हूगो लोरिस की अगुआई में फ्रांस की टीम रूस के लुजनिकी स्टेडियम पर गोल्डन कलर वाले फीफा विश्व कप के साथ जिस तरह से खुश लग रही थी, वह देखने के काबिल था. इस खुशी की वजह उनका फीफा विश्व कप दूसरी बार जीतने का सपना साकार हो जाना था. इस तरह फ्रांस एक से ज्यादा बार फीफा विश्व कप को जीतने वाली दुनिया की छठी टीम बन गई. पर इसके लिए उन्हें पूरे 20 साल इंतजार करना पड़ा. उन्होंने रूस के लुजनिकी स्टेडियम में पहली बार फाइनल में पहुंची क्रोएशिया को 4-2 से हराकर खिताब पर कब्जा जमाया. खेल की जिस तरह से शुरुआत हुई, उससे क्रोएशिया का पलड़ा भारी लग रहा था. मारियो मांदुकिच के आत्मघाती गोल से पिछड़ने के बाद जब क्रोएशिया ने 10 मिनट के अंदर इवान पेरिसिच के गोल से बराबरी कर ली तो लगा कि वह पिछले तीन मैचों की तरह मैच में अपनी किस्मत बदलने में सफल हो जाएगी.
लेकिन फ्रांस भी मजबूत इरादे से उतरी थी और उसने 27 मिनट में ग्रीजमैन, पॉल पोग्बा और किलियन एमबापे के गोलों से 4-1 की बढ़त बनाकर मैच को क्रोएशिया से दूर कर दिया. हालांकि आत्मघाती गोल जमाने वाले मांदुकिच फ्रांस के गोलकीपर की गलती का फायदा उठाकर एक गोल उतारने में सफल हो गए पर वह फ्रांस को चैंपियन बनने से नहीं रोक सके. वहीं बेल्जियम ने इंग्लैंड को हराकर तीसरा स्थान प्राप्त किया.
लुका मोड्रिच को गोल्डन बॉल से सांत्वना
क्रोएशिया के फाइनल तक के सफर में अहम भूमिका कप्तान लुका मोड्रिच की रही. वह अपनी टीम को चैंपियन तो नहीं बना सके पर चैंपियनशिप के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को दी जाने वाली गोल्डन बॉल पाकर थोड़े संतुष्ट जरूर हुए होंगे. दुनिया को फ्रांस के 19 वर्षीय खिलाड़ी किलियन एम्बाप्पे के रूप में नया सुपरस्टार मिल गया है.
वह महान फुटबॉलर पेले की तरह अपने पहले विश्व कप के फाइनल में गोल जमाने वाले फुटबॉलर बन गए हैं और उन्हें सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी चुना गया है. उन्होंने कुल चार गोल जमाए, जिसमें से दो गोल अर्जेंटीना पर जीत के दौरान जमाए थे. इंग्लैंड के हैरी केन ने सर्वधिक छह गोल जमाकर गोल्डन बूट अवॉर्ड जीता. पिछले कई विश्व कप से यह परंपरा चली आ रही है कि फाइनल खेलने वाली टीमों में से गोल्डन बूट पाने वाला खिलाड़ी नहीं निकलता है, यह परंपरा इस बार भी बनी रही.
डिडियर डेसचैंम्पस को दोहरी सफलता
डेसचैंम्पस की टीम फ्रांस चैंपियन बनी है और यह सफलता उनके लिए यादगार लम्हा होना लाजिमी है. लेकिन वह फ्रांस के 1998 में चैंपियन बनने के समय कप्तान थे. इसलिए खिलाड़ी और कोच दोनों तरह से चैंपियन बनने वाले दुनिया के तीसरे खिलाड़ी बन गए हैं. इससे पहले मारियो जगालो और फ्रेंज बेकनबाउर भी खिलाड़ी और कोच के तौर पर फीफा विश्व कप जीतने वाले रहे हैं.
चैंपियन जर्मनी की ग्रुप चरण में ही चुनौती टूटी
जर्मनी ने 2014 में अर्जेंटीना को हराकर ही खिताब जीता था. वैसे भी उसे हमेशा ही खिताब का दावेदार माना जाता है. लेकिन रूस में जर्मनी की शुरुआत मेक्सिको के हाथों 1-0 की हार से हुई. लेकिन जर्मनी ने स्वीडन को 2-1 से हराकर नॉकआउट चरण में स्थान बनाने की उम्मीदों को बनाए रखा. जर्मनी को आखिरी ग्रुप मैच दक्षिण कोरिया से खेलना था, इसलिए सभी को लग रहा था कि वह इस मैच को जीतकर प्रीक्वार्टर फाइनल में स्थान बना लेगी.
उम्मीदों के विपरीत दक्षिण कोरिया ने शानदार प्रदर्शन करके जर्मनी को 2-0 से फतह करके उनकी चुनौती को ग्रुप चरण में ही ध्वस्त कर दिया. खिताब जीतने की दो अन्य दावेदार टीमों अर्जेंटीना और ब्राजील ने भी खराब शुरुआत की पर वह प्रीक्वार्टर फाइनल में स्थान बनाने में सफल रहीं. नॉकआउट चरण में स्थान बनाने वाली अन्य टीमें फ्रांस, उरुग्वे, पुर्तगाल, स्पेन, रूस, क्रोएशिया, डेनमार्क, मेक्सिको, बेल्जिम, जापान, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, कोलंबिया और इंग्लैंड रहीं।
दमदार एशियाई प्रदर्शन की अगुआ जापान
एशियाई टीमों ने इस बार दिखाया कि अब वह भी जीतना सीख गई हैं. सच यही है कि अब एशियाई टीमों का खेल स्तर यूरोपीय टीमों के बराबर पहुंचने लगा है. यह सही है कि एशियाई टीमों में सिर्फ जापान ही प्रीक्वार्टर फाइनल में पहुंच सकी. वह भी भाग्य का सहारा मिलने से पहुंची. असल में ग्रुप एच में जापान और सेनेगल के बराबर 4-4 अंक थे. लेकिन जापान के खिलाफ येलो कार्ड कम दिए जाने के आधार पर उसे ग्रुप की दूसरी टीम मानकर प्रीक्वार्टर फाइनल में प्रवेश दे दिया गया. ईरान ग्रुप में स्पेन और पुर्तगाल जैसी दो मजबूत टीमें होने की वजह से वह भले ही नॉकआउट चरण में स्थान नहीं बना सकी. पर उसने पहले मोरक्को को हराकर और फिर पुर्तगाल से 1-1 से ड्रा खेलकर प्रभावित किया.
इसी तरह सऊदी अरब ने भी मिस्र को 2-1 से हराया. दक्षिण कोरिया ने तो जर्मनी को फतह करके उनकी राह ही बंद कर दी. यहां तक जापान की बात करें तो वह सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली टीम रही. वह यदि प्रीक्वार्टर फाइनल में विश्व की नंबर तीन टीम बेल्जियम के खिलाफ मैच में थोड़ी सी गलती से बड़ा अपसेट करने का मौका गंवा दिया. वह 2-0 की बढ़त के बावजूद जीत नहीं पा सकी. पर वह सभी का दिल जीतने में जरूर सफल हो गई. बेल्जियम इस तरह जीत पाने वाली विश्व कप के 48 सालों में पहली टीम बन गई.
दक्षिण अमेरिकी टीमों ने किया निराश
विश्व कप की शुरुआत से पहले दक्षिण अमेरिकी टीमों-खासतौर से ब्राजील, अर्जेंटीना और उरुग्वे को खिताब जीतने का दावेदार माना जा रहा था. लेकिन 2002 में ब्राजील के चैंपियन बनने के बाद यह चौथा विश्व कप होगा, जिसमें यूरोपीय टीम चैंपियन बनी है. इन टीमों को दावेदार मानने की वजह इनमें लियोनेल मेसी, नेमार जूनियर, सुआरेज और कवानी जैसे सुपरस्टारों का शामिल होना थी. लेकिन इनमें से कोई भी टीम अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी और क्वार्टर फाइनल तक सभी की चुनौती ध्वस्त हो चुकी थी. इनमें पिछले विश्व कप में फाइनल तक चुनौती पेश करने वाली अर्जेंटीना की तो प्रीक्वार्टर फाइनल में ही फ्रांस के हाथों 4-3 से चुनौती टूट गई.
ब्राजील और उरुग्वे की टीमें क्वार्टर फाइनल में पहुंचीं पर यहां उन्हें क्रमश: बेल्जियम और फ्रांस के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इन टीमों की दिक्कत यह रही कि व्यक्तिगत कौशल दिखाकर समय-समय पर वह वाह-वाही तो लूटती रहीं. लेकिन विजेता बनने के लिए जरूरी तालमेल की साफ कमी नजर आई. सही में विपक्षी यूरोपीय टीमों के जवाबी हमलों का इनके पास कोई जवाब नहीं था. इसके अलावा इन टीमों ने विंगर्स और स्ट्राइकरों के तालमेल से ही हमले बनाए और इसमें मिडफील्डरों का पूरा योगदान नहीं रहा, इसलिए डिफेंस इन हमलों को नाकाम करने में सफल रहा.
युवाओं वाली टीमें रहीं कामयाब
इस बार विश्व कप में यह भी देखने को मिला कि युवा खिलाड़ियों वाली टीमें ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहीं. सेमीफाइनल में पहुंची फ्रांस, इंग्लैंड, बेल्जियम और क्रोएशिया चारों टीमों की औसत आयु 28 साल से कम है. इंग्लैंड की औसत आयु 25.5 साल और फ्रांस की टीम की औसत आयु 25.2 साल, बेल्जियम की औसत आयु 27.6 साल और क्रोएशिया की औसत आयु 27.9 साल थी.
इस विश्व कप में भाग लेने वाली सबसे उम्रदराज टीम अर्जेंटीना की थी और उसकी औसत आयु 30.3 साल थी. इसी तरह पनामा और कोस्टा रिका के खिलाड़ी भी ज्यादा उम्र वाले होने की वजह से उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सके. ब्राजील, उरुग्वे, पुर्तगाल और स्पेन की टीमें भी 28 साल से ज्यादा की औसत आयु वाली होने की वजह से युवा टीमों के सामने ठहर नहीं सकीं.