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अलविदा 2018: टेनिस में कुछ उम्मीदें बनीं पर कहने को ज्यादा कुछ नहीं

लिएंडर पेस पर उम्र का प्रभाव पड़ने, रोहन बोपन्ना के चोटिल होने के कारण रंगत में नहीं होने से और सानिया मिर्जा के इस साल कोर्ट से दूर होने की वजह से टेनिस में इस पूरे साल धमाकेदार खबरें सुनने के लिए कान तरसते रहे

Manoj Chaturvedi

भारतीय टेनिस की हम बात करें तो पिछले कुछ सालों में डबल्स में अपना डंका बजता रहा है. लेकिन लिएंडर पेस पर उम्र का प्रभाव पड़ने, रोहन बोपन्ना के चोटिल होने के कारण रंगत में नहीं होने से और सानिया मिर्जा के इस साल कोर्ट से दूर होने की वजह से टेनिस में इस पूरे साल धमाकेदार खबरें सुनने के लिए कान तरसते रहे. हां, इतना जरूर है कि बोपन्ना और दिविज शरण की जोड़ी ने जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर खुशी जरूर दिलाई. इसके अलावा भारतीय खिलाड़ियों ने कुछ सफलताएं हासिल कीं पर वो ऐसी कतई नहीं थीं कि जो उम्मीदों को जगा सकतीं. यही नहीं हम एक बार फिर डेविस कप विश्व ग्रुप में स्थान बनाने में असफल रहे.

बोपन्ना और दिविज की जोड़ी ने दिलाया गोल्ड


एशियाई खेल हों, ओलिंपिक या फिर डेविस कप जब भी यह मुकाबले आते हैं तो यह विवाद खड़ा हो जाता है कि डबल्स में किन दो खिलाड़ियों की जोड़ी बनेगी. लेकिन इस साल जकार्ता एशियाई खेलों में रोहन बोपन्ना और दिविज शरण की जोड़ी के पुरुष डबल्स का खिताब जीतने से लगता है कि यह विवाद अब खत्म हो गया है. इस भारतीय जोड़ी ने कजाक जोड़ी बुबलिक और येवसेयेव को सीधे गेमों में हराकर यह स्वर्ण पदक जीता. बोपन्ना इस साल काफी समय कोर्ट से बाहर रहे, इस कारण वह डबल्स रैंकिंग में 37वें स्थान तक पिछड़ गए हैं. वैसे भी खेल कोई भी हो, उसमें चमत्कार को नमस्कार कहा जाता है. इसलिए बोपन्ना के पिछड़ने के बाद उन्हें सर्किट में अच्छे विदेशी जोड़ीदार मिलना जरा मुश्किल हो गया था. लेकिन एशियाई खेलों की सफलता ने उन्हें दिविज शरण के रूप में एक अच्छा जोड़ीदार दिला दिया है. यह जोड़ी अब साल के पहले ग्रैंड स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपन में उतरकर पहला कड़ा इम्तिहान देगी.

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एक और रिकॉर्ड से जुड़े एजलेस वंडर पेस

हम यदि दुनिया के एजलेस वंडर वाले खिलाड़ियों की बात करें तो उसमें लिएंडर पेस का नाम जरूर शुमार होगा. लिएंडर पेस भले ही 45 साल के हो गए हैं और अपने सर्वश्रेष्ठ दिनों को पीछे भी छोड़ चुके हैं पर उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई है. वह जब देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हों तो उनका जज्बा देखते ही बनता है. यही वजह है उनके अंदर जीत की भूख आज भी बरकरार है. इस साल चीन पर उसके घर में 3-2 से जीत पाने के दौरान पेस ने डेविस कप के डबल्स मुकाबलों में 43 जीतों का रिकॉर्ड बना दिया. यह रिकॉर्ड करीब 36 साल पहले निकोला पीट्रांजेली ने 42 डबल्स जीतों का बनाया था. यह रिकॉर्ड जीत पेस ने बोपन्ना के साथ मिलकर हासिल की. यह रिकॉर्ड और भी आगे जा सकता था. लेकिन दोनों खिलाड़ियों में नहीं बनने की वजह से यह जोड़ी आगे नहीं चल सकी. दोनों ही खिलाड़ी एक-दूसरे के साथ खेलने को राजी नहीं हैं, इसलिए अखिल भारतीय टेनिस एसोसिएशन (एआईटीए) की चयन समिति को टीम चुनने तक में खासी मशक्कत करनी पड़ती है.

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भारत के पास एक और मौका

महेश भूपति के निर्देशन में भारत के डेविस कप विश्व ग्रुप प्लेऑफ में सर्बिया से हार जाने पर भी विश्व ग्रुप में स्थान बनाने का एक और मौका है. नोवाक जोकोविच के खेलने से इन्कार करने और क्रोजोविच के चोटिल हो जाने पर माना जा रहा था कि भारत संघर्ष करेगा पर मुकाबला एकतरफा रहा और भारत का विश्व ग्रुप में स्थान बनाने का सपना टूट गया. लेकिन डेविस कप में होने वाले सुधार कार्यक्रम की वजह से वह एशिया-ओसेनिया ग्रुप में जाने के बजाय एक मौका और पा गया है. साल 2019 से डेविस कप का नए फॉर्मेट से आयोजन होना है. इसके अंतर्गत फरवरी माह में 24 टीमों के क्वालिफाइंग मुकाबले का आयोजन किया जाएगा, जिसमें से 18 टीमों का चयन होगा. इन 18 टीमों के डेविस कप फाइनल्स का 18 से 24 नवंबर तक आयोजन होगा. यह आयोजन मैड्रिड या लिली में होगा.

अच्छे सिंगल्स खिलाड़ी की दरकार बरकरार

भारत के पास इस समय युकी भांबरी, रामकुमार रामनाथन और प्रजनेश के रूप में सिंगल्स खिलाड़ी हैं. यह तीनों ही समय-समय पर अच्छे प्रदर्शन करके थोड़ी-बहुत उम्मीद बंधाते रहे हैं. रामकुमार ने इस साल न्यूपोर्ट में हुए हॉल ऑफ फेम ओपन में फाइनल में स्थान बनाकर सभी को चौंका गए. वह सोमदेव देववर्मन के 2011 में एटीपी टूर्नामेंट के फाइनल में स्थान बनाने के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी हैं. वह फाइनल में अमेरिकी खिलाड़ी स्टीव जॉनसन से पार नहीं पा सके. वहीं युकी भांबरी इस साल अप्रैल में 83वीं रैंकिंग तक पहुंच गए थे. यही नहीं वह इस साल चारों ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंटों के मुख्य ड्रा में खेले पर किसी में भी पहले राउंड से आगे नहीं बढ़ सके. इसी तरह देश के इस समय सबसे ऊंची 104वीं रैंकिंग वाले प्रजनेश ने चार चैलेंजर टूर्नामेंटों के फाइनल में स्थान बनाकर दो में खिताब जीता. सही मायनों में यह तीनों ही खिलाड़ी टॉप 100 में स्थान बनाने की क्षमता रखते हैं. लेकिन हमारे खिलाड़ियों की दिक्कत फिटनेस है. इस फिटनेस की वजह से इन खिलाड़ियों को चोटों की समस्या का शिकार होना पड़ता है. अब आप युकी भांबरी को ही लें. वह 83वीं रैंकिंग तक पहुंचे फिर चोट का शिकार होकर बाहर बैठे और अब 137वीं रैंकिंग पर पहुंच गए हैं. विजय अमृतराज का कहना है कि भारत यदि दुनिया की एलीट टीमों में स्थान बनाना चाहता है तो उसे अच्छे सिंगल्स खिलाड़ी तैयार करने होंगे क्योंकि अकेले डबल्स खिलाड़ियों से काम नहीं चलने वाला है. अच्छे सिंगल्स खिलाड़ी निकालने के लिए उनकी फिटनेस पर खास ध्यान देना होगा. इस मामले में हमारे खिलाड़ी थोड़े पीछे तो हैं.

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सानिया का रहा परिवार पर ध्यान

सानिया मिर्जा देश की सफलतम महिला टेनिस खिलाड़ी हैं. उनके नाम छह ग्रैंड स्लैम खिताब दर्ज हैं और वह महिला डबल्स में विश्व की नंबर एक खिलाड़ी भी रह चुकी हैं. लेकिन इस साल उनके पास खेल के नाम पर कुछ भी उपलब्धि नहीं है. उन्होंने साल की शुरुआत में चोटिल होने की वजह से नहीं खेलने की बात कही. लेकिन अप्रैल माह में प्रेगनेंट होने की बात स्वीकार ली. उन्होंने इस साल अक्टूबर माह में बेटे को जन्म दिया. इससे उनके सेरेना विलियम्स की तरह फटाफट कोर्ट में लौटने की उम्मीद नहीं है.

देश को मिलीं दो युवा खिलाड़ी

करमन कौर थांडी

इस साल देश को अंकिता रैना और करमन थाडी कौर के रूप में दो युवा खिलाड़ी मिली हैं, जो कि आने वाले दिनों में देश का नाम रोशन कर सकती हैं. अंकिता ने तो एशियाई खेलों में कांस्य पदक यह जता दिया है कि आने वाले दिनों में सिंगल्स में उनका जलवा दिख सकता है. वहीं करमन ने भी अपने खेल से प्रभावित करना शुरू कर दिया है. उन्होंने इस साल 25000 डॉलर इनाम वाले तीन टूर्नामेंटों के फाइनल में स्थान बनाया और इनमें से दो में वह खिताब जीतने में सफल रहीं. यही नहीं अंकिता और करमन की जोड़ी ने ताइपे ओपन का महिला डबल्स खिताब भी जीता. इसलिए इन दोनों खिलाड़ियों से सानिया की कमी को पूरा करने की उम्मीद की जा सकती है.