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Asian Games 2018: क्‍या युवा चौड़ा कर पाएंगे भारत का '57 इंच का सीना' ?

कॉमनवेल्‍थ की तुलना में भारत के लिए एशियाड अधिक चुनौतियों वाला होता है. 2014 इंचियोन एशियाड में भारत ने 57 मेडल जीते थे.

Sachin Shankar

आज उस बात को 32 साल हो गए हैं, लेकिन एशियाई खेलों के मौके पर उसे याद नहीं किया जाए तो उस महान खिलाड़ी के प्रदर्शन के साथ ज्यादती होगी. पीटी उषा ने 1986 के सियोल एशियाई खेलों में भारत के लिए चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीता था. उड़नपरी उषा ने अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां हासिल करके एक मिसाल कायम की थी. लेकिन ऐसी उड़नपरियों को निखारने में संसाधन लगाने की जगह हम उपमहाद्वीप के स्तर पर अपनी बढ़त खोते रहे. फिलहाल सवाल यही है कि क्या शनिवार से इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता और पेलेमबैंग में 18 अगस्त से शुरू हो रहे एशियाई खेलों में भारत सीना तानकर खड़ा हो सकेगा. वैसे मामला इतना निराशाजनक भी नहीं है.

पिछले एक दशक में भारत में एथलेटिक्स के अलावा बैडमिंटन, निशानेबाजी, कुश्ती, मुक्केबाजी, तीरंदाजी और टेनिस में कुछ उम्मीद जगी है. इस बार युवा खिलाड़ी देश का मान बढ़ा सकते हैं. युवा खिलाड़ियों में जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा, स्प्रिंटर हिमा दास, निशानेबाज मनु भाकर, एथलीट मोहम्मद अनस और पैडलर मनिका बत्रा इस बार भारत की झोली में सोने का पदक डाल सकते हैं. उनके अलावा सुशील कुमार जैसे अनुभवी खिलाड़ियों की जमात तो है ही. गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने पदकों की संख्या में दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. लेकिन ज्यादातर खिलाड़ियों और उनके कोच ने स्वीकार किया है कि चीन, जापान और कोरिया जैसे ताकतवर देशों की मौजूदगी में उनके लिए चुनौती काफी मुश्किल होगी. हालांकि इससे न तो उत्साह और न ही उम्मीदों में कमी आई.


45 देशों के बीच है मुकाबला 

इस बार जकार्ता में 45 देश हिस्सा ले रहे हैं. जिनके करीब 10,000 एथलीट 40 खेलों के 465 स्पर्धाओं में जोर आजमाइश करेंगे. भारत ने इन खेलों के लिए 756 सदस्यीय दल को हरी झंडी दिखाई है. इसमें 572 खिलाड़ी 184 कोच व सहयोगी स्टाफ शामिल हैं. तो क्या भारत इस बार इंचियोन 2014 में जीते 11 स्वर्ण पदकों (इसके अलावा 10 रजत और 36 कांस्य) को पीछे छोड़ सकता है. हां, ये हो सकता है अगर सभी दावेदार खिलाड़ियों को अनुकूल ड्रॉ मिले. वैसे खुद आईओए अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने इस बार 65 से 70 तक पदक जीतने की उम्मीद जताई है. भारतीय दल अगर शीर्ष पांच देशों में जगह बनाने में कामयाब हो जाए तो इसे सम्मानजनक माना जा सकता है. क्योंकि इंचियोन में भारत आठवें और ग्वांग्झू एशियाई खेलों में छठे स्थान पर रहा था. भारत पिछली बार 1986 में पांचवें स्थान पर रहा था, हालांकि तब वो केवल पांच स्वर्ण पदक ही जीत सका था.

भारत का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2010 के ग्वांग्झू एशियाई खेलों में रहा था, जब उसने 14 स्वर्ण पदक सहित 65 पदक जीते थे. 2010 के ग्वांग्झू एशियाई खेल 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद आयोजित किए गए थे इसलिए उनके लिए की गई तैयारियों का लाभ भारत को वहां मिला था. भारत के ओवरऑल प्रदर्शन पर नजर डाली जाए तो वो 1951 के पहले यानी दिल्ली एशियाई खेलों में दूसरे स्थान पर रहा था. तब उसने 15 स्वर्ण पदक सहित 52 पदक जीते थे.

एथलेटिक्स में युवाओं का दम

भारत के स्टार भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा जकार्ता में स्वर्ण पदक के सबसे बड़े दावेदार हैं. नीरज ने पिछले दिनों फिनलैंड में सावो खेलों में शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक हासिल कर अपने दावे को पुख्ता किया था. वहीं साढ़े सोलह वर्षीय हिमा दास पिछले दिनों विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 400 मीटर दौड़ का स्वर्ण जीतकर अपनी धाक जमा चुकी हैं.

यह गौरव पाने वाली वह पहली भारतीय हैं. मोहम्मद अनस 400 मीटर दौड़ में इस वार सभी को चौंका सकता है. उनके रहने से पुरुषों की 4 गुणा 400 मीटर रिले में भारतीय टीम काफी दमदार दिखाई दे रहे हैं.

ऐन मौके पर पेस ने लिया नाम वापस

टेनिस दल को खेल शुरू होने से पहले ही नाटक का सामना करना पड़ रहा है और यह हर बड़े टूर्नामेंट में उसका ट्रेडमार्क बनता जा रहा है. लिएंडर पेस के अंतिम समय पर हटने से कोच और कप्तान जीशान अली को पुरुष और मिक्स्ड डबल्स के जोड़ीदारों का चयन करना होगा. हालांकि इस अनुभवी स्टार के इस कदम से कितना असर पड़ता है, यह देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि लिएंडर पेस एशियाई खेलों के सबसे सफल भारतीय टेनिस खिलाड़ी हैं. वह अब तक पांच स्वर्ण सहित सात पदक जीत चुके हैं. 1994 के हिरोशिमा एशियाई खेलों में उन्होंने गौरव नाटेकर के साथ पुरुष डबल्स का गोल्ड जीतकर अपना अभियान शुरू किया था. उनकी गैरहाजिरी में डबल्स में रामकुमार रामनाथन पर पूरा दारोमदार होगा. रामनाथन डबल्स में तो दावेदार हैं ही, साथ ही सिंगल्स का स्वर्ण पदक भी जीत सकते हैं.

शटलर खुद को साबित करने को तैयार

कॉमनवेल्थ गेम्स में शानदार खेल के बाद एशियाई खेलों में भारतीय शटलर खुद को साबित करने के लिए तैयार है. 2014 एशियाई खेलों में भारत को बैडमिंटन में सिर्फ एक कांस्य पदक मिला था. भारतीय बैडमिंटन टीम में जहां पीवी सिंधु, सायना नेहवाल, किदांबी श्रीकांत जैसे खिलाड़ी शामिल है, वहीं भारतीय कोच पुलेला गोपीचंद की बेटी गायत्री गोपीचंद, अस्मिता चालिहा जैसे युवा खिलाड़ियों को भी जगह दी गई है. महिला टीम की अगुआई रियो ओलिंपिक सिल्वर मेडलिस्ट पीवी सिंधु करेंगी, वहीं पुरुष टीम किदांबी श्रीकांत के नेतृत्व में उतरेगी.

सुशील कुमार और बजरंग पर नजर

स्टार पहलवान सुशील कुमार की निगाहें एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल करने पर लगी हैं, जिसकी तैयारी के लिए वह जॉर्जिया में कड़ा अभ्यास कर रहे हैं. लंदन ओलंपिक खेलों के 66 किग्रा वर्ग के रजत पदकधारी फ्रीस्टाइल पहलवान ने कुश्ती में चार साल बाद वापसी करके ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान की 74 किग्रा में स्वर्ण पदक जीता था.

सुशील विश्व और एशियाई चैंपियन हैं, लेकिन एशियाई खेलों में स्वर्ण नहीं जीत सके हैं, इसके लिए वह तपस्या में लगे हुए हैं. वह पिछले ग्वांग्झू और इंचियोन एशियाई खेलों में भाग नहीं ले पाए थे. सुशील ने 2006 दोहा एशियाई खेलों में कांस्य पदक अपने नाम किया था. बजरंग भी स्वर्ण पदक के दावेदार हैं. वहीं महिलाओं में साक्षी मलिक और वीनेश फोगट भी स्वर्ण पदक की दावेदारों में शामिल हैं.

कबड्डी में दो स्वर्ण पदक पक्के!

भारत का कबड्डी में हमेशा दबदबा रहा है. कबड्डी की इन खेलों में शुरुआत से से अब तक के सभी नौ स्वर्ण पदक भारत के ही खाते में गए हैं. भारत के सामने ईरान की चुनौती ही दमदार नजर आती है. महिला कबड्डी टीम ने भी पिछले खेलों में स्वर्ण पदक जीता था.

जिम्नास्टिक्स में दीपा करमाकर

इन खेलों में कुछ खिलाड़ी वापसी करके अपनी प्रतिष्ठा बहाल करना चाहेंगे. इनमें रियो ओलिंपिक में जिम्नास्टिक्स में चौथा स्थान पाने वाली दीपा करमाकर प्रमुख हैं. दीपा रियो ओलिंपिक के बाद घुटने में चोट लगने की वजह से कॉमनवेल्थ गेम्स में वापसी नहीं कर सकीं थीं. उन्होंने पिछले माह तुर्की में हुई एफआईजी आर्टिस्टिक जिम्नास्टिक वर्ल्ड चैलेंज कप में महिलाओं की वॉल्ट स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतकर जकार्ता में कुछ बड़ा करने का संकेत दे दिया है.

निशानेबाजी में मनु और अनीश से आस

राष्ट्रमंडल खेलों में धूम मचाने वाले भारतीय निशानेबाज यहां भी सोने पर निशाना लगाने के लिए तैयार हैं. निशानेबाजी में सभी की निगाहें दो युवाओं पर हैं. पहले 15 साल के अनीश भानवाला और दूसरा 16 साल की सनसनी मनु भाकर. पिस्टल शूटर मनु भाकर इस साल की शुरुआत में मेक्सिको आईएसएसएफ विश्व कप में दोहरा गोल्ड मेडल जीतकर धमाल मचा चुकी हैं. यह कमाल करते वक्त वह मात्र 16 साल की थीं और आईएसएसएफ विश्व कप में गोल्ड जीतने वाली सबसे कमउम्र निशानेबाज बनी थीं.

मनु भाकर

इस पिस्टल निशानेबाज से एशियाई खेलों में दोहरे स्वर्ण पदक की उम्मीद की जा सकती है. अपने पहले राष्ट्रमंडल खेल में ही स्वर्ण पदक जीत कर अनीश ने इतिहास रचा. साथ ही 15 साल की उम्र में सोना जीतने वाले अनीश पहले खिलाड़ी भी बने. 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल स्पर्धा में अनीश ने कमाल की निशानेबाजी की. वह एशियाई खेलों के रैपिड फायर स्पर्धा में ही चुनौती पेश करेंगे. इसके अलावा अपूर्वी चंदेला, श्रेयसी सिंह और राही सरनोबत से भी देश को पदक की उम्मीद है. गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन से निशानेबाज भी उत्साहित हैं. हालांकि उन्हें यहां पदक के लिए ज्यादा मेहनत करनी होगी.

हॉकी में नजर ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने पर 

पुरुष हॉकी टीम स्वर्ण पदक जीतकर सीधे 2020 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने पर नजर लगाए होगी. टीम हाल में चैंपियंस ट्रॉफी में ऑस्ट्रेलिया के बाद उपविजेता रही थी और उसके सामने ज्यादा कड़ी चुनौतियां नहीं होंगी इसलिए अगर वह स्वर्ण के बिना लौटती है तो यह निराशाजनक ही होगा. महिला टीम विश्व कप के सेमीफाइनल में ऐतिहासिक स्थान से चूक गई, लेकिन रानी रामपाल की अगुआई वाली टीम से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है और वह इंचियोन में  मिले कांस्य पदक के रंग को बदलना चाहेगी.