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सात दशक में खेलों में सात सबसे बड़ी जीत और उपलब्धियां

हॉकी में सालों दुनिया पर राज करने के बाद पिछले दो तीन दशक में कई और खेलों में भी भारत ने जीत के परचम लहराए है

Neeraj Jha

भारत ने आजादी के 70 साल पूरे किए.  आज देश हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है और भारत की गिनती अब दुनिया के गिने चुने देशों में की जा रही है.  किसी भी देश की उन्नति का पैमाना सिर्फ उसके आर्थिक विकास गति से नहीं लगाया जाता है. खेल और कला संस्कृति में तरक्की भी किसी भी मुल्क के विकास का सूचक है. ओलंपिक्स के मैडल टैली को देखकर आप इस बात का अंदाजा जरूर लगा सकते है.

भारत ने भी पिछले 70 सालों में खेल के क्षेत्र में काफी तरक्की की है. आजादी के पहले और आजादी के बाद भी जिस एक खेल में हमने महारत हासिल की थी वो थी हॉकी. हॉकी में भारत के नाम सबसे ज्यादा आठ ओलिंपिक गोल्ड मेडल है. क्रिकेट की दुनिया में भी हमने कई सफलताएं हासिल की है, दो वर्ल्ड कप और एक वर्ल्ड टी 20 पर कब्जा.  ऐसा नहीं है की हमने सिर्फ क्रिकेट और हॉकी में ही झंडे गाड़े है, पिछले दो तीन दशक में कई और खेलों में भी भारत ने जीत के परचम लहराए है.


हम एक नजर डालते है पिछले सात दशक की सात ऐसे पल की जिसको भुलाया नहीं जा सकता है.

1. 1947 में मिली आजादी के तुरंत बाद ही भारतीय हॉकी टीम ने लंदन ओलिंपिक में गोल्ड जीतकर देश को सबसे बड़ा उपहार दिया. आजादी के पहले भी हॉकी में भारत का जलवा था. 1928, 1932 और 1936 में भी भारत ने स्वर्ण पदक जीते थे. लेकिन 1948 में मिली ये जीत इतनी आसान नहीं थी. देश का बटवारा हो चुका था और कुछ बेहतरीन खिलाडी पाकिस्तान के पाले में पहले ही चले गए थे. इसके अलावा अंग्रजों के जाने के बाद खेल के बुनयादी ढांचे चरमराई हुई थी. इसके बाबजूद भारत ने जीत हासिल की जो काबिले-तारीफ थी.

2. 1952 में हेलसिंकी ओलिंपिक में एक ऐसा कारनामा हुआ जो कई सालों तक लोगों के जुबान पर चर्चे का विषय रहा. टीम गेम हॉकी में तो हम परचम लहरा रहे थे लेकिन व्यक्तिगत खेलों में हम बहुत पीछे है. भारतीय पहलवान खशाबा दादासाहेब जाधव (केडी जाधव) ने फ़्री स्टाइल कुश्ती में भारत को कांस्य पदक दिलाया. उस साल भारत को दो पदक मिले थे, पहला हॉकी में स्वर्ण और दूसरा कुश्ती में कांस्य.  स्वतंत्र भारत में व्यक्तिगत तौर पर ओलिंपिक में पदक जीतने वाले वो पहले खिलाड़ी बने. उसके बाद कई दशक तक भारत व्यक्तिगत मेडल के लिए तरसता रहा.  दुःख की बात ये रही की जाधव अकेले ऐसे खिलाडी रहे जिन्हे ओलिंपिक मेडल मिलने के बाबजूद भी उन्हें पदम् पुरस्कार नहीं मिला.  1984 में उनकी मृत्यु के बाद साल 2000 में उन्हें मरणोपरांत अर्जुन अवार्ड दिया गया

3. ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप - 1980

आज बैडमिंटन में भारत का दबदबा पूरी दुनिया में है लेकिन दुनिया के नक्शे पर पर बैडमिंटन में भारत को लाने का श्रेय जाता है प्रकाश पादुकोण को. 1980 में ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय बने. फाइनल में उन्होंने इंडोनेशियाई प्रतिद्वंद्वी लिएम स्वी राजा को हराया था.  इस खिताब को वर्ल्ड चैंपियनशिप के बराबर का दर्जा मिला हुआ है. इसके अलावा उसी साल उन्होंने डेनिश ओपन एवं स्वीडिश ओपन का खिताब भी जीता. प्रकाश पादुकोण ने ही सबसे पहले यह दिखाया था कि चीनियों का मुकाबला कैसे किया जा सकता है.

4. 1983 वर्ल्ड कप

कपिल देव की कप्तानी में भारतीय टीम ने उस समय पूरी दुनिया को चौका दिया, जब फाइनल में उन्होंने दो बार की चैंपियन टीम वेस्ट इंडीज को लॉर्ड्स के  मैदान पर 43 रनों से मात दी.  किसी को भी ऐसे रिजल्ट की उम्मीद नहीं थी. लेकिन पूरी टीम की मेहनत और लगन की बदौलत मिली इस जीत ने भारत में क्रिकेट को देखने का नजरिया ही बदल दिया.  क्रिकेट में भारत को जो आज दबदबा है उसकी नींव कहीं न कहीं इसी जीत से पड़ी थी. इस जीत ने ना सिर्फ देश में क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ाने में मदद की, बल्कि इसने क्रिकेट को देश का सबसे बड़ा खेल भी बना दिया. इसके बाद भारत ने कई टूर्नामेंट और चैंपियनशिप पर भी कब्ज़ा किया. 2007 में पहली वर्ल्ड टी 20 पर धोनी की कप्तानी में जीत हासिल की वही 4 साल बाद फिर से धोनी की कप्तानी में भारत ने 28 साल बाद वर्ल्ड कप अपने नाम किया.

5. खेलों में भारतीय महिलाओं का प्रवेश काफी लेट से हुआ लेकिन उन्होंने भी भारतीय तिरंगे की आन, बान और शान को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ओलिंपिक में मेडल जीतने की वाली पहली भारतीय महिला बनी कर्णम मल्लेश्वरी. साल 2000 में आयोजित सिडनी ओलिंपिक में कर्णम ने 69 किलो वर्ग में कांस्य पदक जीता. उसके बाद से अब तक चार और महिलाओं ने ओलिंपिक में भारत को मेडल दिलाया है, मैरी कॉम, साइना नेहवाल, पीवी सिंधु और साक्षी मालिक.

6.कई सालों से टेनिस में भारत को जीत दिलाने वाले लिएंडर पेस को हम इस लिस्ट से कैसे बाहर रख सकते है. मेरे हिसाब से उनकी सबसे बड़ी जीत थी, 1996 अटलांटा ओलिंपिक में जहां उन्होंने गोल्ड मेडल जीतने वाले आंद्रे आगासी से हारने के बाद फर्नांडो मेलिगेनी को हराकर कांस्य पदक जीता. केडी जाधव के बाद व्यक्तिगत मेडल जीतने वाले वो दूसरे ऐसे खिलाडी बने. पेस हार मानने वाले खिलाडियों में से नहीं है. करीब तीन दशक से भारत को कई जीत दिलाते रहे है. रॉड लेवर के बाद वो पहले ऐसे खिलाडी है जिन्होंने तीन अलग अलग दशक में विबलंडन के तीन खिताब जीते.

7. और आखिर में एक ऐसा खिलाडी जिसने देश को व्यक्तिगत वर्ग में पहला स्वर्ण पदक दिलाया. किसी ने सोचा भी नहीं था कि 2008 बीजिंग ओलिंपिक में ये कारनामा हो जाएगा. अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग इवेंट जीतकर भारत का परचम पूरी दुनिया में लहड़ा दिया. इससे पहले राज्यवर्धन सिंह राठौर ने शूटिंग में रजत पदक जीता था.

ये लिस्ट यही खत्म नहीं होती.. कई ऐसे भी खिलाडी है जो भले ही इस लिस्ट में नहीं है लेकिन जिनकी जीत की कहानियों को भुलाया नहीं जा सकता है. ऐसे ही एक नाम है विश्वनाथन आनंद.  2007 में वो चेस में वर्ल्ड चैंपियन बने, एक ऐसा खेल जिसमे सालों से रूसी खिलाडियों का एकक्षत्र राज था.  2007 से लेकर 2013 तक वो चेस के बादशाह बने रहे और इस बीच उन्होंने तीन बार अपने इस टाइटल का बचाव भी किया.

एक और नाम है पंकज आडवाणी, जिन्होंने बिलियर्ड्स और स्नूकर दोनों ही खेलों में भारत को ऊंचाई तक पहुंचने का काम किया है.  पकंज मात्र 19 वर्ष की आयु में तीन विश्व खिताब जीतकर इतिहास रच डाला.  उन्होंने बिलियर्ड्स और  स्नूकर दोनों खेलों में तीन विश्व खिताब जीते हैं.  उनके पूर्व गीत सेठी ही विश्व स्तर की सफलता इस खेल में प्राप्त कर चुके हैं.

हमें फक्र है अपने इन खिलाडियों पर जिन्होंने दुनिया भर में  देश की शोहरत को बढ़ाने में कई योगदान दिए है. सलाम करते है इन खिलाडियों को और उम्मीद  रखते है की भविष्य में भी ये ऐसे ही देश का नाम रोशन करते रहेंगे.

नीरज झा

(लेखक करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में सक्रिय हैं और फिलहाल टेन स्पोर्ट्स से जुड़े हुए हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में फर्स्टपोस्ट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)