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FIFA World Cup 2018 : एशियाई टीमों को दिखाना होगा कि वो भी दुनिया की ताकतवर टीमों की बराबरी कर सकती हैं

इस बार फीफा विश्व कप में हिस्सा लेने वाली पांच एशियाई टीमों साउथ कोरिया, ईरान, जापान, सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया को दिखाना होगा दम

Sachin Shankar

पोलैंड पर ग्रुप मुकाबले में साउथ कोरिया की जीत के बाद देश भक्ति का ज्वार उमड़ आया. पूरे कोरिया में नारा गूंज रहा था, कोरियाई टीम लड़ रही है. कोरियाइयों ने मैदान पर अपनी चुस्ती-फुर्ती और आकांक्षा को अपने खेल प्रदर्शन में मूर्त करने की प्रबल इच्छा शक्ति के सहारे दिखा दिया कि एशिया भी यूरोप ही नहीं बल्कि दुनिया की ताकतवर टीमों की बराबरी कर सकता है. लेकिन ये 2002 की बात है जब साउथ कोरिया अपनी मेजबानी में खेल रहा था. तब उसने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था. जबकि ईरान, जापान, सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य एशियाई देश चीन, इंडोनेशिया, इराक, कुवैत, इजरायल, कतर, उत्तर कोरिया और संयुक्त अरब अमीरात में से कोई भी टीम क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाई. ऐसे में इस बार फीफा विश्व कप में हिस्सा लेने वाली पांच टीमों साउथ कोरिया, ईरान, जापान, सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया की बात की जाए, तो ग्रुप स्तर पर खेले जाने वाले मैच इनके लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होंगे.

जापान की मौजूदा फॉर्म चिंता का सबब


एशियाई फुटबॉल की पावरहाउस जापानी टीम 14 जून से रूस में शुरू हो रहे फीफा विश्व कप में मुश्किल स्थिति में रहकर उतरेगी. जापान ने हाल ही में टीम के मुख्य कोच वाहिद हालिलहोदिक को बर्खास्त कर अकिरा निशिनो की टीम की जिम्मेदारी सौंपी है. जापान की दिक्कत सिर्फ नए कोच के साथ इतने बड़े टूर्नामेंट की तैयारी करना ही नहीं, बल्कि उसकी मौजूदा फॉर्म भी है जिसमें निरंतरता की कमी देखी गई है. ब्लू समुराई नाम से लोकप्रिय जापान टीम लगातार छठी बार विश्व कप में उतर रही है, लेकिन वो सिर्फ एक बार ही अंतिम-16 में जगह बना पाई है.

टीम की जिम्मेदारी काफी हद तक इजि कावाशिमा, केइयुस्के होंडा, युटो नागाटोमो, शिंजी ओकाजाकी और कप्तान माकोटो हासेबे के जिम्मे रहेगी. यह विश्व कप इन सभी का तीसरा विश्व कप होगा. जापान को ग्रुप-एच में कोलंबिया, सेनेगल और पोलैंड के साथ रखा गया है. उसके लिए यह ग्रुप मुश्किल है. जापान का अगले दौर में जाना भी मुश्किल लग रहा है. हालांकि जापान उलटफेर करने में सक्षम है.

2002 का प्रदर्शन दोहराना चाहेगा कोरिया

फीफा रैंकिंग में 61वें नंबर पर मौजूद कोरियाई टीम ने 1954 में पहली बार विश्व कप में हिस्सा लिया था, लेकिन इसके बाद 32 साल तक इस टूर्नामेंट से दूर रहने के बाद उसने 1986 में विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया जहां वह 20वें नंबर पर रहा. अपनी मेजबानी में वर्ष 2002 में हुए फीफा विश्व कप में सेमीफाइनल तक पहुंचने वाली साउथ कोरियाई टीम कप्तान की सुंग युइंग के नेतृत्व में 14 जून से रूस में होने जा रहे फीफा विश्व कप में एक बार फिर अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराकर टूर्नामेंट में उलटफेर करना चाहेगी.

कोरिया ने क्वालीफीकेशन के दो मैच बाकी रहते हुए अपने कोच यूली स्टीइलाइक को बर्खास्त कर दिया था, जिसकी काफी आलोचना हुई थी. हालांकि टीम ने अपने नए कोच शिन तेई योंग के मार्गदर्शन में प्रदर्शन में काफी सुधार किया है. टीम के पास स्टार स्ट्राइकर सोन हीयुंग मिन के रूप में शानदार खिलाड़ी मौजूद है. 25 साल के हीयुंग ने टोटेनहम हॉटस्पर के लिए खेलते हुए इस सीजन में 18 गोल किए थे और टीम को उनसे ऐसे ही प्रदर्शन की उम्मीद होगी. इसके अलावा की सुंग युइंग ने होंडुरास के खिलाफ दोस्ताना मैच में अपने 100 अंतरराष्ट्रीय मैच पूरे किए हैं. कोरियाई टीम चाहेगी कि विश्व कप में युइंग के अनुभव का फायदा उठाया जा सके. कप्तान सोंग हियोंग का यह तीसरा विश्व कप होगा, जिसे वह अपने शानदार प्रदर्शन से यादगार बनाना चाहेंगे.

अतीत को भुलाकर नई शुरुआत करना चाहेगा ईरान

एशिया की सबसे मजबूत टीम मानी जाने वाली ईरान को क्वालीफाई करने में ज्यादा परेशानी तो नहीं हुई थी, लेकिन उसके लिए असल चुनौती यह है कि वह अपने पांचवें विश्व कप में इस सफलता को बनाए रखे. यह किसी भी तरह से उसके लिए आसान नहीं होगा. 18 क्वालीफाइंग मैचों में उसने सिर्फ पांच गोल खाए. ब्राजील के बाद ईरान रूस के लिए टिकट कटाने वाली दूसरी टीम बनी. चुनौती उसके लिए अपने मौजूदा प्रदर्शन को जारी रखना और विश्व कप के निराशाजनक इतिहास से आगे निकलने की है.

ईरान ने 1978, 1998, 2006 और 2014 फीफा विश्व कप के लिए क्वालीफाई किया था, लेकिन किसी भी टूर्नामेंट में वह ग्रुप दौर से आगे नहीं जा पाई थी. उसे विश्व कप में इकलौती जीत 1998 में अमेरिका के खिलाफ मिली थी.

ईरान इस बार अतीत को भुलाकर नई शुरुआत करना चाहेगी जिसमें यह टीम एक तरह से सक्षम भी है.

सऊदी अरब को खलेगी अनुभव की कमी

सऊदी अरब की टीम पिछले एक साल में तीन कोच बदल चुकी है और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नए कोच जुआन एंटोनियो पिज्जी के मार्गदर्शन में टूर्नामेंट में टीम कहां तक पहुंच पाती है. विश्व रैंकिंग में 67वें नंबर पर काबिज कप्तान ओसामा हवसावी के नेतृत्व वाली सऊदी अरब 2006 के बाद पहली बार फीफा विश्व कप में भाग ले रही है. सऊदी अरब ने फीफा विश्व कप में पहली बार 1994 में हिस्सा लिया था. जहां वह अंतिम-16 तक पहुंची थी. इसके बाद वह 1998, 2002 और 2006 में ग्रुप चरण से आगे नहीं बढ़ पाई. जबकि 2010 और 2014 में वह विश्व कप के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई.

सऊदी अरब के पास याहया अल शेहरी और स्ट्राइकर मोहम्मद अल सहलावी के रूप में ऐसे खिलाड़ी मौजूद हैं जो किसी भी टीम को टक्कर दे सकते हैं. अल सहलावी क्वालीफाइंग में संयुक्त रूप से शीर्ष स्कोरर रहे थे. इसके अलावा सलीम अल दवसारी और फहद अल मुवलाद से भी टीम को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद होगी. अनुभव की कमी टीम की सबसे बड़ी कमजोरी है. सऊदी अरब 12 साल बाद टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहा है और उसके पास ऐसे खिलाड़ी नहीं हैं जिनके पास विश्व कप में खेलने का अनुभव हो.

ऑस्ट्रेलिया के नए कोच पर बड़ी जिम्मेदारी

फीफा विश्व कप के पिछले 20 संस्करणों में से केवल पांच में हिस्सा लेने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम इस बार अपने नए कोच बर्ट वान मारविक के साथ नॉकआउट की बाधा पार करने का लक्ष्य रखकर मैदान पर उतरेगी. 1930 से लेकर 1962 तक ऑस्ट्रेलिया ने विश्व कप में हिस्सा नहीं लिया था जबकि 1966 और 1970 में वह क्वालीफाई करने में असफल रहा.

ऑस्ट्रेलिया की टीम 1974 में ग्रुप स्तर तक ही सीमित रही. इसके बाद, 1978 से लेकर 2002 तक उसकी किस्मत खराब रही और वह फिर क्वालीफाई करने में असफल रही. हालांकि, 2006 में उसने अंतिम-16 दौर में प्रवेश हासिल किया, लेकिन एक बार फिर 2010 और 2014 में ग्रुप स्तर को पार नहीं कर सकी. कोच मारविक के मार्गदर्शन में नीदरलैंड्स ने 2010 के फाइनल तक का सफर तय किया था.

ऑस्ट्रेलिया के कप्तान मिले जेडिनाक एस्टन विला क्लब के लिए खेलते हैं.

इस सीजन में अपने-अपने क्लबों के लिए मिडफील्डर एरॉन मूये और गोलकीपर मैट रेयान ने अहम भूमिका निभाई है. इसके अलावा, टॉम रोजिक का भी सीजन शानदार रहा है. विश्व रैंकिंग में 40वें स्थान पर काबिज ऑस्ट्रेलिया ग्रुप-सी में डेनमार्क, फ्रांस, और पेरू जैसी टीमों के साथ शामिल है. इस बार उसे क्वार्टर फाइनल में पहुंचने की उम्मीद है.