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आयोजन पर अरबों का खर्च पर हम कब सीखेंगे अपने महान खिलाड़ियों का सम्मान करना!

सम्मानित होने से पहले देर रात तक डमी ड्रिल में हिस्सा लेना पड़ा व्हीलचेयर पर चलने वाले पीके बनर्जी को

Jasvinder Sidhu

पीके बनर्जी के लिए फीफा अंडर-17 विश्व कप में भारत के मैच से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों सम्मानित होने का न्योता देश के लिए किए गए 65 गोलों को बड़ी पहचान मिलने जैसा था. एक दिन पहले दिल्ली पहुंचे बनर्जी साहब सोने की तैयारी कर रहे थे कि स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के अधिकारियों ने रात नौ बजे फोन करके कहा कि उन्हें तुरंत ही जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम पहुंचना है.

मामला प्रधानमंत्री की सुरक्षा का था. लिहाजा एक दिन पहले ड्रिल जरूरी थी. बनर्जी साहब करीब  83 साल के हैं और पिछले कुछ सालों से उनकी जिंदगी व्हीलचेयर पर ही चल रही हैं. रात को काफी तकलीफ झेलने के बाद वह चाणक्यपुरी के अशोक होटल से स्टेडियम पहुंचे और देर रात तक डमी ड्रिल में हिस्सा लिया.


अंडर-17 विश्व कप में बात सिर्फ बच्चों के पानी मिलने की ही नहीं है. बनर्जी साहब की तकलीफ भी भुलाई जा सकती है, बशर्ते ऐसे हादसे भविष्य में हमें बड़े टूर्नामेंट के बिना किसी विवाद के आयोजन करने में मददगार साबित हों. लेकिन लगता नहीं कि हम कभी ऐसा सीख पाएंगे.

भारत  को मंगलवार को अपना दूसरा मैच खेलना है और करीब 250 करोड़ रुपए के आयोजन के बारे में अभी तक बुरी खबरें ही सुनने को मिल रही हैं.

विश्व कप का शुभारंभ प्रधानमंत्री को करना था. लिहाजा स्टेडियम को पैक दिखाने के लिए करीब 27 हजार स्कूली बच्चों के लाया गया. लेकिन सोशल मीडिया पर जो फोटोग्राफ व वीडियो हैं और अखबारों में जो खबरें छपी हैं, वह शर्मनाक हैं. पानी के लिए बच्चे सोमालिया में यूनाइटेड नेशन का राशन लूटने वालों की तरह मारामारी कर रहे थे.

शर्मनाक बात यह है कि इन सब खबरों के बाद फीफा की लोकल ऑर्गनाइजेशन (एलओसी) ने आधी रात को भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ बच्चों को टिकट देने का अपना करार कैंसिल कर दिया.

एलओसी के मुखिया जेवियर सेप्पी के लिए यह सब जिंदगी का नया अनुभव था. गुस्साए सेप्पी ने करार खत्म करने का फैसला किया, लेकिन खेल सचिव इंजिती श्रीनिवासन किसी तरह उन्हें भरोसा दिलाने में सफल रहे कि अब कोई गलती नहीं होगी.

एलओसी और साई के बीच करार के मुताबिक फीफा को बच्चों के लिए फ्री टिकट मुहैया करवानी थी और बाकी की सुविधाएं साई को देनी थीं.

सिर्फ यही नहीं हुआ. प्रधानमंत्री के हाथों सम्मान पाने वाले समर बनर्जी भी थे. समर 1956 की ओलंपिक टीम के कप्तान थे.

मैच से काफी समय पहले स्टेडियम पहुंच जाने के बावजूद वह जब तक अंदर पहुंचे, कार्यक्रम शुरू हो चुका था. बताया गया कि उनकी कार को एसपीजी ने काफी देर तर  रोक कर रखा. लिस्ट में नाम होने के बावजूद उन्हें इंतजार करने के लिए कहा गया.

एक और शर्मनाक घटना समझने के लिए काफी है कि आठ-दस साल पहले मिले टूर्नामेंट में मामूली से काम भी ठीक नहीं हो सकते.

सम्मान पाने वालों में पूर्व दिग्गज भास्कर गांगुली का नाम भी था, लेकिन जब उनका नाम पुकारा गया तो राजस्थान के खिलाड़ी मगन सिंह रजवी मोदी के सामने थे.

अगर आप फिर से उस सम्मान समारोह का वीडियो देखें तो पाएंगे कि मिलेनियम कार्यक्रम के तहत प्रधानमंत्री के हाथ से पुरस्कार के रूप में फुटबॉल हासिल करने वाले बच्चों को बिठा कर समझाने की कोशिश तक नहीं कि गई कि प्रधानमंत्री से फुटबॉल किस शालीनता से ग्रहण करनी है.

कई बच्चे उनके हाथ से फुटबॉल बिना उनकी ओर देखे  ही लेकर चले गए. कुछ को मोदी ने फुटबॉल देने के बाद शेकहैंड के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो उन्होंने देखा ही नहीं. यह सब देख कर एक सवाल जेहन में आता है कि आखिर हम अपने देश के रुतबे और खिलाड़ियों के सम्मान को आहत करने के लिए अरबों रूपए क्यों खर्च करते हैं!