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फीफा अंडर -17 वर्ल्ड कप : भारत के लिए एक मील का पत्थर

छह अक्टूबर से शुरू होगा फीफा अंडर-17 वर्ल्डकप, भारत में अब तक का सबसे बड़ा फुटबॉल आयोजन

Neeraj Jha

फीफा अंडर -17 वर्ल्ड कप शुरू होने में अब कुछ ही दिन बचे है. भारत में फुटबॉल का इतना बड़ा इवेंट पहली बार हो रहा है - खासकर भारतीय उपमहाद्वीप में इस तरह का हाई प्रोफाइल इवेंट देखने का फुटबॉल प्रेमियों के लिए शायद ये पहला ही मौका होगा.

लंबा इंतजार आखिरकार खत्म हुआ - पिछले 87 सालों में अभी तक कुल 77 वर्ल्ड कप हुए है - सारे एज ग्रुप, पुरुष और महिला इवेंट मिलाकर - लेकिन भारत को ना कभी भाग लेने का मौका मिला और ना ही मेजबानी का. लेकिन फीफा एग्जीक्यूटिव कमेटी  ने 2013 में इस इवेंट के लिए भारत को मेजबानी का भार देकर सबको चौका दिया.


मेनचेस्टर यूनाइटेड के लेजेंड रयान गिग्ग्स के शब्दों में ये भारत के लिए एक बेहतरीन मौका है - एक आयोजक के तौर पर और एक टीम के रूप में भी. उन्होंने कहा की उन्हें पता है क्रिकेट यहाँ का नंबर एक खेल है लेकिन इस इवेंट के होने से ना सिर्फ भारतीय फुटबॉल खिलाडियों को फायदा मिलेगा बल्कि इससे खेल की लोकप्रियता भी काफी बढ़ेगी.

कई दिग्गज टीम भारत पहुंच भी चुकी है. कुल 24 टीम इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेंगी और  मेजबानी भारत को मिलने से टीम को अपने आप ही आखिरी 24 में जगह मिल गयी. 6 अक्टूबर से खेले जानेवाली इस इवेंट में कुल 6 ग्रुप है. भारत के साथ  'ए ' ग्रुप में है अमेरिका, घाना और कोलंबिया की टीमें है. भारत के लिए इन टीमों से भिड़ने का ये पहला मौका होगा. 6 शहरों - दिल्ली, कोच्चि,गुवाहाटी, कोलकाता और नवी मुंबई में खेले जानेवाली इस वर्ल्ड कप में हर ग्रुप में  4 -4 टीमें होंगे.

फीफा अंडर -17 विश्व कप का शुभंकर  'खेलियो' है. ये एक चित्तीदार तेंदुआ है - जो मुख्य रुप से हिमालय क्षेत्रों और दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है. फीफा ने इस टूर्नामेंट के लिए स्लोगन रखा है - फुटबॉल टेक्स ओवर.

इतिहास के पन्नों से

भारत की नेशनल फुटबाल टीम भले ही आज फीफा रैंकिंग्स में 107 वें पायदान पर है लेकिन अगर इतिहास के पन्नों में झांके तो हम 50 के दशक में एक बेहतर टीम हुआ करते थे.

आपको विश्वास नहीं होगा की 1950 के फीफा वर्ल्ड कप में भारत की टीम ने क्वालीफाई भी कर लिया था लेकिन एआईएफएफ ने ब्राज़ील में होने वाले इस टूर्नामेंट से टीम का नाम वापस ले लिया. वजह कई थे -आल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) का उस समय कहना था की उनके पास टीम को भेजने के लिए पैसे नहीं थे और टीम ने कोई खास प्रैक्टिस भी नहीं किया है.

हालांकि जानकारों का मानना था की भारतीय खिलाड़ियों को खाली पैर खेलने की आदत थी और वर्ल्ड कप में इसकी अनुमति नहीं थी. फिर भी 1951 से लेकर 1964 तक का समय भारतीय फुटबाल के लिए स्वर्णिम दौर था.

खैर हम 171 रैंक टीम भी रहे हैं और 1996 में  तो 94वे पायदान को भी छू लिया था.  सच्चाई ये है की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रदर्शन सामान्य से भी नीचे रहा है. लेकिन ये भी सही है की  इस खेल ने समय के साथ युवा वर्ग में अपनी पकड़ बनायीं है. ईपीएल या फिर चैंपियंस लीग की टीवी रेटिंग्स इसे साबित भी करती है.

अंडर -17 वर्ल्ड कप का इतिहास

अंडर -17 वर्ल्ड कप पहली बार 1985 में खेला गया, हालांकि उस समय इसका नाम अंडर- 16 हुआ करता था. फीफा ने 1991 में इसकी उम्र सीमा एक साल बढा दिया और तब से ये इसी नाम से जाना जाता रहा है. ये वर्ल्ड कप दो साल में एक बार खेली जाती है . भारत में इस साल खेली जा रही ये 17वीं वर्ल्ड कप है. इस बार की खास बात ये है की डिफेंडिंग चैंपियन नाइजीरिया इस टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई ही नहीं कर पायी.

हैं तैयार हम!

भारत के लिए इस स्तर का टूर्नामेंट कराना ना सिर्फ एक चुनौती है बल्कि एक मौका भी है दुनिया को ये दिखाने का की हम किसी भी मामले में कहीं कम नहीं है. कॉमनवेल्थ की तैयारियों को लेकर जिस तरह के सवाल उठाये गए थे उससे कहीं ना कहीं भारत - एक स्पोर्टिंग नेशन-  को धक्का जरूर पंहुचा था, लेकिन इस बार की तैयारियां समय से पहले ही पूरी कर ली गयी है. आल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन, फीफा और भारत सरकार ने मिलकर इस बार आलोचकों के लिए शिकायत का कोई मौका नहीं छोड़ा है. इस तैयारी से एआईएफएफ के हौसले इतने बुलंद हो गए है की वो अब 2019 अंडर -20 वर्ल्ड कप की मेजबानी  की दावेदारी भी पेश कर दी है.

इस पूरी तैयारी से आख़िरकार फायदा खिलाडियों को ही होने वाली है. 6 शहरों में होने वाली इस वर्ल्ड कप के लिए 17 नए ट्रेनिंग सेंटर्स बनाये गए है. फुटबॉल के मैदान को भी अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप दिया गया है. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से घास की एक ख़ास किस्म - बरमूडा घास - आयात किया गया है. स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ने दावा किया है की पांच शहरों में करीब 120 करोड़ रुपये का उपयोग सिर्फ बुनयादी ढांचे को सुधारने में किया गया है.

भारतीय टीम से हैं उम्मीदें

अंडर - 17 में भारतीय टीम से कई उम्मीदें होंगी लेकिन उनके लिए राह इतना आसान नहीं होगा. ब्राज़ील, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, पैराग्वे, जापान, घाना और कोरिया सरीखे टीमों के सामने हमारे लिए अगले राउंड में भी क्वालीफाई करना  बहुत मुश्किल होगा. ये कहना गलत नहीं होगा की भारतीय टीम इस टूर्नामेंट में कमज़ोर टीमों की श्रेणी में सबसे ऊपर है.

हॉलांकि टीम ने इस वर्ल्ड कप की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ी है. टीम को बनाने में एआईएफएफ के साथ साथ कोच लुईस नॉर्टन डि मटोस का बहुत बड़ा हाथ है. डि मटोस को इसी साल मार्च में अंडर-17 टीम का मुख्य कोच नियुक्त किया गया था और उन्होंने थोड़े ही समय में ऐसी टीम तैयार की है जिससे लोगों की उमीदें काफी बढ़ गयी है.  बेनफिका के पूर्व कोच रह चुके मटोस ने जहाँ एक नयी टीम को बनाया है वही उन्होंने साफ़ तौर पर बता भी दिया है की खिलाडियों को दवाब लेने की कोई जरूरत नहीं है और वो खुलकर खेल सकते है क्यूंकि दवाब लेने के लिए वो खुद मौजूद होंगे.

21 सदस्यों वाली इस टीम में आठ खिलाडी मणिपुर से है. इस टीम में दो एनआरआई खिलाडी - नामित देशपांडे और सनी धालीवाल को भी मटोस ने मौका दिया है. मेक्सिको में हुए चार देशों की टूर्नामेंट में भारत का प्रदर्शन बुरा नहीं था. चिली के खिलाफ तो उन्होंने 1 -1  का ड्रा भी खेला.

आगे की राह

भारत में इस वर्ल्ड कप के होने से फूटबॉल खिलाडियों के लिए एक नया दरवाज़ा खुल गया है. अभी तक हम में से ज्यादातर लोग बाइचुंग भूटीया और सुनील छेत्री जैसे खिलाडियों को ही जानते थे. लेकिन अब हमारे कई युवा खिलाडियों को दुनिया के दिग्गज खिलाडियों से भिड़ने का मौका मिलेगा और कई युवा प्रतिभा देश के सामने उभर कर भी आएंगे. आपको बता दू की अंडर -17 ने दुनिया को लुइस फिगो, फ्रांसेस्को टोटी, रोनाल्डिन्हो, नेयमार, टोनी क्रूस, सेस्क फैब्रिगेस जैसे खिलाडी दिए है.

वैसे फीफा ने भी अपने फुटबॉल वर्ल्ड कप प्रणाली में बड़ा बदलाव किया है. इस बदलाव के बाद भारतीय टीम का फुटबॉल विश्व कप में खेलना काफी हद तक मुमकिन हो सकता है. हालांकि यह बदलाव 2026 के विश्व कप से लागू होंगे. फीफा काउंसिल के इस फैसले के बाद 2026 में फीफा वर्ल्ड कप में 32 की जगह 48 देश हिस्सा लेंगे.