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पेस को आक्रामक और घमंडी होने का अधिकार है

लिएंडर पेस एक खिलाड़ी के तौर पर उन्होंने जो हासिल किया है़, वह काबिलेतारीफ है

Bikram Vohra

लिएंडर पेस वन मैन आर्मी हैं. वे आक्रामक हैं, अव्यवहारकुशल हैं और घमंडी हैं. लेकिन अगर मैंने 18 ग्रैंड स्लैम पुरस्कार जीते होते तो शायद मेरी जुबान में भी थोड़ा अहंकार आ जाएगा. लेकिन यह सब तो व्यक्तित्व का मामला है.

इन सब बातों का उनके बेहतरीन टेनिस खेलने से क्या लेना-देना है. या जो उनका देश कोर्ट पर उनके प्रदर्शन के लिए घमंड करता है. अगर किसी को उनके व्यक्तिगत स्वभाव से परेशानी है तो वह उन्हें दावत पर न आमंत्रित करे.


पेस के इस रूखे स्वभाव के पीछे भी एक इतिहास है. लिएंडर पेस जब बच्चे थे उस समय पूरी दुनिया में सिर्फ उनके पिता ही थे जिनको उनकी प्रतिभा पर भरोसा था. लेकिन उनके पास पैसे की तंगी थी. मुझे अच्छे से याद है कि एक बार एनआरआई लोगों से फंड जुटाने की कोशिश हुई जिससे पेस को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजा जा सके. लेकिन वह प्रयास व्यर्थ गया.

मदद के लिए कोई आगे नहीं आया 

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मुझे याद नहीं कि उसकी मदद के लिए कोई आगे आया था. हालांकि बाद में लिएंडर को शायद किसी ने मदद की थी लेकिन मोटे तौर पर शुरुआती दिनों में उनका कोई मार्गदर्शक नहीं था. और न ही उसे कोई उत्साह हमारी तरफ से मिला क्योंकि उस समय वो कोई सेलीब्रेटी नहीं था.

मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं पेस के परिवार को बेइज्जती आज भी याद है. पेस के रूखे व्यवहार की एक वजह ये भी हो सकती है. उनका मजबूत विश्वास है कि वे किसी के ऋणी नहीं हैं. इसलिए ये आपकी समस्या है कि आपको उनका कुछ कहा हुआ पसंद नहीं आ रहा है. वे किसी भी तरह वह बात कहेंगे ही.

अगर मार्टिना नवार्तिलोवा और मार्टिना हिंगिस उन्हें एक खुशमिजाज व्यक्ति मानती हैं तो संभव है उनके व्यक्तित्व का ऐसा भी हिस्सा है जो छिपा हुआ है. इसका कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें अपने देश में अक्सर ठेस पहुंचती है.

टेनिस लॉबी में खुद को अकेला पाते हैं 

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कई मौकों पर आपको लगेगा कि लिएंडर खुद को भारतीय टेनिस लॉबी में अकेला पाते हैं. जबकि दूसरे खिलाड़ी गुट में होते हैं. इसी वजह से वे अक्सर आक्रामक नजर आते हैं. इससे यह निष्कर्ष आसानी से निकाला जा सकता है कि लोग आपसे और आपकी सफलता से जलते हैं. अब अगर आप अपनी सफलता को तलवार के तौर पर इस्तेमाल करे तो प्रतिद्वंद्वियों को आसानी से रास्ते से हटा सकते हैं. तो पेस ने आक्रामकता को कवच के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया.

संभव है पेस के व्यवहार तल्खी इसलिए भी बढ़ रही हो क्योंकि अब उनका  चमकता हुआ करियर ढलान पर है. इसके अतिरिक्त पेस की अंतरराष्ट्रीय सफलता दूसरे खिलाड़ियों से इतनी बड़ी है कि भारतीय टेनिस के मैनेजमेंट से दूर कर दिया है.

मुझे नहीं लगता कि उनसे कभी अपने अनुभव साझा करने की बात भी हुई है. मिसाल के तौर पर रिटायरमेंट के बाद विजय अमृतराज के करियर को देखिए. यह बेहद शानदार और सम्मानजनक था. दरअसल उन्होंने मैदान के बाहर भी उतनी ही मेहनत की जितनी की मैदान के भीतर. जबकि लिएंडर पीआर के मामले में बिल्कुल फिसड्डी हैं. आप पेस की जितनी चाहें आलोचना कर लें लेकिन वह टेनिस के लिए कोई बेहतर विकल्प सुझाते हैं तो यह अधिकार उनके पास है.

उनके बयान पर ध्यान दीजिए. उन्होंने कहा कि भारत ने ओलंपिक के लिए सबसे अच्छा विकल्प नहीं चुना. अब सोचिए कि अगर आपके पास पेस जैसा रिकॉर्ड हो और सभी बड़े पुरस्कार आपके पास हों तो सानिया मिर्जा जैसा साथी खिलाड़ी न मिलने पर झल्लाहट नहीं होगी? उनका तर्क था कि सबसे अच्छी टीम को खेलने नहीं भेजा गया. लेकिन यह बात सलीके से नहीं कही गई.