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जानिए कबड्डी कैसे पहुंची अर्जेंटीना!

टीम के कोच एकूना ने बताया कि हमारे देश में फुटबॉल को लेकर एक पागलपन है.

FP Staff

खेल के मैदान पर अर्जेंटीना सफेद और नीली धारियां न छोड़ने योग्य होती हैं. इन्होंने फुटबॉल, रग्बी और हॉकी में अपनी छाप छोड़ दी है. और अब अपना ध्यान कबड्डी की तरफ लगा दिया है. यह पुरातन भारतीय खेल 1999 में अर्जेंटीना पहुंचा. इस खेल में देश की प्रगति देखिए कि 2016 के कबड्डी विश्व कप में अर्जेंटीना ने शिरकत भी की.

टीम के कोच रिकॉर्डो एकूना कहते हैं कि ‘अर्जेंटीना में ज्यादातर खेल टीमों के उपनाम जानवरों के नाम पर हैं. रग्बी की टीम को लॉस पूमाज, हॉकी टीम को लॉयन और हमें यरारा के नाम से पुकारा जाता है. यरारा सांप की एक प्रजाति है जो देश के उत्तरी हिस्से में पाई जाती है. यह अविश्वसनीय रूप से तेज होता है. इसका हमला वैसा ही होता है जैसे हम कबड्डी में विपक्षी खेमे के खिलाड़ी को छूकर भागते हैं.’


कोच का योगदान 

एकूना उन लोगों में हैं जो इस खेल को अर्जेंटीना पहुंचाया. ऐसा उन्होंने भारतीय टीम का कनाडा के वैंकुवर में खेल देखने के बाद किया था. देश में वैकल्पिक खेलों के आयोग का अध्यक्ष होने के नाते एकुना के पास वह जरूरी स्रोत भी मौजूद थे जिससे देश में खेल की नींव डाली जा सके.

वे बताते हैं ‘  यह एक ऐसा खेल था जिसमें किसी सामान की आवश्यकता नहीं थी और मैं लोगों के खेल के नियम पांच मिनट में समझ सकता था. हमारे आयोग के पास, 80 वैकल्पिक खेल थे. बीते पांच सालों से लगातार कबड्डी का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण खेल के तौर पर हुआ है.’

देश में खेल को फैलाने की कोशिश समझदारी के साथ की गई. इसके लिए सबसे पहले शारीरिक शिक्षकों को चुना गया. इन लोगों ने न सिर्फ वर्तमान टीम बनाने में मदद की बल्कि इसे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में भी फैलाने में मदद की.

कोच ने किया अपने प्रभाव का इस्तेमाल

एकुना रग्बी के प्रोफेशनल खिलाड़ी रह चुके हैं. उन्होंने अपने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कबड्डी के रग्बी के ट्रेनिंग सेशन का हिस्सा बनवाया. विश्व कप में अर्जेंटीना की टीम के खिलाड़ी कई दूसरे खेलों से आए थे. 36 वर्षीय कप्तान सेबास्चीयन डेसोसियो ताइक्वांडो और जूडो के खिलाड़ी रह चुके हैं. जबकि दूसरे खिलाड़ी रग्बी, कुश्ती, फुटबॉल जैसे खेलों से थे.

कप्तान डेसोसियो ने बताया था ‘मैंने यह खेल 2013 में खेलना शुरू किया.’ उस दौरान उन्होंने विश्वकप में हिस्सा लेने के लिए छुट्टी ली हुई थी. वे कहते हैं ‘मुझे यह खेल एकदम से पसंद आ गया था. क्योंकि इस खेल में कई खेलों का मिश्रण था. इसमें आपको रुकना दौड़ना, पकड़ना और फेंकना पड़ता है.’ हालांकि वे एक डिफेंडर हैं लेकिन वे कहते हैं कि उन्हें अटैक करने में भी कोई परेशानी नहीं है.

अगर दूसरे खेलों में अर्जेंटीना का रिकॉर्ड देखा जाए तो 2014 में ब्राजील में हुए फुटबॉल विश्वकप फाइनल तक पहुंचा था. जबकि पुरुषों की हॉकी टीम ने रियो ओलंपिक 2016 में सोना जीता था. हालांकि कबड्डी विश्वकप में टीम से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं थी. लेकिन इस तरह के मजबूत खेल का देश होने की वजह से यह तय था कि वहां के खिलाड़ी शारीरिक रूप से फिट होंगे.

सभी खेलते हैं फुटबॉल

कोच एकुना ने बताया था कि हमारे देश की जनसंख्या 4 करोड़ है. और वहां महिला हो या पुरुष फुटबॉल तो अनिवार्य रूप से खेलता है. हमारे देश में फुटबॉल को लेकर एक पागलपन है. यहां सभी लिओनेल मेसी बनना चाहते हैं. वे पूरे दिन फुटबॉल के ही बारे में सोचते हैं. इसका फायदा यह होता है कि अर्जेंटीनियाई लोगों का फुटवर्क कमाल का होता है.

लैटिन अमेरिका के ज्यादातर एथलीट के पैर मजबूत होता है. उनके पास कबड्डी खेलने लायक पर्याप्त खूबियां होती हैं. लेकिन यह भी सच है कि अभी तक उन्होंने ये खेल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेला था. इस वजह से वे पुरानी टीमों के मुकाबले कुशल नहीं है.

अर्जेंटीना में वर्तमान में छह क्लब हैं जो कबड्डी को प्रमोट कर रहे हैं. अप्रैल में कबड्डी विश्व कप से कंफर्मेशन मिलने के बाद इन क्लबों ने ही खिलाड़ियों को तैयार किया. 14 सितंबर को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता भी रखी गई थी जिससे एक बढ़िया टीम का चयन किया जा सके जो विश्व कप में देश का अच्छा प्रतिनिधित्व कर सकें.

एकुना ने आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा ‘हम कुछ टीमों को चौंका भी सकते हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि विशेष रूप से वे इंग्लैंड को पराजित करने की कोशिश करेंगे. वे मजाकिया ‘यह एक खेल भावना वाली दुश्मनी है जो हैंड ऑफ गॉड के समय से चली आ रही है.’ उनका इशारा डियागो मराडोना के उस गोल की तरफ था जो उन्होंने 1986 के फुटबॉल विश्वकप में इंग्लैंड के खिलाफ किया था. इस गोल को हैंड ऑफ गॉड के नाम से जाना जाता है.