view all

69 मेडल@69 कहानियां: महिला टीम का 21वीं सदी में पहली बार फाइनल में पहुंचने का सफर

कहानी 23: किसी ने नहीं लगा रखी थी कोई उम्‍मीद, कोच तक की कर दी गई अदला-बदली

FP Staff

दिलचस्प है कि पुरुष हॉकी में रैंकिंग बहुत बड़ा मुद्दा रहा. लेकिन महिला हॉकी में नहीं. पुरुष में पांचवें नंबर की भारतीय टीम 12वें नंबर की मलेशियाई टीम से हारी. जाहिर है, इसे बेहद कमजोर प्रदर्शन माना गया. लेकिन नौवें नंबर की महिला टीम जब 14वें नंबर की जापान टीम से फाइनल हारी, तो इसे कमजोरी नहीं कहा गया. इसकी तारीफ हुई. शायद इसलिए, क्योंकि महिला टीम से उस तरह की उम्मीदें नहीं थीं. शायद इसलिए भी कि महिला टीम के साथ पिछले दिनों जैसा सुलूक हुआ, उसमें सिल्वर जीतना कम बड़ी बात नहीं है.

जब पुरुष टीम कॉमनवेल्थ गेम्स में कमजोर प्रदर्शन के बाद लौटी, तो कोच बदलने की बात हुई. श्योर्ड मरीन्ये महिला टीम के कोच थे, जिन्हें कुछ समय पहले ही पुरुष टीम के साथ जोड़ा गया था. मरीन्ये को बाहर किया जाना तय हुआ. लेकिन साई से लेकर खेल मंत्रालय तक के बवाल से बचने के लिए उन्हें पुरुष टीम से तो हटा दिया गया. लेकिन महिला टीम सौंप दी गई. महिला टीम के कोच हरेंद्र सिंह पुरुष टीम के कोच हो गए.


यहां से शुरुआत करने वाली महिला टीम फाइनल में पहुंची. वो भी कजाखस्तान को 21 और इंडोनेशिया पर आठ गोल से जीत दर्ज करने के बाद. ये तो कमजोर टीमें थीं. कोरिया को 4-1 से हराना तय कर गया कि अब वो पूल मे टॉप करेंगे. लेकिन चीन के खिलाफ प्रदर्शन कमजोर था. महज एक गोल से जीतने में कामयाबी मिली. हालांकि यह एक गोल फाइनल में पहुंचाने के लिए काफी था. फाइनल में जापान टीम रैंकिंग में भले ही पीछे हो. लेकिन खेल में वो भारत पर भारी थी. जैसा मैच था, नतीजा वैसा ही रहा. 2-1 से जापान जीता और भारत को रजत पदक मिला. फाइनल हारने की निराशा जरूर होती है. लेकिन उस निराशा से उबरने के बाद सिल्वर जीतना खुशी देता है. पुरुषों की तरह नहीं, जहां निराशा से टीम शायद ही अभी उबरी होगी. भारतीय टीम भले ही ओलिंपिक्स के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाई. लेकिन 20 साल बाद या यूं कहें कि 21वीं सदी में पहली बार फाइनल खेली.