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Asian Games 2018: दो साल से नौकरी के लिए भी दौड़ रहे हैं गोल्ड मेडलिस्ट मंजीत

मंजीत ने 800 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीतकर पूरे देश को चौंका दिया

FP Staff

एशियन गेम्स में भारतीय एथलीट्स ने अब तक नौ गोल्ड मेडल हासिल किए हैं. इन मेडल्स को जीतने वाला हर एथलीट तारीफ का हकदार है लेकिन इनमें से जिस गोल्ड मेडल पूर देश को चौका दिया वह मंगलवार को एथलीट मंजीत ने जीता.

800 मीटर की दौड़ में मंजीत की बजाय भारत के एक और एथलीट जिंसन जॉनसन को मेडल का दावेदार माना जा रहा था. इस रेस में वह आगे भी चल रहे थे और मंजीत तो फ्रेम में कहीं थे ही नहीं. आखिरी के 50 मीटर की रेस में मंजीत ने ऐसा फर्टारा भरा के सभी पीछे रह गए और मंजीत ने गोल्ड जीत लिया.


जकार्ता में 800 मीटर की रेस मे मंजीत इस तरह गोल्ड मेडल हासिल करना किसी फिल्मी कहानी के उस मेहमान कलाकर की तरह है है जो क्लाइमेक्स को रोमांच से भर देता है. लेकिन मंजीत की खुद की कहानी फिल्मी दुनिया जैसी कतई रंगीन नहीं है.

ऐथेलेटिक्स के ट्रैक पर दौड़ कर गोल्ड हासिल करने वाले मंजीत पिछले दो साल से नौकरी के लिए दौड़ रहे हैं. इस दौरान एक वक्त तो ऐसा भी जब वह एथलेटिक्स को छोड़ने का मन बना चुके थे.

दो साल से बेरोजगार हैं मंजीत

दरअसल हरियाणा के जींद के रहने वाले मंजीत की शुरुआत एक इंटर-स्टेट दौड़ में जीत के साथ हुई . उनकी प्रतिभा को देखते हुए ओएनजीसी ने उन्हें नौकरी तो दी लेकिन वह नौकरी कॉन्ट्रेक्चुअल थी. मंजीत 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों में टीम में जगह बनाने में तो कामयाब रहे लेकिन कोई मेडल नहीं जीत सके. ट्रैक पर मंजीत की नाकामी उनके रोजगार पर भारी पड़ी और ओएनजीसी ने उनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया. दो साल पहले बेरोजगार हुए मंजीत ट्रैक  अपनी काबिलीयत साबित करने के लिए तो दौड़ ही रहे थे साथ नौकरी पाने की दौड़ भी जारी थी.

यही नहीं इस दौरान निराश होकर मंजीत ने ट्रैक को अलविदा कहने का मन भी बना लिया था लेकिन कोच के सझाने के बाद वह ट्रैक पर बने रहे. यही नहीं वह ट्रेनिंग के सिलसिले में पिछले चार महीने से घर से बाहर हैं. इस दौरान वह पिता भी बने लेकिन अबतक अपने बेटे की शक्ल तक नहीं देख सके हैं.

अब चूंकि मंजीत के नाम एशियन गेम्स को गोल्ड मेडल आ चुका है तो उन्हें उम्मीद होगी कि उनकी जिंदगी भी बदल जाएगी.