जापान की राजधानी टोक्यो में हुए तीसरे एशियन गेम्स (1958) में भारतीय एथलीट मिल्खा सिंह नई सनसनी बनकर उभरे. मिल्खा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ के स्वर्ण पदक रिकॉर्ड सहित जीते. यही वो एशियन गेम्स थे जिसमें मिल्खा सिंह और पाकिस्तान के प्रसिद्ध धावक अब्दुल खालिक का पहली बार आमना-सामना हुआ और भारतीय एथलीट ने जीत हासिल की थी. मिल्खा सिंह और अब्दुल खालिक की प्रतिद्वंद्वीता आगे चल कर दोनों मुल्कों के खेल इतिहास का हिस्सा बनी.
1958 एशियन गेम्स से पहले मिल्खा सिंह के नाम पर कोई खास उपलब्धि नहीं थी, लेकिन अपने दौड़ने की स्टाइल की वजह से उन्हें भविष्य का स्टार माना जा रहा था. 1956 में पटियाला में हुए नेशनल्स में वह 400 मीटर में स्वर्ण पदक नहीं जीत सके थे. लेकिन उन्होंने सबको प्रभावित किया था. उसके बाद सभी को आश्चर्य चकित करते हुए वह 1956 मेलबर्न ओलिंपिक के लिए भारतीय टीम में सेलेक्ट हो गए. लेकिन मेलबर्न में दुनिया के शीर्ष एथलीटों से मिलने के बाद उन्होंने ट्रेनिंग की आधुनिक तकनीक के बारे में जाना. इसके बाद 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर प्रतियोगिता में राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया.
इसके बाद आए 1958 एशियन गेम्स. इन्हीं खेलों में मिल्खा सिंह और अब्दुल खालिक के बीच प्रतिद्वंद्वीता की नींव पड़ी. अब्दुल खालिक उस समय 100 मीटर दौड़ में एशिया के सबसे तेज धावक थे. वह ये दूरी 10.3 सेकेंड में पूरी करते थे. मिल्खा सिंह जब पहली बार होटल में अब्दुल खालिक से मिले तो उसने उन्हें दोस्ताना लहजे में 200 मीटर दौड़ में देख लेने को कहा. अब्दुल खालिक ने तब कहा था कि मैंने तुम्हारे जैसे ना मालूम कितने लोगों को हराया है. मेरा तुम्हारा कोई मुकाबला ही नहीं है. एशियन गेम्स के दूसरे दिन मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ का स्वर्ण पदक जीत लिया. उन्हें इसका प्रबल दावेदार भी माना जा रहा था. मिल्खा सिंह ने 46.6 सेकेंड का समय दर्ज कराया, जो नया एशियन गेम्स रिकॉर्ड था. इसके बाद मिल्खा सिंह जापानी खेल प्रेमियों के बीच हीरो बन गए.
लेकिन इन खेलों का असली रोमांच तो अभी बाकी था. 200 मीटर दौड़ का फाइनल अगले दिन होना था. अब्दुल खालिक ने अपनी 100 पसंदीदा मीटर दौड़ जीत ली थी. 200 मीटर के फाइनल में एशिया के सबसे तेज धावक की प्रतिष्ठा दांव पर थी. जैसे ही स्टार्टिंग गन चली छह एथलीटों के बीच जंग शुरू हो गई. 100 मीटर तक मिल्खा और खालिक के बीच बराबरी का मुकाबला चल रहा था. मिल्खा एकदम अंदर की लेन में थे जबकि खालिक उनसे दो लेन दूर थे. दोनों जानते थे कि विजेता का फैसला फिनिश लाइन से पहले नहीं होगा. आखिरकार मिल्खा ने बाजी मार ली. वह 21.6 सेकेंड के समय से स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहे. उनका ये समय एशिया का दूसरा सर्वश्रेष्ठ समय था. दो दौड़, दोनों में शानदार प्रदर्शन और मिल्खा को एशिया का सर्वश्रेष्ठ एथलीट चुना गया.
कैसे बने ‘फ्लाइंग सिख’
एथलेटिक्स की दुनिया में मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख के नाम से भी जाना जाता है. बहुत कम लोगों को पता है कि मिल्खा सिंह को ये खिताब पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने दिया था.मिल्खा सिंह ने 1960 में अब्दुल खालिक को लाहौर में पछाड़ा जिसके बाद अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ कह कर पुकारा. दौड़ के बाद मिल्खा सिंह को पदक देते हुए अयूब खान ने कहा था, ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो. इसलिए हम तुम्हे फ्लाइंग सिख के खिताब से नवाजते हैं.’
प्रद्धुमन, मोहिंदर और बलकार ने दिलाया सोना
1954 मनीला एशियन गेम्स में शॉटपुट में अपना लोहा मनवाने वाले प्रद्धुमन सिंह बराड़ ने लगातार दूसरी बार स्वर्ण पदक जीता. जबकि डिस्कस थ्रो में उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा. मोहिंदर सिंह ने ट्रिपल जंप और बलकार सिंह ने डिस्कस थ्रो में सोना जीता. इन खेलों में भारत ने कुल पांच स्वर्ण, चार रजत और चार कांस्य सहित कुल 13 पदक जीते. इनमें से पांच स्वर्ण सहित कुल नौ पदक एथलेटिक्स में मिले. इसके अलावा हॉकी से रजत, मुक्केबाजी से एक रजत और एक कांसा, जबकि फुटबॉल से कांस्य पदक झोली में आया.