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संडे स्पेशल : क्या भारत और चीन कभी फुटबॉल में महाशक्ति बन पाएंगे

फुटबॉल में भारत और चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहीं नहीं हैं, चीन की हालत भारत से काफी बेहतर है

Rajendra Dhodapkar

फुटबॉल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल है, लेकिन दुनिया के दो सबसे बड़े देश, भारत और चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कहीं नहीं हैं. चीन की हालत भारत से काफी बेहतर है. लेकिन चीन ने फुटबॉल पर बहुत पैसा और साधन भी खर्च किए हैं. यह कहा जा सकता है कि चीन ने फुटबॉल में अपनी जगह बनाने के लिए जितना खर्च किया, उतना उसे फ़ायदा नहीं मिला.

चीन के राष्ट्रपति शी जीनपिंग का इरादा यह है कि चीन को सन 2050 तक विश्व फुटबॉल की महाशक्ति बना देना है. इसके लिए उन्होंने कई हज़ार करोड़ डॉलर की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है. यह योजना कितनी कामयाब होती है, यह देखने के लिए 2050 तक नहीं, तो भी कुछ साल इंतज़ार तो करना ही होगा.


फुटबॉल के लिए भारत के पास ना योजना ना पैसा

भारत के पास न ऐसी कोई योजना है, न ही भारत के पास ख़र्च करने के लिए इतना पैसा है. भारत में फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ रही है. लेकिन ऐसा नहीं लगता कि भारत फुटबॉल में अगले कुछ दशक तक तो दुनिया में कोई मुकाम बना पाएगा. भारत में धीरे-धीरे खेलों की स्थिति सुधर रही है और कई खेलों में भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन भी बेहतर होता जा रहा है. लेकिन इन तमाम खेलों में ऐसा नहीं है कि कोई योजनाबद्ध नज़रिया रहा हो. क्रिकेट में बेहतर होने के अलग कारण हैं, बैडमिंटन में अलग कारण हैं, निशानेबाज़ी, तीरंदाज़ी, मुक्केबाज़ी, शतरंज सबकी कामयाबी की अलग कहानी है और एक हद के आगे कामयाब न हो पाने की भी वजहें अलग-अलग हैं. इसलिए यह उम्मीद करना बेकार है कि भारत चीन की तरह फुटबॉल में कामयाब होने के लिए योजना बनाकर काम करेगा.

भारतीय फुटबॉल टीम

ज़ाहिर है चीन के कामयाब होने के आसार भारत के मुक़ाबले ज्यादा हैं. लेकिन फिर भी चीन की कामयाबी को पक्का नहीं कहा जा सकता. न ही यह कहा जा सकता है कि भारत हमेशा फिसड्डी ही रहेगा. प्रतिष्ठित पत्रिका ‘द इकॉनॉमिस्ट’ ने फुटबॉल को लेकर कुछ दिलचस्प लेख छापे हैं. उसके एक लेख का निष्कर्ष बहुत दिलचस्प है.

उसका कहना है कि फुटबॉल बुनियादी तौर पर रचनात्मकता और खुलेपन का खेल है, इसलिए बहुत ज्यादा बंदिशों वाली शासन व्यवस्था में बेहतर फुटबॉल नहीं हो सकता. आप किसी सरकारी योजना के तहत खिलाड़ियों से मेहनत करवा कर अच्छी फुटबॉल टीम नहीं बना सकते. एथलेटिक्स में जैसे पुरानी कम्युनिस्ट सरकारों ने खिलाड़ियों को एक योजनाबद्ध तरीक़े से तैयार करके कामयाबी दिलाई, वैसा फुटबॉल में मुमकिन नहीं है.

मिसाल के तौर पर उस दौर में पश्चिम जर्मनी की टीम फुटबॉल में बड़ी ज़ोरदार थी, लेकिन पूर्वी जर्मनी की टीम तमाम कोशिशों के बावजूद बेहतर टीम नहीं बन पाई. चीन की भी समस्या यह है कि वहां के तंत्र में वह खुलापन नहीं है जो फुटबॉल में कामयाबी के लिए ज़रूरी है.

जर्मनी की फुटबॉल टीम

फुटबॉल के साथ एक दिलचस्प बात यह है कि यह खेल गलियों और सड़कों में पला-बढ़ा और आज भी उसमें वह सहजता का तत्व मौजूद है. आधुनिक खेलों में फुटबॉल सबसे सस्ता खेल है, जिसमें सिर्फ़ एक गेंद और ढेर सारे कौशल की जरूरत होती है. इसलिए फुटबॉल में उन देशों की भी मौजूदगी बहुत प्रभावशाली है जो बहुत अमीर नहीं हैं.

छोटे देश और गलियों से निकली हैं प्रतिभा

अफ्रीका के सेनेगल और कैमरून जैसे देश अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में अच्छा प्रदर्शन करते हैं. लातिन अमेरिका के तमाम नामी फुटबॉल सितारों, पेले से लेकर तो रोनाल्डिन्यो तक ने गलियों और सड़कों में खेलते हुए अपने कौशल को निखारा. बल्कि यह पाया गया कि जो हुनर और रचनाशीलता गलियों - सड़कों में खेलते हुए निखरती है वैसी अकादमियों की कोचिंग से नहीं निखरती. चूंकि समृद्ध देशों और समाज के अपेक्षाकृत समृद्ध इलाक़ों में सड़कों पर खेलने का चलन नहीं है. इसलिए वहां के खिलाड़ी कम हुनरमंद होते हैं. इंग्लैंड और पश्चिम जर्मनी में इसलिए खिलाड़ियों के लिए ऐसी परिस्थितियां तैयार की गईं जहां खिलाड़ी सड़क के हुनर सीखें और इससे उनके खेल पर अच्छा असर पड़ा.

पेले

इसलिए ऐसा नहीं कह सकते कि चीन वाले बहुत जोर-शोर से कोशिश कर रहे हैं इसलिए कामयाब हो जाएंगे और हम कामयाब नहीं होंगे, क्योंकि अराजकता हमारे तंत्र का हिस्सा है. भारत और चीन दोनों को जो बात पीछे खींचती है, वह यूं है कि दोनों ही देशों में फुटबॉल लोकप्रियता के पहले पायदान पर नहीं है. अगर हम फुटबॉल में कामयाब देशों को देखें तो लगभग सभी में एक बात है कि वहां फुटबॉल लोकप्रियता के लिहाज़ से नंबर एक खेल है.

ब्राज़ील, अर्जेंटीना और युरुग्वे जैसे लातिन अमेरिकी देशों में तो वह राष्ट्रीय संस्कृति और पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है. जब हर गली और सड़क पर, हर छोटे बड़े मैदान पर फुटबॉल खेली जाती है, तभी ऐसे खिलाड़ी निकलते हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की टीम को ले जा सकें. जैसे आजकल देश के छोटे बड़े शहरों, क़स्बों और गांवों तक से आला क्रिकेट खिलाड़ी निकल रहे हैं, जब वैसा फुटबॉल के साथ होगा, तभी हम फुटबॉल में कुछ कर पाएंगे. अगर ऐसा नहीं है तो भी कोई बात नहीं, जो फुटबॉल हमारे देश में या दुनिया में हो रही है उसका आनंद लेने से हमें कौन रोकता है?