आज से 67 साल एशियन गेम्स शुरू हुए थे और तब से भारत इसमें लगातार हिस्सा ले रहा है. हर चार साल में होने वाले एशियाड में एशिया के लगभग तमाम देश हिस्सा लेते हैं. भारत की एक नई उम्मीद के साथ उतरता है और हर बार हमे वहां उम्मीदों के मुताबिक परिणाम नहीं मिला, लेकिन इंडोनेशिया में हुए एशियन गेम्स की पहले के मुताबिक चर्चा अधिक है. इसके पीछे कारण यह नहीं कि एशियन गेम्स में हमने हमारा सर्वश्रेष्ठ आंकड़ा छू लिया, जो 1951 में 15 गोल्ड मेडल था, बल्कि इस लिए की चीन, जापान, कोरिया जैसे देशों की मौजूदगी में उस आंकड़े को छुआ.1951 में सिर्फ 11 देश थे और अब 45 देश. हमेशा तालिका में शीर्ष 5 में रहने वाले देशों के खिलाड़ियों को इस बार हमने कड़ी टक्कर देकर मेडल जीता.
आप खुद अंदाजा लीजिए हमारे लिए कौनसा एशियाड सर्वश्रेष्ठ है 1951 या 2018...
भारत ने 1951 में घर में हुए पहले एशियाई खेलों में जीते सर्वाधिक 15 गोल्ड मेडल जीतने की बराबरी की और 2010 के ग्वांगझू खेलों में जीते सर्वाधिक 65पदकों को पार करने में भी सफलता हासिल की है. भारत ने इस बार 15 गोल्ड, 24 रजत और 30 कांस्य पदकों से कुल 69 पदक जीते हैं. इस प्रदर्शन से यह उम्मीद जरूर बंध रही है कि हम जल्द ही कॉमनवेल्थ गेम्स की तरह 100 पदकों तक पहुंच सकते हैं. भारत इस बार पदक तालिका में आठवें स्थान पर रहा. भारत ने लगातार दूसरी बार यह स्थान हासिल किया है. 2010 में ग्वांगझू में भारत ने 14 स्वर्ण और 17 रजत से कुल 65 पदक जीतकर छठा स्थान हासिल किया था. भारत ने 1986के सिओल एशियाई खेलों तक एक बार दूसरा, एक बार तीसरा, पांच बार पांचवां, एक बार छठा और दो बार सातवां स्थान हासिल किया, लेकिन इस दौरान भाग लेने वाले देशों की संख्या 11 से 23 तक सीमित रही. लेकिन पिछले चार एशियाई खेलों से45 देश भाग ले रहे हैं. इतना जरूर है कि कबड्डी और हॉकी टीमें भी गोल्ड के साथ लौटती तो भारत का प्रदर्शन और चमकदार हो सकता था.
एथलीटों ने लहराया परचम
भारतीय दल में सबसे ज्यादा प्रभावित भारतीय एथलेटिक्स दल ने किया है. इस दल ने सात स्वर्ण, 10 रजत और दो कांस्य पदक से कुल 19 पदक जीते. इसे भारत का अब तक का इस खेल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन माना जा सकता है. भारत द्वारा जीते सात में से पांच स्वर्ण जीतने के बारे में किसी को भी हैरत नहीं हुई. लेकिन स्वप्ना बर्मन ने हेप्टाथलान और मनजीत के 800 मीत्तर दौड़ के स्वर्ण जीतने पर सभी को हैरत हुई. असल में 800 मीटर दौड़ में भारत को स्वर्ण जीतने की उम्मीद तो थी पर मनजीत के बजाय जिंसन जॉनसन से यह उम्मीद लगाई जा रही थी, लेकिन मनजीत ने आखिरी समय में फर्राटा लगाकर गोल्ड पर कब्जा जमाकर सभी को हतप्रभ कर दिया. पर जिंसन ने 1500 मीटर दौड़ का स्वर्ण जीतकर संतुष्टि वाला प्रदर्शन कर लिया. स्वप्ना बर्मन के हेप्टाथलान में गोल्ड जीतने के बारे में तो किसी ने भी नहीं सोचा था. रिक्शा चालक की इस बेटी का गरीब होना ही मुश्किल न होकर दोनों पैरों में छह अंगलियां होना है. इसकी वह से नाप के जूते मिलना तक मश्किल रहा. इसलिए सामान्य जूतों से ही काम चलाकर इस मुकाम तक पहुंच गई, लेकिन अब एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्हें किसी बड़ी कंपनी से उनके नाप के जूते मिलने की उम्मीद की जा सकती है. हिमा दास और दुती चंद दोनों से ही स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन हिमा दास ने 400 मीटर दौड़ में और दुती चंद ने 100 मीटर दौड़ में रजत पदक जीतकर अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया.
नीरज सही मायनों में चैंपियन
नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में विश्व स्तरीय प्रदर्शन से स्वर्ण पदक जीतकर दिखाया है कि उनमें ओलिंपिक चैंपियन बनने की क्षमता है. इस स्पर्धा में नीरज के दबदबे को इस तरह समझा जा सकता है कि उन्होंने पहले प्रयास में जेवलिन को 83.46मीटर फेंक दिया और कोई अन्य जेवलिन थ्रोअर इस दूरी को पार नहीं कर सका. हालांकि नीरज ने तीसरे प्रयास में 88.06 मीटर जेवलिन फेंककर अन्य सभी प्रतियोगियों की उम्मीदों को पूरी तरह से तोड़ दिया. नीरज का आम को पेड़ों से चुराने से लेकर जिम जाने और इस गोल्ड तक पहुंचने का सफर बेहद दिलचस्प है. अब इस जेवलिन थ्रोअर ने अगले ओलिंपिक और विश्व चैंपियनशिप में कोई न कोई पदक जीतने की उम्मीद की जा रही है. सच कहें तो देश को नीरज के रूप में एक रियल चैंपियन मिल गया है.
भारत 22 खेलों में खाली हाथ
भारत ने 38 खेलों में भाग लेने के लिए 312 पुरुष और 258 महिलाओं सहित 570 सदस्यीय दल भेजा था. इस दल ने जकार्ता में आयोजित हुए 38 खेलों में भाग लिया. भारत 22 खेलों में पदकों का खाता खोले बगैर लौट आया है. इन खेलों में 228 खिलाड़ियों ने भाग लिया. इससे लगता है कि भारत यदि पदक मिलने वाले खेलों पर ही फोकस करे तो और बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. भारत इन खेलों के अलावा कुश्ती, मुक्केबाजी और तीरंदाजी जैसे खेलों में भी उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सका. हालांकि कुश्ती में बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट ने स्वर्ण पदक जीते. मुक्केबाजी में भी अमित पंघाल ने आखिरी दिन स्वर्ण पदक जीता, लेकिन इनमें हम उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन करने में असफल रहे.
हॉकी और कबड्डी ने सबसे ज्यादा किया निराश
पुरुष हॉकी, कबड्डी पुरुष और महिला दोनों वर्गों में किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह टीमें बिना स्वर्ण पदक के लौटेंगी. हॉकी टीम ने सेमीफाइनल में मलेशिया से शूटऑउट में हारकर और फिर पाकिस्तान को हराकर कांस्य पदक हासिल किया. पर इस प्रदर्शन को बेहद निराशाजनक माना जा रहा है. स्वर्ण पदक तक नहीं पहुंच पाने से एक तो 2020 के टोक्यो ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने का मौका गंवा दिया.
दूसरे साल आखिर में होने वाले विश्व कप से पहले टीम फिर से दोराहे पर खड़ी नजर आ रही है. कोच हरेंद्र सिंह टीम को विश्व कप में पोडियम पर नहीं चढ़ा सके तो उनके सिर पर तलवार लटक सकती है. यह अलग बात है कि ओलिंपिक से पहले एक और कोच के जाने से जो नुकसान होगा, उस बारे में सोचा ही नहीं जा रहा है.यहां तक कबड्डी की बात है तो हम अति आत्मविश्वास का शिकार बन गए हैं. हमारे यहां माना जा रहा था कि कोई भी टीम भेज दो, लौटकर गोल्ड के साथ ही आना है, लेकिन यह भूल गए कि प्रो कबड्डी लीग में खेलकर ईरान और दक्षिण कोरिया ने अपने स्तर को बहुत सुधार किया. इस तरह उन्होंने हमसे सीखे दांव पेच से हमें ही मात दे दी है.
अब इस खेल में हमारे ऊपर हॉकी की तरह ही पिछड़ने का खतरा मंडराने लगा है. महिला हॉकी टीम भी स्वर्ण नहीं ला सकी. पर उन्होंने 20 साल में पहली बार फाइनल तक चुनौती पेश करके खूब वाह वाही लूटी है.
यंग ब्रिगेड ने किया धमाल
भारत की इस बार की सफलता की सबसे बड़ी खूबी ज्यादातर पदक विजेताओं का युवा होना है.हम यदि स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ियों पर नजर डालें तो बजरंग, विनेश फोगाट, सौरभ चौधरी, तजिंदर पाल सिंह, नीरज चोपड़ा, स्वप्ना बर्मन और अमित पंघाल सभी 24 साल के अंदर हैं.इस कारण इन सभी खिलाड़ियों से कम से कम अगले ओलिंपिक तक अपना बेस्ट देने की उम्मीद की जा सकती है.अब जरुरत इन युवा चैंपियनों की प्रतिभा को मांजने की है.हम यदि ऐसा कर सके तो ओलिंपिक में हम प्रतिष्ठा के अनुरूप प्रदर्शन करने में कामयाब हो सकते हैं.