इस एशियाड में भारत का सबसे सफल खेमा एथलेटिक्स का रहा,जहां देश ने सात गोल्ड, 10 सिल्वर और 2 ब्रॉन्ज सहित कुल 19 मेडल जीते. नीरज चोपड़ा, हिमा दास, स्वप्ना बर्मन, जिनसन जॉनसन सहित कई एथलीट ने यहां परचम लहराया और सभी के लिए यहां मेडल एक सपने जैसा रहा, लेकिन इन नामों के बीच एक नाम ऐसा भी है, जिसके पास 69 में से एक मेडल है और जिसके संघर्ष ने उसके मेडल को और अधिक खास बना दिया. यह नाम है पीयू चित्रा का, जिन्होंने 1500 मीटर में भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया. चित्रा का पोडियम तक का सफर भूख से होता हुआ अदालत तक पहुंचा और फिर पोडियम तक.
दअरसल चित्रा काफी गरीब परिवार से थी. इनके माता और पिता दोनों ही मजूदरी करते थे और जिस दिन माता पिता को कोई काम नहीं मिलता, उस दिन उन्हें किसी का बचा हुआ खाना खाकर पेट भरना पड़ता था. ऐसे में अपने चार बच्चों का पेट भी वह सही से भर नहीं पाटे थे. कई बार तो चित्रा को भूखे पेट तक सोना पड़ा. घर की ऐसी हालात में खेल के बारे में सोचना मुश्किल जरूर था, लेकिन चित्रा ने इसके आसान बना दिया. स्कूल में पढ़ते हुए केरल स्पोर्ट काउंसिल और युवा एथलीटों के लिए चलने वाली स्कीम के तहत भारतीय खेल प्राधिकरण से मिलने वाली मदद से उन्होंने अपनी बेसिक ट्रेनिंग जारी रखी और अपने सफर को आगे बढ़ाया.
2017 में उनका सफर कुछ समय के लिए अदालत से होते हुए गुजरा. दरअसल 2017 में लंदन में हुए विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए भारतीय एथलेटिक्स महासंघ ने कट ऑफ तारीख का हवालाइ देते हुए उनकी एंट्री को अस्वीकार कर दिया था, इसके बाद केरल हाईकोर्ट ने चित्रा की याचिका पर महासंघ से जवाब भी मांगा था. हालांकि इस मध्यम गति की धाविका के वकील का कहना था कि चित्रा के साथ की एथलीट सुधा सिंह को भी एंट्री की कट ऑफ तारीख के बाद ही टीम में शामिल किया गया था.