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निशानेबाजी में नई प्रेरणा के रूप में उभर रहे हैं अंकुर मित्तल, पिता को देते हैं श्रेय

भारतीय निशानेबाज अंकुर मित्तल विश्व रैंकिंग में डबल ट्रैप वर्ग में शीर्ष स्थान पर काबिज हैं

IANS

निशानेबाजी में नई प्रेरणा के रूप में उभर रहे भारतीय निशानेबाज अंकुर मित्तल  विश्व रैंकिंग में डबल ट्रैप वर्ग में शीर्ष स्थान पर काबिज हैं. मानव रचना इंस्टिट्यूट से एमबीए की पढ़ाई कर रहे अंकुर आज भले ही अपना नाम बना चुके हैं, लेकिन इस ख्याति का श्रेय वह पूरी तरह से अपने पिता को देते हैं, जिन्होंने हर प्रकार से उनका समर्थन किया है.

सरकार से मिलने वाली सहायता के बारे में अंकुर ने कहा कि सरकार खिलाड़ियों की सहायता तो करती है लेकिन उनकी उपलब्धियों के बारे में जानने के बाद.


अंकुर ने कहा, 'अगर कोई खिलाड़ी शानदार प्रदर्शन करते हुए ख्याति बटोरता है, तो सरकार भी उसकी मदद के लिए आगे आती है, जबकि सरकारी की इस मदद की जरूरत एक खिलाड़ी को तब होती है, जब वह अपने करियर की शुरूआत करता है.'

बकौल अंकुर, 'अब आप निशानेबाजी के देख लीजिए. यह काफी महंगा खेल है और इसमें काफी खर्चा भी आता है. एक आम इंसान के लिए इस खेल को करियर बनाना आसान नहीं. ऐसे में जमीनी स्तर पर सरकार को ऐसी प्रतिभाओं की मदद करने की जरूरत है. उनके लिए सुविधाएं बनाने की जरूरत है. जैसे प्रशिक्षण शिविर का आयोजन करना और कार्यक्रमों का आयोजन करना आदि

अंकुर का कहना है कि एक ओर सरकार को उम्मीद रहती है कि उनके देश के खिलाड़ी प्रतियोगिताओं में पदक लेकर आएंगे, लेकिन इस उम्मीद को बनाए रखने के लिए सरकार को जमीनी स्तर पर नई प्रतिभाओं को तराशने के लिए सुविधाएं देनी चाहिए.

अंकुर ने कहा कि एक आम इंसान के लिए निशानेबाज बनना बेहद मुश्किल होता है. उन्होंने कहा, 'खिलाड़ी बन सकता है लेकिन उसे सुविधाएं चाहिए और वो महंगी हैं. अब आप देख लें कि किन हालातों में एक निशानेबाज तैयार होता है. मैं अपने घर वालों की मदद की बदौलत यहां तक पहुंचा हूं. भारत में ऐसे युवाओं के लिए नि:शुल्क अभ्यास के लिए कोई सुविधा नहीं है.'

अंकुर ने 2010 में अपने करियर की शुरूआत की थी. उन्हें निशानेबाजी की प्रेरणा अपने पिता अशोक मित्तल और बड़े भाई अजय मित्तल से मिली. दोनों ही निशानेबाज रहे हैं. अंकुर के बड़े भाई अजय राष्ट्रीय चैम्पियन और जूनियर एशियन चैंपियनशिप का खिताब जीत चुके हैं.

उन्होंने कहा, 'बचपन से मैं अपने पिता और भाई को निशानेबाजी करते देखा था. 2011 में इटली में जूनियर चैंपियनशिप में मैंने पहला पदक लिया था. इसके बाद मैं वरिष्ठ वर्ग में शामिल हो गया. 2014 में मैंने राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में हिस्सा और केवल एक अंक के अंतर से मैं पदक हासिल नहीं कर पाया.'

अंकुर के जीवन में सबसे बड़ा मोड़ 2014 में आया. उन्होंने एशियाई शॉटगन चैंपियनशिप के चौथे संस्करण में डबल ट्रैप वर्ग में स्वर्ण पदक जीता और इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा.केवल यहीं नहीं. अंकुर ने इस साल मार्च में मेक्सिको में आईएसएसएफ शॉटगन वर्ल्ड कप टूर्नामेंट में डबल ट्रैप प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता था.

दिल्ली में अक्टूबर में आयोजित होने वाले वर्ल्ड कप फाइनल्स -2017 में भी अंकुर का लक्ष्य स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाना होगा.