view all

क्या चैंपियंस ट्रॉफी के बाद नाक की लड़ाई हार जाएंगे विराट!

पाकिस्तान के खिलाफ मैच से पहले कुंबले और विराट के बीच हुई थी लंबी बातचीत

Jasvinder Sidhu

विराट कोहली की टीम इंडिया ने चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान जिस तरह से एकतरफा तरीके से पीटा है, उसे अब चैंपियंस बनने का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा है. लेकिन विराट चैंपियंस ट्रॉफी के तुरंत बाद वह एक बड़ी लड़ाई हार जाएं तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. यह लड़ाई है कोच कुंबले के खिलाफ.

इस पूरे प्रकरण पर निगाह रखे हुए बीसीसीआई के शीर्ष अधिकारी के अनुसार पाकिस्तान के खिलाफ मैच से पहले कुंबले ने विराट के साथ लंबी बात की है. और उसके बाद कोच चयन समिति के सदस्यों सचिन तेंदुलकर, सौरव  गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण से भी कुंबले रूबरू हुए हैं.


विराट को साथ बातचीत में कुंबले ने हर तरह के कन्फ्यूजन और मिस अंडरस्टेंडिंग को दूर करने का वादा किया जबकि अपने पुराने साथियों के साथ बातचीत में उन्होंने पूछा कि क्या टीम को उनकी और जरूरत है?

सूत्रों के अनुसार इस बातचीत के बाद ही कुंबले ने एक और साल के लिए कोच पद की नियुक्ति के लिए अपना आवेदन भरा है. अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन साथियों के साथ कुंबले ने करीब बीस साल क्रिकेट खेला है, उनसे उन्हें किस तरह का भरोसा मिला होगा. इस बातचीत का असर पाकिस्तान के खिलाफ मैच से पहले प्रैस कॉन्फ्रेंस में भी दिखा.

कोहली ने कहा, कोच और मेरे बीच कोई परेशानी नहीं

कोहली ने कुंबले साथ खराब संबंधों के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘ऐसे बड़े टूर्नामेंटों से पहले बहुत से लोग (इशारा मीडिया के वर्ग पर था) हवा में अफवाहें फैलाना पसंद करते हैं. खासकर टूर्नामेंट शुरू होने से ठीक पहले. यह उनका काम है. अपनी रोजीरोटी के लिए वे यह सब कर रहे हैं. मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा. हमारा पूरा ध्यान मैदान पर लगा है.

उन्होंने आगे कहा, ‘ कोच के साथ मेरे संबंध काफी अच्छे हैं और यह पूरी यात्रा अच्छी रही है. मैंने इस सवाल का जवाब पहले भी दिया है. रही असहमतियों की बात, वह सभी के साथ होता है और हम परिवारों में भी सभी के साथ हमेशा सहमत नहीं होते.’

कप्तान की बात को सीधे शब्दों में समझा जाए तो मतभेद वैचारिक लगते हैं. क्वालिफिकेशन में इंजीनियर रहे कुंबले अनुशासन, समय की पाबंदी और वर्क कल्चर के कायल हैं. टीम के लिए उनकी हर गतिविधि कागज पर होती है और वह उसी के अनुसार नेट चलाते हैं.

कुंबले के नियम बने खिलाड़ियों के लिए परेशानी 

कोहली और उनकी टीम के कुछ सदस्यों को थोड़ी रियायतें और आजादी चाहिए. लेकिन कुंबले से सीधे कहने की हिम्मत करे कौन?

अब कोई एसयूवी और ऑडी में सवारी करने वाले स्टार को कहे कि उसे ठीक 8 बजे टीम की बस पर होना चाहिए, उस स्टार के लिए एक बार मानने के लिए कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन अगर यह हर दिन का नियम बन जाए तो मुश्किल लाजिमी है. या फिर कोई नेट पर पहले बल्लेबाजी करना चाहता है लेकिन कुंबले की लिस्ट में उसके लिए पहले ही नंबर तय है, चिढ़न होगी ही.

अभी तक जो खबर फर्स्ट पोस्ट तक पहुंची है, उसके मुताबिक इस पूरे प्रकरण के पीछे दो अहम बाते हैं. पहली, टेस्ट और वनडे में 956 विकेट लेने वाले कुंबले को लग रहा था कि टीम के सभी सदस्य उनकी इतनी इज्जत करते हैं कि वह जो कोई फैसला करेंगे, किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी. दूसरा, टीम के लिए उन्होंने जो नियम बनाए हैं, बतौर पेशेवर क्रिकेटर उन्हें मानने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.

कुछ महीने तक यह सब सही रहा, लेकिन धीरे-धीरे टीम के कुछ सदस्यों के लिए नियम पाबंदियां हो गईं. कुंबले ऐसी शख्सियत नहीं है जो किसी के साथ गलत ढंग से बात करेंगे. चूंकि अब उन्हें एहसास हुआ है कि उनके कुछ फैसलों और कायदों का पालन कई सदस्य जबरन- बेमन से कर रहे थे, उन्होंने बात को संभालने की खुद ही कोशिश की है.

हालांकि जानना भी रोचक होगा कि कोहली ने ऐसी किसी भी समस्या को लेकर कुंबले से कभी बात की है या नहीं! या फिर उन्होंने सीधे ही बीसीसीआई के सीईओ को एसएमएस भेज दिया. या फिर कुंबले से बातचीत नाकाम होने के बाद ही उन्होंने यह कदम उठाया.

यह जानना भी जरूरी है कि कुंबले ने जब टीम को लेकर अगर कोई गलत फैसला किया होगा तो बतौर कप्तान कोहली क्या चुपचाप बैठे रहे होंगे ? या टीम को कोई अन्य सदस्य भी मूक बना कठपुतली की तरह सिर हिलाता रहा होगा ?

जब कुंबले भारतीय टीम का हिस्सा थे तो किसी भी कप्तान की हिम्मत नहीं होती थी कि मैदान पर उनकी बात टाल जाए या उनके किसी आइडिया को खराब बता दे.

यहां पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का एक इंटरव्यू याद आता है. इसमें वे बताते हैं, 'आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस टीम में अनिल कुंबले. सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण हों तो कल्पना कीजिए कि कप्तान कैसे कुछ कहने की स्थिति में होगा. मसलन अगर मैं कुंबले को कहूं कि आप स्लिप पर आ जाइए. उनका जवाब सवाल के रूप में आएगा, मी? (मैं जाऊं?).  जाहिर है कि इसके बाद बिना कोई सवाल किए मुझे ही स्लिप पर खुद जाना पड़ेगा या किसी को भेजना पड़ेगा.'

यह सच है कि कुंबले ने अपने पूरा क्रिकेट करियर हावी होकर ही निकाला है लेकिन अब बतौर कोच जिस व्यवहार को लेकर बात हो रही है,वह कतई ऐसा नहीं है.

उम्मीद की जानी चाहिए कि जब सचिन, गांगुली और लक्ष्मण कोच चुनने के लिए एक टेबल पर बैठेंगे तो उनके जहन में इस मौजूदा स्थिति को लेकर कई सवाल होने चाहिए. क्योंकि ऐसे हालात किसी भी कोच के साथ भविष्य में हो सकते है.