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झेलम की बाढ़ में डूबे ‘सचिन के पहले बैट’ को निकालने की कोशिश करेगा वर्ल्ड बैंक

विश्व बैंक ने 2014 की बाढ़ से प्रभावित कश्मीर विलो बैट निर्माताओं को मदद की संभावनाओं पर काम शुरू किया

Jasvinder Sidhu

महान सचिन तेंदुलकर अपने कई साक्षात्कारों में कह चुके हैं कि उनका सबसे पहला बैट उन्हें उनकी बहन सविता ने दिया था. वह कश्मीर विलो बैट ताउम्र उनकी जिंदगी का हिस्सा रहेगा. कश्मीर विलो के बैट से ही सचिन  ने रणजी ट्रॉफी और ईरानी कप में अपना पहला शतक मारा था.

कश्मीर विलो के बल्लों का भारतीय क्रिकेट में क्या योगदान है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रेडिया प्रसारण मन की बात में इसका जिक्र भी कर चुके हैं.


सचिन ही नहीं, देश के लगभग सभी बड़े क्रिकेटरों ने अपने शुरुआती कैरियर में कश्मीर बल्लों से खेलना शुरू किया क्योंकि पैसे की कमी के कारण व इंग्लिश विलो खरीदने में सक्षम नहीं थे. लेकिन आज कश्मीर की बैट इंडस्ट्री काफी संकट में हैं.

2014 में झेलम में आई बाढ़ से हुआ नुकसान

सितंबर 2014 में आई जिदंगियां बदल देने वाली झेलम की बाढ़ न केवल लाखों तैयार बैट, बल्कि इन बल्लों के लिए जरूरी करोड़ों रुपए की लकड़ी अपने साथ बहा कर ले गई.

झेलम के किनारे पर बसे पुलवामा, बिजबेहारा, बारामुला, संगम और चारसु जैसे बल्ले तैयार करने वाले हब में कारखाने झेलम के पानी में डूब गए थे.

आज तीन साल हो गए हैं और कश्मीर विलो बैट इंडस्ट्री अभी तक उस अरबों के नुकसान से उबर नहीं पाई है. ऐसा नहीं है कि केंद्र या राज्य की सरकार के कोई मदद नहीं मिली. लेकिन जो मदद मिली वह नुकसान की तुलना बेहद कम थी क्योंकि सरकार को लोगों के घरों व  जानो-माल के नुकसान को भी देखना था.

वर्ल्ड बैंक का झेलम-तवी फ्लड रिकवरी प्रोजेक्ट (जेटीएफआरपी)

अब जम्मू-कश्मीर सरकार ने कश्मीर विलो बैट इंडस्ट्री की मदद के लिए विश्व बैंक से गुहार लगाई हैं.

2014 की बाढ़ से हुए नुकसान से लोगों को उबारने और प्रभावितों को मदद के लिए राज्य सरकार और विश्व बैंक ने साझा करार किया था जिसे झेलम-तवी फ्लड रिकवरी प्रोजेक्ट (जेटीएफआरपी) का नाम दिया गया.

जेटीएफआरपी के तहत विश्व बैंक ने इसी महीने बाढ़ के प्रभावित हुई  कश्मीर  विलो बैट इंडस्ट्री को भी मदद देने की संभावनाओं पर अपना काम शुरू कर दिया है.

वर्ल्ड बैंक के प्रवक्ता फर्स्टपोस्ट हिंदी को बताते हैं कि कुछ समय पहले जम्मू कश्मीर सरकार के वाणिज्यिक व उद्योग  विभाग ने बैंक से संपर्क किया था  और  गुजारिश की थी कि वह बाढ़ से प्रभावित बैट इंडस्ट्री को भी मदद की संभावनाओं पर गौर करे. इस समय बैंक पूरे हालात पर अपनी स्टडी कर रहा है और समझने की कोशिश कर रहा है कि आखिर बैट इंडस्ट्री को किस तरह से मदद की जा सकती हैं.

बीस साल पीछे चली गई है विलो बैट इंडस्ट्री

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य हर साल 25 लाख से भी ज्यादा खेलने के लिए तैयार  बल्ले बनाता है  और इसके अलावा आधे तैयार बल्ले भी बड़ी मात्रा में बनते हैं जो जम्मू या देश के बाकी हिस्सों में निर्माता पूरा करके बेचते हैं. यह इंडस्ट्री सिर्फ कश्मीर में ही करीब 50 हजार लोगों को रोजगार देती हैं.

करीब बीस साल तक कश्मीर बैट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे नजीर अहमद सालरू बताते हैं कि तीन साल बीत जाने के बाद भी बाढ़ के कारण बैट इंडस्ट्री  उबर नहीं पाई है. असल में यह बीस साल पीछे चली गई हैं क्योंकि जितनी कश्मीर  विलो 2014 का बाढ़  में बही है, उतनी फिर से उगाने  में 20-30 साल लगेंगे क्योंकि इसके एक पेड़ को तैयार होने में चालीस साल लगते हैं.

सालरू के अनुसार मौजूदा संकट कुछ भी नहीं हैं क्योंकि वह भविष्य में ऐसे हालात देख रहे हैं जब कश्मीर विलो महज एक दंत कथा बन कर रह जाएगी.