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जन्मदिन विशेष, युवराज सिंह: इस बेहतरीन फिनिशर का आखिरी शॉट अभी बाकी है

युवराज सिंह की बढ़ती उम्र के चलते उनकी फिटनेस पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं

Riya Kasana

युवराज सिंह का नाम सुनते ही आपके ज़ेहन में सबसे पहली तस्वीर क्या आती है? एक ओवर में उनके लगाए छह छक्के और बॉलर स्टुअर्ट ब्रॉड की शक्ल, नेटवेस्ट ट्रॉफी की यादगार पारी या फिर 2011 वर्ल्ड कप जीतने का सेलिब्रेशन. जो युवराज सिंह एक ओवर में 6 छक्कों के साथ क्रिकेट के सिक्सर किंग बन गए, आज उन्हीं युवराज सिंह को कभी यो-यो टेस्ट के नाम पर, कभी युवाओं को मौका देने के नाम पर तो कभी टीम की रोटेशन पॉलिसी के नाम पर भारतीय टीम से दूर रखा जा रहा है.

उम्र के कारण फिटनेस पर सवाल


हर कोई उनकी फिटनेस पर सवाल उठाकर उन्हें 2019 वर्ल्ड कप के लिए अनफिट घोषित करने पर तुला है. मंगलवार को युवराज सिंह 36 साल के हो गए. और शायद यही उम्र उन पर उठ रहे सवालों की बुनियाद है. क्या  वाकई उम्र इतनी अहम होती है? इस पर चर्चा से पहले युवराज के करियर का हाई पॉइंट देख लेते हैं.

युवराज सिंह वही खिलाड़ी हैं जिन्होंने साल 2011 में भारत को वर्ल्ड कप जिताने में अपना सब कुछ झोंक दिया था. उस वर्ल्ड कप जीत की किताब पर कवर भले ही धोनी का विजयी छक्का रहा है लेकिन यकीनन उस जीत के लेखक युवराज सिंह रहे हैं. युवराज सिंह इस वर्ल्ड कप के दौरान दो जंग लड़ रहे थे. एक विरोधी टीमों से और दूसरा खुद से.

उनका शरीर कैंसर की वजह से उनकी साथ नहीं दे पा रहा था. युवराज सिंह ने अपनी ऑटोबायोग्राफी टेस्ट ऑफ माय लाइफ में लिखा है, ‘उस पूरे टूर्नामेंट मुझे उल्टियां हो रही थी, सांस में लेने में दिक्कत हो रही थी. मुझे वर्ल्ड कप के आगे कुछ नहीं दिख रहा था. मुझे नींद नहीं आती थी और इस कारण मुझे कई बार नींद की गोलियां भी दी जाती थी ताकि मैं मैच के लिए तरोताजा रहूं. मेरे लिए जीत बहुत ज्यादा जरूरी थी. मैंने अपने स्टाफ मेंबर से फाइनल मैच से एक रात पहले कहा था कि भगवान चाहे तो मेरी जान ले ले लेकिन हमें वर्ल्ड कप दे दे’.

कैंसर के बावजूद नहीं छोड़ा क्रिकेट का साथ

जब युवराज को पता चला कि उन्हें कैंसर है तो बाकि लोगों की तरह उनके दिल में पहला खयाल यह नहीं था कि वह जिंदा रह पाएंगे या नहीं, उन्हें तो सिर्फ इस बात का डर था कि क्या वह दोबारा क्रिकेट खेल पाएंगे? क्रिकेट के प्रति उनका यह जूनून ही तो है जिसकी वजह से वह अब तक उन्होंने हार नहीं मानी है. कैंसर के नाम से ही जहां लोग कांपने लगते हैं, वहीं इस खिलाड़ी ने बीमारी से लड़कर मैदान पर वापसी की और साबित किया क्रिकेट उनके लिए सिर्फ एक खेल नहीं है.

पिता योगराज सिंह ने बचपन से ही जिस तरह की ट्रेनिंग देकर युवराज सिंह को तैयार किया है, उसने उन्हें हर तरह की मानसिक और शारीरिक लड़ाई से लड़ने के लायक बनाया है. युवराज ने क्रिकेट के लिए अपना पहला प्यार स्केटिंग को छोड़ा. उन्हें अपनी मां का साथ छोड़ना पड़ा. उनका बचपन एक आम बचपन की तरह नहीं था, ना तो वहां दोस्तों के साथ जी भर के खेलना, ना मां-बाप का प्यार, ना ही रविवार की छुट्टी. था तो बस ट्रेनिंग, प्रैक्टिस, मैच. जिस इंसान ने क्रिकेट के लिए इतना सब कुछ सहा हो भला वो इतनी आसानी से कैसे हार मान सकता है.

युवराज सिंह ने हाल ही में 16.33 के स्कोर के साथ यो-यो टेस्ट पास किया है. वह हर तरीके से यह साबित करने में जुटे हैं कि उनमें भी अभी तक बहुत क्रिकेट बाकी है. टीम को मिडिल ऑर्डर में एक अनुभवी खिलाड़ी की जरूरत है जो दबाव में टीम को संभाल सके और टॉप ऑर्डर के ध्वस्त होने पर धोनी का साथ दे सके. वो एक ऑलराउंडर के तौर पर भी टीम के लिए एक अच्छे विकल्प साबित हो सकते हैं. ऐसे में लोग जरूर एक बार फिर इंग्लैंड में उनके लंबे-लंबे छह छक्कों का नजारा देखना चाहेंगे.