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हम भारत के लोग... हिमा दास के गोल्ड मेडल में भी जाति खोजना चाहते हैं!

देश को एथलेटिक्स में पहली बार गोल्ड मेडल दिलाने वाली हिमा दास के जीतते ही गूगल पर उनकी जाति खोजने में जुट गए भारत के लोग

FP Staff

किसी भी देश की सांस्कृतिक विविधता की एकता की ताकत उसे कितना मजबूत बना देती है इसकी सबसे बड़ी मिसाल हाल ही में फीफा वर्ल्ड कप में फ्रांस की जीत के तौर पर देखने को मिली. तमाम अलग-अलग पृष्ठभूमि और नस्ल वाले खिलाड़ियों ने एकजुट होकर दुनिया को जीत लिया.

वहीं दूसरी ओर इस हफ्ते खेल की दुनिया से ही जुड़ी एक ऐसी घटना हुई जिसमें भारत के लोगों ने अपनी उस मानसिकता को जाहिर  किया जो किसी भी समाज को जन्म के आधार पर जाति में बांट देती है.


दरअसल यह मौका था एथेलिक्स में पहली बार वर्ल्ड लेवल पर भारत को गोल्ड मेडल दिलाने वाली एथलीट हिमा दास की उपलब्धि का. हिमा के इस अचीवमेंट और जीतने के बाद भारतीय तिरंगे को लेकर उनके जुनून को पीएम मोदी तक को भावुक कर दिया लेकिन इस देश मे बहुत लोग ऐसे थे जो उनके मेडल में जाति का एंगल खोजने के लिए इंटरनेट पर उनकी जाति सर्च करने लगे.

गूगल ट्रेंड के मुताबिक उस दिन भारत में हिमा दास की जाति को सबसे अधिक सर्च किया गया.

दरअसल गूगल एक स्वचालित सर्च इंजन है यानि अगर यहां सर्च ऑप्शन में जाकर किसी का नाम टाइप किया जाए तो हो स्वत: ही उस नाम से जुड़ी उस बात को शो कर देता है जिसे सबसे अधिक सर्च किया जा रहा हो.

गूगल पर हिमा दास टाइप करने के साथ ही जो पहला ऑप्शन गूगल की ओर से पेश होता था वह ‘ हिमा दास कास्ट’  था यानी हिमा दास के मेडल, उनकी उपलब्धि, उनके इवेंट या उनके प्रदर्शन से ज्यादा उनकी जाति की खोज की गई.

हिमा दास की जाति खोजने वालों की इंटरनेट पर जमकर आलोचना भी की जा रही है.

यह पहला मौका नहीं है जब भारत के लोगों ने ऐसी छोटी मानसिकता का परिचय दिया हो. दो साल पहले रियो ओलिंपिक में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाली शटलर पीवी सिंधु के मेडल जीतने के बाद भी गूगल पर उनकी जाति की खोज की गई थी.

कोई भी देश उतना ही मजबूत होता है जितनी उसके समाज की सोच. अगर भारतीय समाज ऐसी ही बीमार सोच के साथ जीता रहा तो फ्रांस जैसी उपलब्धि को हसिल करना हमेशा नामुमकिन ही रहेगा.