुद्दा आगे भी उठाया जाएगा और उनकी कोशिश रहेगी इस पर जल्दी ही कोई पक्का फैसला  लिया जाए.

गोपीचंद साल 2006 से नेशनल कोच हैं. उनकी कोचिंग के दौरान ही सायना ने साल 2012 के  लंदन ओलंपिक में ब्रॉंज मेडल और पीवी सिंधु ने साल 2016 में रियो के ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता था. इसके अलावा गोपीचंद के बाकी शिष्य भी बैडमिंटन की दुनिया में धमाल मचा रहे हैं और उनके टाइटल्स की संख्या बढ़ती जा रही है. लेकिन यह संख्या बैडमिंटन ऐसोसिएशन के भीतर के गणित में गोपीचंद को कमजोर कर रही है. और शायद राजनीति इसी को कहते हैं.