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अलविदा 2016: खेलों पर दो भाइयों का खौफ

श्रीनिवासन और रामचंद्रन के इर्द-गिर्द रही भारतीय खेलों की हलचल

Shailesh Chaturvedi

खेलों में 2016 किसका साल था? भारतीय क्रिकेट का या पीवी सिंधु का? या भारतीय जूनियर हॉकी टीम का, जिसने वर्ल्ड कप जीता? जी नहीं, सब गलत है. 2016 का साल फिर एक बार रहा दो भाइयों के नाम, जिन्होंने पूरे साल खेल की दुनिया में हलचल मचाकर रखी. दो ऐसे भाई, जिनके आपसी रिश्ते अच्छे नहीं माने जाते. लोगों को कहना है कि वे आपस में बात भी नहीं करते. आपस की कड़वाहट तो ठीक, लेकिन उनके होने से खेल जगत में एक तरह की कड़वाहट रही. एक का नाम एन. श्रीनिवासन और दूसरे का एन. रामचंद्रन.

ये साल भी क्यों रहा श्रीनिवासन के नाम


श्रीनिवासन के बारे में हम सब जानते हैं कि वो बीसीसीआई अध्यक्ष थे. उनके होते हुए आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के आरोप लगे. उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन को दोषी पाया गया. अदालत ने उनके बारे में तल्ख टिप्पणियां कीं. लेकिन ये सब तो पुरानी बातें हैं. फिर इस साल उनके बारे में बात क्यों?

उनके बारे में इस साल बात इसलिए हो रही है, क्योंकि अदालत में बीसीसीआई की सारी मुश्किलें उस मामले से ही शुरू हुई थीं. अगर दो जनवरी को अदालत ने बीसीसीआई के सभी पदाधिकारियों को हटाने का फैसला किया, तो उसकी जड़ एन. श्रीनिवासन ही होंगे.

जब बीसीसीआई में सभी लोग श्रीनिवासन के खिलाफ गोलबंद हो रहे थे, तो बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के आदित्य वर्मा के जरिए अदालत जाने का फैसला किया गया. खुद आदित्य वर्मा कहते रहे हैं कि केस में हर वो लोग उन्हें फोन करके सलाह और मदद देते थे, जो आज बीसीसीआई में टॉप पर बैठे हुए हैं. श्रीनिवासन खेमा यह आरोप लगातार रहा कि बीसीसीआई में उनके विरोधी वर्मा की हर तरह से मदद कर रहे हैं. लेकिन तब शायद विपक्षी खेमे ने भी नहीं सोचा होगा कि हालात कहां पहुंचेंगे.

कई दिग्गज झेल सकते हैं श्रीनिवासन के 'कर्मों की सजा'

स्पॉट फिक्सिंग मामले की जांच करते-करते सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा कमेटी बना दी. कमेटी से बीसीसीआई में सुधार के लिए सुझाव देने को कहा गया. लोढ़ा पैनल ने जो सुझाव दिए, उन्हें लागू करने का मतलब बीसीसीआई को जड़ से बदल देने जैसा था. जो लोग वर्मा के साथ थे, अब अलग हैं. लेकिन वो लोढ़ा पैनल के सुझावों से घबराए हुए हैं. अगर दो जनवरी को अदालत ने तुरंत सारे सुझाव लागू करने को कह दिया, तो संभव है कि अनुराग ठाकुर भी बीसीसीआई अध्यक्ष न रह पाएं. लोढ़ा कमेटी ने तो सबको हटाकर पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लै को बीसीसीआई में ऑब्जर्वर बना देने का सुझाव दिया है. सब परेशान घूम रहे हैं, इसकी जड़ में श्रीनिवासन ही हैं.

रामचंद्रन ने ओलिंपिक संघ में किए 'खेल'

उनके भाई हैं एन. रामचंद्रन. रामचंद्रन के रहते हुए इस बार भारत को ओलिंपिक में 12 साल बाद तीन से कम पदक मिले. 2008 में तीन और 2012 में छह पदक मिले थे. तब दावा था कि 2016 में 20 पदक आएंगे. बस, 20 से बाद का जीरो कम हो गया और दो पदक आए.

रामचंद्रन 2014 में आईओए अध्यक्ष बने थे. उनके बारे में भी यह सवाल उठता है कि आखिर 2016 में उनके नाम पर इतनी बात क्यों. ओलिंपिक में कम पदक के अलावा खुद को नेगेटिव तरीके से पेश किए जाने में उनका ही योगदान है. साल खत्म होते-होते रामचंद्रन ने अभय चौटाला और सुरेश कलमाडी को आजीवन अध्यक्ष बनाने की कोशिश की, जिसने विवाद छेड़ा. वैसे भी, पूरे साल कोई न कोई फेडरेशन रामचंद्रन के खिलाफ अभियान छेड़े रही.

अगले कुछ दिन भी रोचक होने वाले हैं. केनोइंग और कयाकिंग फेडरेशन के अध्यक्ष एन.रघुनाथन ने कहा है कि रामचंद्रन का कार्यकाल 31 दिसंबर को खत्म हो रहा है. हालांकि रामचंद्रन पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनका कार्यकाल 2018 फरवरी तक है. उन्होंने एक बयान में कहा था कि आईओसी और ओलिंपिक काउंसिल ऑफ एशिया यानी ओसीए से उन्होंने इस बात की पुष्टि कर ली है.

चेन्नई में मंगलवार को हुई एजीएम में सुरेश कलमाडी और अभय चौटाला का नाम यूं ही नहीं आया. ये बात साफ करना जरूरी है कि भारतीय ओलिंपिक संघ का संविधान आजीवन अध्यक्ष चुनने की इजाजत देता है. ऐसे में इसे गैर संवैधानिक नहीं माना जा सकता. सुरेश कलमाडी के नजदीकी लोगों का कहना है कि उनसे नहीं पूछा गया. हालांकि यह बात अभय चौटाला के करीबी लोग नहीं कह रहे.

अभय चौटाला और रामचंद्रन हमेशा से करीब रहे हैं. रामचंद्रन अगर अध्यक्ष बने हैं, तो इसमें बड़ी भूमिका चौटाला खेमे की ही थी. अब चौटाला वापसी करना चाहते हैं. साथ में ललित भनोट भी, जो कलमाडी के साथ कॉमनवेल्थ खेल घोटालों में फंसे थे. कलमाडी वापसी की इच्छा नहीं रखते और न ही आईओए के संविधान के मुताबिक वो वापसी कर सकते हैं.

क्या चौटाला को लाने की कोशिश रामचंद्रन ने की?

ऐसे में रामचंद्रन का निशाना अभय चौटाला थे. कलमाडी का नाम साथ में जोड़कर उनके खेमे को अपने साथ लाने की इच्छा थी. यह अलग बात है कि ऐसी आलोचना की उम्मीद रामचंद्रन को नहीं रही होगी. रामचंद्रन भले ही खिलाड़ी के तौर पर किसी स्तर तक नहीं पहुंच पाए हों, लेकिन प्रशासक के तौर पर उन्होंने जबरदस्त खेल खेले हैं. वो स्क्वॉश फेडरेशन, ट्रायथलॉन फेडरेशन, एशियन स्क्वॉश फेडरेशन से जुड़े रहे हैं. वर्ल्ड स्क्वॉश फेडरेशन के वो अध्यक्ष रहे हैं.

उन्होंने चेन्नई में जो किया है, उसका असर दूर तक जाएगा. अभी भले ही दबावों के बीच फैसले बदलने पड़े हों. लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं होता. यही बात श्रीनिवासन के लिए भी कही जा सकती है. उनके शुरू किए बवाल पर फैसला तो जनवरी के दूसरे दिन ही हो जाने की उम्मीद है. 2016 में इन दो भाइयों ने खेल की दुनिया को अपने फैसलों से नचाया. 2017 में भी खेल जारी रहेगा.