फुटबॉल विश्व कप में साउथ कोरिया मौजूदा चैंपियन जर्मनी को इस कदर तबाह कर देगा, किसी को अंदाजा नहीं था. जर्मनी की हार के बाद पूरी दुनिया में मखौल चल रहे हैं. इसमें से चर्चित यह भी है कि विश्व कप क्रिकेट की तरह सिर्फ दस मुल्कों का ही होना चाहिए ताकि चैंपियन को ऐसा लानत ना झेलनी पड़े.
यह मजाक असल में विश्व में क्रिकेट के रुतबे का सर्टिफिकेट है. दिग्गज धनराज पिल्लै ने एक इंटरव्यू में सवाल के जवाब में सवाल किया था कि कितने देश क्रिकेट खेलते हैं! अपना तर्क उन्होंने चिरपरिचित अंदाज के साथ खत्म किया.
धनराज ने कहा कि वह देश के लिए ओलिंपिक में चार बार खेले हैं और वह ओलिंपियन हैं, सचिन तेंदुलकर नहीं हैं. धनराज का वह तर्क क्रिकेट के बारे में आज भी गलतफहमी को आइना दिखाता है.
क्या है फैंस की राय
इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) ने क्रिकेट खेलने वाले देशों में अब तक का अपना सबसे बड़ा सर्वे सार्वजनिक किया है. इसमें 16 से 69 साल के 19000 से भी ज्यादा क्रिकेट प्रेमियों से सवाल किया गया कि क्या वे इस खेल को ओलिंपिक में देखना चाहते हैं! 87 फीसदी लोगों ने कहा कि वे टी-20 को ओलिंपिक में शामिल होते देखना चाहेंगे.
आईसीसी ने 2024 के ओलिंपिक में क्रिकेट को शामिल करने के प्रयास शुरु किए तो सबसे बड़ा अड़ंगा भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने लगाया. सुप्रीम कोर्ट से झाड़ खाने से पहले बीसीसीआई का अपना जलवा था. लबालब भरी तिजोरियों के कारण वह विश्व क्रिकेट का माई-बाप था.
क्यों है बीसीसीआई को ऐतराज!
उस समय बोर्ड ने साफ मना कर दिया कि ओलिंपिक में क्रिकेट शामिल करने का आइडिया बकवास है. असल में अगर बीसीसीआई मान जाता है तो उसे भारतीय ओलिंपिक संघ के परिवार का हिस्सा बनना पड़ता.
हिस्सा बनने का मतलब है कि उसे सरकार के नियम भी मानने पड़ेंगे. इसलिए उसने आईसीसी के क्रिकेट को ओलिंपिक में शामिल करने की कोशिशों पर पानी फेर दिया.
बीसीसीआई आज तक भारतीय ओलिंपिक संघ का सदस्य नहीं बना है और न ही वह भारतीय सरकार में बतौर राष्ट्रीय खेल संस्था पंजीकृत है. इसके अलावा ओलिंपिक के समय आपसी सीरीज से होने वाली कमाई भी वह गंवाने को तैयार नहीं था.
ओलिंपिक की बात ही अलग है!
दूसरी तरफ इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी ने आईसीसी को साफ कहा कि वह सभी टॉप टीमों की हिस्सेदारी सुनिश्चित करे, उसके बाद ही क्रिकेट को स्पर्धाओं का हिस्सा बनाने पर विचार किया जाएगा. सचिन हों या विराट कोहली, उनके रिकॉर्ड व खेल गिने चुने मुल्कों लोगों के लिए मायने रखते हैं.
बेशक कई बैंक उनके पैसे से चल रहे हों लेकिन वे सर्गेई बुबका, माइकल फेल्प्स या यूसेन बोल्ट जैसे विश्व के हर कोने में पहचाने जाने वाले चेहरे नहीं हैं.
सचिन अब इस खेल में नहीं हैं लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर विराट की टीम ओलिंपिक में खेलती है और गोल्ड मेडल जीत जाती है तो भारत के लिए क्या मायने होंगे!
गोल्ड की क्यों, विराट के गले में कोई भी ओलिंपिक मेडल भारत और इस खेल को बाकी के खेलों के बराबर ला खड़ा करेगा, क्योंकि खेलों में ओलिंपिक पदक के बड़ा कुछ नहीं हैं.
खबर है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से बोर्ड को चलाने के लिए नियुक्त प्रशासकों की कमेटी ने क्रिकेट को ओलिंपिक में शामिल करने के मसले पर सभी पक्षों से भारत के रुख पर रायशुमारी मांगी है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि कमेटी भारतीयों क्रिकेटरों की ओलिंपिक में संभावित हिस्सेदारी में कोई अड़ंगा नहीं लगाएगी. उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि सचिन जैसे महान खिलाड़ी इस खेल को ओलिंपिक में शामिल किए जाने की हिमायत करेंगे ताकि क्रिकेट भी भविष्य में बाकी खेलों के बराबर का कद हासिल कर सके. क्योंकि धनराज ने जो कहा था, वह विराट और उनकी टीम के हर स्टार सदस्य पर भी लागू होता है.
हालांकि यह भी तय हा कि 2018 के ओलिंपिक से पहले केरिकेट के उसमें शामिल होने की गुंजाइश नहीं है लिहाजा उस वक्त तक विराट कोहली टीम इंडिया के सदस्य रहेंगे इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती है.