फुटबॉल जैसे खेल में कई बार खिलाड़ी मौका पाकर पेनल्टी कॉर्नर या विपक्षी टीम के खिलाड़ी को मैदान से बाहर भेजने की कोशिश करते रहते हैं. यहीं नहीं कुछ एक बार तो अहम मौके पर एक गलत गोल भी पूरा मैच ही बदल देता है, लेकिन फीफा वर्ल्ड कप में खेल को साफ सुथरा, सही सटीक निर्णय
और खिलाड़ियों की ऐसी चाल को नाकाम करने के इरादे से उंगलियों का खेल भी मैदान पर उतारा जाएगा. यानी इस टूर्नामेंट में वीडिया सहायक रेफरी प्रणाली (वीएआर) भी अपना पदार्पण करेगी, जो विवादास्पद रही थी. वीएआर में रेफरी अपनी उंगुलियों से स्क्रीन का संकेत बनाकर वीडियो रेफरी से सलाह ले सकते हैं.
फीफा टूर्नामेंट में पहले हो चुका है प्रयोग
हालांकि इसका प्रयोग पहले फीफा टूर्नामेंट में हो चुका है. इसका लाइव ट्रायल अगस्त 2016 में यूनाइटेड सॉकर लीग के एक मैच से शुरू किया गया. इस मैच में मैच रेफरी इस्माइल इल्फथ ने दो फाउल पर रिव्यू लिया था और वीडियो सहायक रेफरी एलेन कैंपमैन से परामर्श के बाद एक को रेड कार्ड और एक को यलो कार्ड देने का फैसला किया गया. इसके अगले महीने वीडियो रिव्यू का प्रयोग फ्रांस और इटली के बीच खेले गए अंतरराष्ट्रीय मैच में भी किया गया था. इसके बाद वीएआर विभिन्न फीफा टूर्नामेंटों, इटली के सिरी ए और जर्मनी की बुंदेसलीगा में प्रयोग किया गया, जिससे अधिकांश देश सैद्धांतिक रूप से वीएआर से वाकिफ हैं.
चार स्थितियों में किया जा सकता है इसका प्रयोग
वीएआर का इस्तेमाल चार स्थितियों में किया जा सकता है, गोल होने के बाद, पेनल्टी से जुड़े फैसलों पर, रेड कार्ड से जुड़े फैसलों पर या फिर कार्ड दिखाए जाने के दौरान खिलाड़ी की गलत पहचान के मामले में. फ्लोरेंस के समीप कोवसियानो में इतालवी राष्ट्रीय ट्रेनिंग केंद्र में वीएआर ट्रेनिंग कार्यक्रम के दौरान फीफा रेफरी समिति के अध्यक्ष पीयरलुइगी कोलिना ने कहा कि इसका उद्देश्य बड़ी और सामान्य गलतियों से बचना है, इसका लक्ष्य कभी प्रत्येक छोटी घटना को देखना नहीं है. रूस में 13 रेफरी सिर्फ ‘कंट्रोल स्क्रीन’ को देखने का काम करेंगे और पिच पर अधिकारी की भूमिका निभाने के लिए चुने गए लगभग 35 रेफरी में से प्रत्येक को एक या इससे अधिक मैच में वीडियो रेफरी की भूमिका निभानी होगी.
जिदान ने उठाए थे सवाल
2016 में जापान में हुए फीफा क्लब विश्व कप फाइनल में पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्लब प्रतियोगिता में इसका इस्तेमाल किया गया था. रियाल मैड्रिड के मैनेजर जिनेदिन जिदान ने इसे भ्रम का स्त्रोत कहा था.