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फीफा अंडर-17 विश्व कप : फुटबॉल की लहर पूरे देश में

भारतीय टीम ने अपने जुझारू प्रदर्शन से दुनिया का जीता दिल

Neeraj Jha

भारत की अंडर-17 फुटबॉल टीम भले ही विश्व कप से बाहर हो गयी हो, लेकिन अपने जुझारू प्रदर्शन से कहीं ना कहीं दर्शकों का दिल जरूर जीत लिया इस टीम ने. को ने इतने कम समय में जो काम किया उसकी खुले दिल से तारीफ होनी चाहिए. उन्होंने ऐसी रणनीति बनाई की सामने वाली टीम के लिए गोल कर पाना इतना आसान नहीं रहा.  यही वजह रही कि टीम भारत ने तीन मैच में सिर्फ नौ गोल खाए- और यही हमारी सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है.

घाना, कोलंबिया और अमेरिका जैसी बेहतरीन टीमों के सामने जिस तरह से हमारी टीम ने डटकर मुक़ाबला किया और सामने वाली टीम के सामने जितने अड़ंगे खड़े किए उसकी सराहना होनी चाहिए. ये भविष्य के लिए बेहतरीन संकेत है. हार के बावजूद कोच माटोस भी अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन से संतुष्ट दिखे. इस प्रदर्शन से भारतीय टीम ने फीफा के कोचिंग और प्लेयर्स डेवलपमेंट के प्रमुख ब्रानीमीर उजेविच को भी प्रभावित किया है. उजेविच ने टीम को अपनी गलतियों से सीख लेने और भविष्य पर ध्यान लगाने की सलाह दी.


नार्थ ईस्ट के खिलाड़ियों ने संभाली कमान

नार्थ ईस्ट के लोगों का जो इस खेल के प्रति प्यार जग जाहिर है. देश के कुछ बेहतरीन खिलाड़ी वहां से आए है. बाइचुंग भूटिया ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है. सिर्फ मणिपुर से ही इस टीम में आठ खिलाड़ी थे. जैक्सन सिंह, जिन्होंने इस टूर्नामेंट में भारत की तरफ से वर्ल्ड कप में कोलंबिया के खिलाफ पहला गोल किया. जैक्सन के पिता नहीं चाहते थे की वो फुटबॉल खिलाड़ी बनें, आम भारतीय परिवार के तरह ही पढाई लिखाई पर काफी जोर था. लेकिन जैक्सन के इस खेल के प्रति लगाव ने आज उन्हें इस मुकाम तक पहुंचा दिया है.

टीम के स्टार गोलकीपर धीरज सिंह ने दर्शकों के दिल में एक अलग जगह बना ली है. विश्व कप में उनके प्रदर्शन ने सबको प्रभावित किया है. उनको भूटिया और सुनील छेत्री की तरह ही भारत के नए सुपरस्टार की तरह ही देखा जा रहा है. उनकी कहानी भी काफी दिलचस्प है. धीरज को शुरुआत से ही भीड़ के  सामने आना पसंद नहीं था. जब वह सिर्फ 9 साल के थे, उन्होंने स्कूल के फुटबॉल ग्राउंड में आने से मना कर दिया था. क्योंकि वहां बहुत सारे लोग मौजूद थे. यहां तक की उन्होंने इसी वजह से फुटबॉल छोड़कर बैडमिंटन को अपना लिया था.

ये अलग बात है की फुटबॉल के प्रति जो धीरज का प्यार था, उसकी वजह से उन्हें मैदान में वापस आना ही पड़ा. फीफा अंडर -17  के दौरान मैदान पर वह एक बेहतरीन खिलाड़ी नजर आए और उन्हीं की वजह से इतने बड़े-बड़े प्रोफेशनल खिलाड़ियों से भरी विपक्षी टीमें सिर्फ 9 गोल ही कर पाईं. पूरे टूर्नामेंट में उनके नाम की गूंज हर जगह सुनाई पड़ी. कोलंबिया के खिलाफ मैच के बाद तो दिल्ली के सभी फुटबॉल प्रेमियों ने तो खड़े होकर उनका उत्साह पूर्ण स्वागत किया.

धीरज सिंह की ही तरह अनवर अली, अमरजीत सिंह कियाम और जैक्सन सिंह ने भी अपने प्रदर्शन से सबको प्रभावित किया है. यहां तक की टूर्नामेंट में आई बड़ी-बड़ी टीमों और क्लब के एजेंट्स की नजर इन खिलाड़ियों पर रही. और ऐसी संभावना है की हम इन युवा खिलाड़ियों को जल्द ही किसी बड़े क्लब से खेलते देख सकेंगे और यही हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी.

प्रशंसकों ने बांधा समां

अंडर -17 विश्व कप ने एक बात तो गलत साबित कर दी है की भारत के लोग सिर्फ क्रिकेट को अपना धर्म मानते हैं. इन दिनों पूरा भारत फुटबॉल के नशे में है. फीफा अंडर-17 विश्व कप में भारतीय दर्शक काफी दिलचस्पी ले रहे हैं. हालांकि भारतीय टीम नॉक आउट स्टेज में जगह बना पाने में सफल नहीं रही, लेकिन इसके बावजूद दर्शकों का उत्साह कायम रहा.

भारत ने अपने सभी मैच दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में खेले. इन सभी मैचों में करीब औसतन 50  हजार दर्शक पहुंचे. वहीं बाकी मैचों में दर्शकों का औसत करीब 25 हजार रहा. यह औसत 2015 में चिली में हुए पिछले विश्व कप से दोगुने से भी ज्यादा है. दर्शकों ने जिस तरह से इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, इसकी उम्मीद इतनी नहीं थी और जिस तरह से लोग इस खेल से पिछले दो हफ्तों से जुड़े है उससे ये हो सकता है की अब भारत में हो रहा यह टूर्नामेंट फीफा अंडर-17 विश्व कप इतिहास में मैदान में सबसे ज्यादा दर्शकों द्वारा देखा गया टूर्नामेंट बन जाए.

स्थानीय आयोजक समिति के जेवियर सेपी ने कहा कि भारत पर फुटबॉल का खुमार छा गया है और इस विश्व कप ने जिस तरह का रोमांच पैदा किया है वह अपने आप में अनोखा है. उजेविच ने कहा, ‘‘‘मैं भारतीय दर्शकों को इसका श्रेय दूंगा, कुछ मैचों में तो स्टेडियम देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे कि मैं सांटियागो, ओल्ट ट्रैफर्ड में आ गए हूँ."

भारत, चीन और मेक्सिको के बाद अंडर-17 फीफा विश्व कप के इतिहास में 10 लाख की दर्शक संख्या पार करने वाला तीसरा देश बन गया है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि भारत 1985 में खेले गए पहले फीफा अंडर-17 विश्व कप में चीन में बने 12,30,976 दर्शकों के मौजूदा रेकॉर्ड को भी तोड़ सकता है.

उम्मीद की किरण

इस विश्व कप में भले ही हमें जीत नसीब नहीं हुई हो, लेकिन इसमें खिलाड़ियों और खेल को चलाने वाले खेल संगठनों के लिए सीखने को बहुत कुछ था. जरूरत है इस मुल्क में एक फुटबॉल क्रांति की. घाना जैसे छोटे देश, जहां मूलभूत संरचना की बहुत कमी है इसके बावजूद इस खेल में कई सालों से बेहतर प्रदर्शन करते आ रहे है.

इसे मानने में हमें कोई शर्म नहीं आनी चाहिए की हमारे देश ने कभी भी इस खेल पर फोकस ही नहीं किया. हम ये उम्मीद नहीं कर सकते की हमारी टीम अचानक ही विश्व कप में जीतना शुरू कर दे. जरूरत है इस खेल को जमीनी स्तर पर सुधारने की. मटोस के मुताबिक खिलाड़ियों की पहचान 5 -6 साल की उम्र से ही की जानी चाहिए.

लेकिन इस टूर्नामेंट ने हमें एक उम्मीद दी है की हमारे खिलाड़ी भी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के सामने बिना भय के खेल सकते है. ये विश्व कप तो बस एक शुरुआत है और अगर हम ये कहें की ये कहना गलत नहीं होगा की ये सिर्फ हमारा पहला प्रयास रहा अंतररष्ट्रीय फुटबॉल की दुनिया में कदम रखने का. अब इसके आगे सरकार और ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन इस खेल को बढ़ाने के लिए क्या प्रयास करती है, उस पर सबकी नजर रहेगी. हमें भी इंतज़ार रहेगा.

(लेखक करीब दो दशक से खेल पत्रकारिता में सक्रिय हैं और फिलहाल टेन स्पोर्ट्स से जुड़े हुए हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में फर्स्टपोस्ट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)